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This Article is From Oct 11, 2014

रिटायरमेंट के बाद नौकरशाह का प्लान, नेतागिरी!

रिटायरमेंट के बाद नौकरशाह का प्लान, नेतागिरी!
मुंबई में मंत्रालय की फाइल तस्वीर
मुंबई:

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में इस बार पूर्व नौकरशाह भी ताल ठोंक रहे हैं। उत्तर नागपुर से पूर्व आईएएस किशोर गजभिये को बीएसपी ने टिकट दिया है, वहीं नवी मुंबई के बेलापुर से पूर्व आईएएस विजय नाहटा को शिवसेना ने उत्तम खोब्रागडे और पीके जैन जैसे अफसर भी हैं जो दंगल में उतरने के लिए पार्टी की बस में बैठ गए, लेकिन टिकट नहीं मिल पाया।

कोंकण के पूर्व डिविजनल कमिश्नर रिटायर्ड आईएएस अधिकारी विजय नाहटा, धनुष बाण से एनसीपी के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री गणेश नाइक पर निशाना लगाएंगे। शिवसेना ने उन्हें नवी मुंबई के बेलापुर से टिकट दिया है। मुकाबले में एनसीपी से बीजेपी में आई मंदा म्हात्रे भी हैं। चुनावों के दौरान शिवसेना−बीजेपी गठबंधन टूटने पर किसी नुकसान को नहाटा खारिज करते हुए कहते हैं कि बतौर प्रशासनिक अधिकारी लोगों ने मेरा काम देखा है। मंदा म्हात्रे एनसीपी से आई हैं इसलिए स्थानीय बीजेपी नेता भी उनसे नाराज हैं, वोट थोड़े बहुत बंटेंगे, लेकिन इतने नहीं कि जिससे मुझे फर्क पड़े।

नागपुर उत्तर की आरक्षित सीट से पूर्व आईएएस किशोर गजभिये बीएसपी के हाथी पर सवार हुए हैं। सामने हैं कांग्रेस के दिग्गज नेता नितिन राउत और बीजेपी से मिलिंद माने।

पूर्व आईपीएस अधिकारी और मुंबई पुलिस के कमिश्नर सत्यपाल सिंह के सांसद बनने के बाद महाराष्ट्र में लगभग आधा दर्जन आईएएस-आईपीएस चुनाव लड़ना चाहते थे। उत्तम खोब्रागडे को धारावी और पीके जैन के कोलाबा से आरपीआई के टिकट की उम्मीद थी, लेकिन गणित जमा नहीं।

बड़ी तादाद में पूर्व नौकरशाहों के चुनावी समर में कूदने से ये बहस तेज हो गई है कि इनके लिए रिटायरमेंट के बाद राजनीतिक दल में आने का कोई कूलिंग ऑफ पीरियड हो या नहीं। राय जुदा जुदा है। विजय नाहटा का मानना है कि इसकी ज़रूरत नहीं है। अगर कोई अधिकारी अपने कार्यकाल में किसी दल विशेष का पक्ष लेता है तो उसे इसकी सज़ा मिलती है। हर आदमी अपनी क्षमता से काम करता है।

वहीं, कांग्रेस के नेता और पूर्व विधायक बाबा सिद्दिकी इसे ख़तरनाक मानते हैं। उनके मुताबिक अगर कोई शिक्षक या प्रोफेसर चुनाव मैदान में कूदता है तो कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन अगर जो अधिकारी निर्णय लेता है, लोगों के लिए नीतियां बनाने से जुड़ा रहता है, उसके सेवानिवृत्त होने के फौरन बाद किसी राजनीतिक दल से जुड़ने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसलिए नौकरशाहों के राजनीति में आने से पहले 5−6 साल का कूलिंग पीरियड होना ही चाहिए।

सर्विस कंडक्ट रूल्स के मुताबिक बाबू रिटायरमेंट के एक साल बाद तक किसी निजी कंपनी के मुलाजिम नहीं बन सकते हैं, लेकिन किसी राजनीतिक दल से फौरन जुड़ने को लेकर कोई नियम नहीं है। चुनाव आयोग इसमें फेरबदल चाहता है। हालांकि, कानूनी जानकारों का कहना है कि ऐसा कोई कदम अदालती बहस में टिक नहीं पाएगा।

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