27 साल की रामकली दिल्ली के फुटपाथ पर पैदा हुईं और अगली पीढ़ी आने तक भी सर पर छत नहीं जुगाड़ सकीं, हालांकि पिछले साल दिल्ली की वोटर जरूर बन गईं।
सर पर छत नहीं लिहाजा बच्चों को भी खुले आसमान के नीचे ही पाल रही हैं। पति रिक्शा चलाते हैं और रामकली लालबत्ती पर गुब्बारे बेचती हैं। वोटर कार्ड पर पता झंडेवालान के रैन बसेरे का है। दो बार वोट डालने के बाद अब यह तीसरा मौका है। रामकली कहती हैं कि इस कार्ड के रहने पर पुलिस वाले भी परेशान नहीं करते। कल को बच्चे को पढ़ाऊंगी तो काम आएगा।
56 साल की बिमला के सिर पर भी छत नहीं। रोजी-रोटी का भी कोई पक्का जरिया नहीं, लेकिन वोट देने का अधिकार जरूर है। करीब बीस साल पहले ग्वालियर से दिल्ली आई बिमला ने कनॉट प्लेस के शिव मंदिर के सामने ही अपना डेरा जमा रखा है।
वह कहती हैं कि दो दिन पहले वोटरकार्ड के साथ कुछ पैसे मंदिर के पास से ही चोरी हो गया। रात भर नींद नहीं आई। सुबह-सुबह ढूंढ़ा तो कचरे के डिब्बे के पास गिरा मिला। 200 रुपये तो नहीं मिले उसका अफसोस नहीं है। कार्ड तो मिल गया।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में करीब 65,000 बेघर हैं जिनमें से 5,500 के वोटर कार्ड 2013 के विधानसभा चुनाव में बने। लोकसभा चुनाव तक यह आंकड़ा बढ़कर 7614 तक जा पहुंचा और इस बार 9,369 ऐसे वोटर हैं, जिनके पास घर नहीं।
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