
Kawad yatra 2205 : भगवान शिव का महीना सावन 11 जुलाई से शुरू होने जा रहा है, जो 9 अगस्त को समाप्त होगा. इस दौरान भोले के भक्त पूजा और व्रत के अलावा कांवड़ यात्रा पर भी निकलते हैं. जिसमें पवित्र नदियों से गंगाजल एकत्रित करके अपने गृह जनपद में आकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं. आपको बता दें कि कांवड़ यात्रा 4 प्रकार की होती है जिसके अलग-अलग मायने हैं. इस आर्टिकल में हम उन्हीं के बारे में बात करने जा रहे हैं...
कितने प्रकार की होती है कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा 4 प्रकार की होती है -पहली सामान्य कांवड़ - इस यात्रा में आप रुककर आराम कर सकते हैं. लेकिन इस दौरान आपको इस बात का खास ख्याल रखना होता है कि कांवड़ जमीन पर न छुए. आप इस दौरान कांवड़ किसी पेड़ पर लटका सकते हैं या फिर स्टैंड पर रख सकते हैं.
दूसरी डाक कांवड़ यात्रा - इस यात्रा में यात्री बिना रुके चलते रहते हैं. जब तक जलाभिषेक कर नहीं देते वो चलते ही रहते हैं.
खड़ी कांवड़ - इस यात्रा में भक्त खड़ी कांवड लेकर चलते हैं. आपको बता दें कि इस यात्रा में कांवड़िए के साथ एक सहयोगी भी होता है, जो उनके साथ चलता है.
दांडी कांवड़ - इस यात्रा में भक्त दंड बैठक देते हुए यात्रा पूरी करते हैं, जो बहुत मुश्किल होती है. इस यात्रा में महीने भर का समय लगता है.
क्यों की जाती है कांवड़ यात्रा
मान्यता है जब समुद्रमंथन के दौरान विष पान करने से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था तब उसके प्रभाव को कम करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है. इस जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवाना भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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