करौंदी शाखा, बनारस का एक इलाक़ा। एक तरफ़ केसरिया टोपी वाले भाजपा कार्यकर्ताओं की फ़ौज, तो दूसरी तरफ़ सफ़ेद टोपी वाले आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की फौज। दोनों आमने-सामने और एक-दूसरे में घुले-मिले भी। मोदी और केजरीवाल समर्थकों के बीच जवाबी नारों का ऐसा दौर चला मानो क़व्वाली हो रही हो। लोकतंत्र का ऐसा विहंगम नज़ारा कम देखने को मिलता है। कोई हिंसा नहीं, मगर हिंसा की आशंका में पुलिस परेशान हो गई। बनारस से आने वाली हिंसा की ख़बरों के बीच करौंदी शाखा की यह चुनावी क़व्वाली राहत देने वाली रही।
एक तरफ़ से नारा उठता था। जो दो सीटों से लड़ता है, वो केजरीवाल से डरता है। आप समर्थक चीख़ें जा रहे थे। जैसे ही उनका नारा धीमा पड़ता, भाजपा के युवा कार्यकर्ता चढ़ जाते थे। जो लड़ न सका खांसी से, वो क्या लड़ेगा काशी से। उसके बाद मोदी-मोदी के साथ तालियों की गड़गड़ाहट। भाजपा के झंडे में झाड़ू का डंडा है। मोदी जी आएंगे झाड़ू सहित भगायेंगे।
आमने-सामने की ऐसी नारेबाज़ी हमने बहुत दिनों बाद देखी। सकारात्मक जोश से हमारा लोकतंत्र भर उठा। इतना मज़ा आया कि मेरा मन भी कहने लगा कि छोड़ो ये प्रेस की माइक और दोनों तरफ़ से गलाफाड़ नारे लगाकर इस जोश में शामिल हो जाओ।
बनारस में भाजपा और आप की टोपियां और झंडे छा गए हैं। दोनों दल जहां जाते हैं, टोपी खूब बांटते हैं। जो थोड़ी देर पहले सफ़ेद टोपी में नज़र आ रहा होता, वो अब भगवा टोपी में नज़र आने लगता है। लोग बड़े आराम से कहते हैं, अरे टोपी तो जो पहनाएगा, हम पहन लेंगे। सबका मान रखना चाहिए। हमने किसको टोपी पहनाई, वो 16 को पता चल ही जाएगा।
यहां का चुनाव किसी थियेटर सा लगता है। खूब सारे पात्र और खूब सारा मनोरंजन। इस समय कोई अपने मन की बात नहीं कहता। सब पूछने वाले के मन की बात कहते हैं। यही हमारे मतदाता का संस्कार है।
भाजपा और आप के बीच जमकर बहस हो रही है। पान से लेकर चाय की दुकान तक दोनों भिड़े रहते हैं। केजरीवाल राहुल के ख़िलाफ़ क्यों नहीं लड़ते हैं। मोदी दो-दो सीटों से क्यों लड़ते हैं। अगर आप दलीलों से तैयार नहीं हैं, तो इस बहस में टिक नहीं सकते। पूरा बनारस किसी रंगमंच सा नज़र आता है। केजरीवाल का साथ देने हरियाणा कश्मीर, बंगाल से लोग आए हैं, तो मोदी के लिए गुजरात से पटेल नेता, महाराष्ट्र से सिंधी नेता और बिहार से भूमिहार नेता आ रहे हैं। बनारस की चुनावी लड़ाई लोकतंत्र का जीवंत दस्तावेज़ है।
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