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This Article is From Dec 22, 2014

पंडितों ने भी नहीं दिखाया बीजेपी से प्यार, दूर रहे वोटिंग से

पंडितों ने भी नहीं दिखाया बीजेपी से प्यार, दूर रहे वोटिंग से
श्रीनगर:

बीजेपी ने जब जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा चुनाव में मिशन 44 प्लस का ऐलान किया था, उसकी उम्मीदों के आधार में कश्मीरी पंडितों के वोट भी शुमार थे, लेकिन पोलिंग के आंकड़े बताते हैं कि कश्मीरी पंडितों ने बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद वोटिंग में दिलचस्पी ही नहीं दिखाई, सो, नतीजे के तौर पर हो सकता है कि बीजेपी का कश्मीर घाटी में खाता भी न खुले।

यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि कश्मीरी पंडितों के एक-एक वोट को सुनिश्चित करना बीजेपी की रणनीति का हिस्सा रहा, लेकिन इसके बावजूद पार्टी ऐसा नहीं कर पाई। वादी में, जहां हुर्रियत जैसे अलगाववादी संगठनों की पोल बायकॉट की अपील के चलते कई सीटों पर बहुत कम वोटिंग होती है, पंडितों का एकमुश्त वोट चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकता था।

श्रीनगर जिले में आठ विधानसभा क्षेत्र हैं। हब्बाकदल वह क्षेत्र है, जहां कश्मीरी पंडित वोटरों की तादाद सबसे ज़्यादा है। वादी के कुल 32,136 माइग्रेंट कश्मीरी पंडित वोटो में से 17,470 यहीं के हैं। लेकिन वोट किया सिर्फ 2,817 ने। यही हाल अमीराकदल का रहा, जहां 5,275 कश्मीरी पंडितों में से सिर्फ 837 ने वोट किया। जबकि हज़रतबल के 2,599 पंडितों में से सिर्फ 360 ने वोट डाले। पूरे श्रीनगर जिले के 32,136 पंडित वोटों में से महज़ 5,169 वोट पड़े। वे भी तब, जब 9,638 माइग्रेंट कश्मीरी पंडितों ने एम-फॉर्म भरकर वोट देने की मंशा जताई थी, यानि जो वोट डालने का मन बना चुके थे, वे भी पोलिंग बूथ तक नहीं आए।

श्रीनगर के एडिशनल डीसी जीएम डार, जो चुनाव की ज़िम्मेदारियों के नोडल ऑफिसर भी हैं, बताते हैं कि कुल 440 पंडितों ने पोस्टल बैलेट जारी करवाए थे, जिनमें से ख़बर लिखे जाने तक 136 ने ही वोट डाल बैलेट वापस भेजे। मंगलवार सुबह तक इसमें कुछ और इज़ाफे की उम्मीद है।

जम्मू संभाग में जहां 37 सीटें हैं, वहां बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहने की उम्मीद जताई जा रही है, लेकिन कश्मीर की 46 सीटों में से वह कुछ सीटें जीतकर अपनी विजय पताका को लहराते देखना चाहती है।

हब्बाकदल में कुल 54,852 मतदाता हैं, जिनमें सिर्फ 11,561 ने वोट डाले। ये 2014 लोकसभा चुनाव, 2008 विधानसभा चुनाव और उसके पहले के कई चुनावों में सबसे ज़्यादा वोटिंग है। इस सीट पर पीडीपी के जफ़र मेहराज की क़िस्मत भी दांव पर है। बीजेपी कश्मीरी पंडितों को क्यों नहीं लुभा पाई, इस पर वह कुछ बोलना नहीं चाहते, लेकिन बीजेपी की आक्रामक प्रचार शैली और धर्मांतरण पर छिड़े विवाद से फायदे में इन्हीं के रहने की उम्मीद है।

दूसरी तरफ, कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू का कहना है कि माइग्रेंट वोटर का हक पाने को लेकर बहुत सारी कानूनी और कागज़ाती मुश्किलें हैं। कश्मीरी पंडितों के वोट कम पड़े, इसके पीछे यह बहुत बड़ी वजह है। इस दलील में दम हो सकता है, लेकिन सवाल है कि जिस बीजेपी ने कश्मीर को लेकर इतना कमर कसी थी, क्या उसका ध्यान इस तरफ पहले नहीं गया...? पार्टी को जहां जम्मू में अच्छा करने की उम्मीद है, वहीं घाटी की 46 सीटों में किसी एक के जीतने की उम्मीद पर भी ग्रहण लग गया है। बीजेपी ने कश्मीर वादी में अगर कोई एक सीट जीतने की सबसे ज़्यादा उम्मीद लगाई है, तो वह हब्बाकदल की है, लेकिन एक तरफ जहां कश्मीरी पंडितों का वोट नहीं आया, वहीं दूसरी तरफ यहां लोगों ने पहले से ज़्यादा वोट किया, ताकि बॉयकॉट का नुकसान बीजेपी का फायदा न बन जाए।

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