
आज पश्चिम उत्तर प्रदेश के उन इलाकों में गया, जिन्हें 'साठा चौरासी' कहते हैं... दरअसल, 'साठा चौरासी' 60 और 84 गांवों के समूह को कहते हैं... इन गांवों को तोमर और सिसोदिया राजपूतों का गढ़ माना जाता है... तोमर और सिसोदिया राजपूत हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी, लेकिन धर्म अलग होने के बाद भी दोनों के जातीय संबंध अद्भुत हैं... तोमर राजपूतों की पगड़ी मुस्लिम तोमर के गांव से आती है, जिसे हिन्दू राजपूत अपना चौधरी मानते हैं... इसी तरह सिसोदिया राजपूतों के यहां भी पगड़ी मुस्लिम सिसोदिया गांव से आती है... मुस्लिम नामों के अंत में राणा, सिसोदिया और तोमर नाम सामान्य होते हैं... इसी क्षेत्र के तोमर महमूद अली खां मध्य प्रदेश के राज्यपाल भी रहे हैं... चौधरी चरण सिंह के जमाने तक मुस्लिम राजपूतों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व ठीक-ठाक रहा, मगर बाद में कम होता चला गया...
'साठा चौरासी', यानि 144 गांवों के राजपूत, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर और हापुड़ संसदीय सीटों पर असर रखते हैं, मगर गाज़ियाबाद पर इनकी पकड़ ज़्यादा है... इस इलाके में राजपूतों के गांव 32, 60 और 84 गांवों के समूह में पाए जाते हैं... एक सज्जन ने कहा कि पूरे उत्तर प्रदेश में राजपूतों की ऐसी पट्टी नहीं है... ऐसा नहीं कि 'साठा चौरासी' ने गैर-राजपूत उम्मीदवारों का समर्थन नहीं किया, मगर यहां के लोग मानते हैं कि कोई राजपूत उम्मीदवार आता है, और वह योग्य हो तो झुकाव हो ही जाता है...
इन गांवों के बड़े-बुज़ुर्ग मिलकर फैसला करते हैं कि किस चुनाव में किसे वोट देना है, इसीलिए किसी भी दल का राजपूत उम्मीदवार यहां आते ही पगड़ी, टीका और तलवार पकड़ लेता है... इन गांवों के दरवाजे पर महाराणा प्रताप की विशालकाय प्रतिमा लगी होती है... यहां तक कि मुस्लिम तोमर के गांवों के प्रवेश द्वार पर भी महाराणा प्रताप की ही मूर्ति बनी होती है... एक मुसलमान बुज़ुर्ग ने कहा कि महाराणा प्रताप हमारे बूढ़े हैं... हमारी शक्ल भले ही बदल गई है, मगर नस्ल तो वही है...
'साठा चौरासी' के एक गांव के हिन्दू राजपूत ने बताया कि स्थानीय चुनाव में मुस्लिम और हिन्दू राजपूत मिलकर राजपूत उम्मीदवार के बारे में फैसला करते हैं... संसदीय चुनावों में भी थोड़ी-बहुत एकता रहती है, मगर यहां दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं... राजनीति इनकी इस ताकत को पहचानने लगी है, इसलिए ध्रुवीकरण के बीज बोए जा रहे हैं... सदियों से मज़हब की दीवारों को पार कर अपने जातीय संबंधों और सरोकारों के बल पर जीने वाले इन लोगों के बीच मौकापरस्त राजनीति भेद पैदा करने लगी है... पहले कौन या ज़्यादा कौन टाइप के बहानों को लेकर मिथक गढ़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई है ।
गनीमत है कि सामाजिक संबंध इतने गहरे हैं कि भेदभाव चुनाव तक ही सीमित रह पाता है... दुहेरा मुस्लिम राजपूत-बहुल गांव है... यहां मस्जिद और दुर्गा मंदिर साथ-साथ हैं, करीब 100 साल से... मुसलमान ही मंदिर का भी रखरखाव करते हैं... हिन्दू समाज की आबादी 20-25 परिवारों की है... शान से हर घर के दरवाज़े पर मुसलमान और हिन्दू मुखिया के नाम लिखे हैं... गांववालों ने कहा, देख लीजिए, हम कैसे मिल-जुलकर रहते हैं... हमारे लिए संबंध महत्वपूर्ण है, संख्या नहीं... कभी कोई विवाद नहीं हुआ...
ऊपरवाला करे, 'साठा चौरासी' इसी तरह अपनी गौरवशाली परंपरा बनाए रखे...
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