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This Article is From May 01, 2014

चुनाव डायरी : बिहार में लालू हांक रहे डंडा! नीतीश क्या खोएंगे, मोदी क्या पाएंगे?

चुनाव डायरी : बिहार में लालू हांक रहे डंडा! नीतीश क्या खोएंगे, मोदी क्या पाएंगे?
उमाशंकर सिंह, बिहार से लौटकर:

बिहार से आ रही ख़बरें राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के लिए उत्साहवर्धक, तो नरेंद्र मोदी के लिए चिंताजनक हैं।

यहां चार दौर की वोटिंग में 27 संसदीय सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं। 30 अप्रैल को जिन सात सीटों के लिए वोट डाले गए, उनमें दरभंगा और मधुबनी भी शामिल हैं। यहां मुस्लिम वोटरों का एकमुश्त वोट उम्मीदवार की हार या जीत तय करता है। ऐसी करीब छह सीटें हैं, जहां इसी तरह की स्थिति है। किशनगंज, भागलपुर, कटिहार और पूर्णिया में वोटिंग 24 अप्रैल को ही हो चुकी है। 7 और 12 मई को बाक़ी बची 13 सीटों के लिए मतदान होगा।

मधुबनी में आरजेडी प्रत्याशी अब्दुल बारी सिद्दीकी की जीत तय मानी जा रही है। हालांकि यहां बीजेपी के उम्मीदवार हुकुमदेव नारायण यादव हैं, जिनके बूते बीजेपी कुछ यादव वोट हासिल करने में भी क़ामयाब रही है। लेकिन बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि यहां ब्राह्मण वोट के बंटने की बात सामने आ रही है। ब्राह्मण परंपरागत तौर पर कांग्रेस पार्टी को वोट करते आ रहे थे, इस बार आरजेडी की तरफ चले गए हैं।

आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन की वजह से यहां से कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार शकील अहमद को मैदान में नहीं उतारा। इसका नतीजा यह हुआ है कि पूरा मुसलमान वोट आरजेडी को गया है। पिछली बार सिद्दीकी 1.62 लाख वोट पाकर हुकुमदेव नारायण यादव से सिर्फ नौ हज़ार वोट से हार गए थे। ग़ौरतलब है कि तब शकील अहमद को एक लाख 10 हज़ार वोट मिले थे।

दरभंगा से आरजेडी के एमएए फातमी भी बीजेपी के कीर्ति आज़ाद पर भारी नज़र आ रहे हैं। कुल मिलाकर लालू का मुस्लिम-यादव समीकरण काम करता नज़र आ रहा है।

बिहार की यात्रा के दौरान जो मोटी बात समझ में आई, वह यह कि यहां दो तरह का एंटी इनकंम्बेंसी फैक्टर काम कर रहा है। एक महंगाई आदि वजहों से केंद्र सरकार के ख़िलाफ है और दूसरा नीतीश सरकार के नौ साल हो चुके हैं, ऐसे में राज्य सरकार के खिलाफ़ भी एंटी इनकम्बेंसी है।

सड़कों का अच्छा होना और बिजली की हालत में सुधार, जहां नीतीश के पक्ष में जाता है, वहीं उद्योग धंधे, रोज़गार के अवसर का न बढ़ना लोगों को अभी भी सता रहा है। शिक्षा व्यवस्था अभी भी पूरी तरह के पटरी पर नहीं है और बेहतर पढ़ाई के लिए छात्रों का बिहार से बाहर का रुख करना बदस्तूर जारी है। पंचायत स्तर तक फैले भ्रष्टाचार से भी नीतीश के खिलाफ रोष है। जेडीयू के निवर्तमान सांसदों के ख़िलाफ़ यह रोष अपना रोल निभा रहा है। बीजेपी के निवर्तमान सांसदों के ख़िलाफ़ भी यही बात लागू होती है।

हुकुमदेव नारायण यादव को लेकर वोटर कहते हैं कि पांच साल में एक बार भी देहरी पर झांकने नहीं आए, काम की बात तो दूर। हालांकि बीजेपी सारा दोष जेडीयू के माथे पर डालकर निकलना चाह रही है, लेकिन वह यह भूल जाती है कि पिछले साल तक गठबंधन सरकार में शामिल थी।

लेकिन यह अकेला एंटी इनकंम्बेंसी फैक्टर नहीं, जिसकी वजह से नीतीश पिछड़ रहे हों और कांग्रेस आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन अच्छा करने जा रही हो। यह बिहार की जातिवादी राजनीति का तकाज़ा है, जो लालू को एक बार ऊपर उठा रहा है। जेडीयू-बीजेपी गठबंधन टूटने से वह विनिंग फॉर्मूला ख़त्म हो गया, जो नीतीश के लिए रामबाण साबित हो रहा था। बीजेपी में मोदी के चढ़ने के साथ ही मुसलमान वोटों का ध्रुवीकरण बिहार में सबसे ज़्यादा रंग दिखा रहा है।

मौक़ा पाते ही लालू ने इस बार के चुनाव को यादवों की मर्यादा से जोड़ दिया। वह यादवों में यह भाव भरने में क़ामयाब रहे हैं कि नीतीश के राज में यादवों की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा है। दूसरी तरफ मुसलमानों को वह यह संदेश देने में क़ामयाब रहे हैं कि बीजेपी-मोदी के ख़िलाफ सिर्फ वही मज़बूती से लड़ सकते हैं। यही वजह है कि स्कूली बच्चों के लिए नीतीश की साइकिल योजना जैसी नीतियों को सराहने वाले मुसलमान भी इस बार जेडीयू से दूर जा चुके हैं। कुल मिलाकर लालू के M-Y समीकरण परवान चढ़ रहा है। ऐसे में वह मौजूदा चार से बढ़कर 14-15 या उससे भी कुछ ज़्यादा सीटें हासिल कर लें, तो अचंभा नहीं होना चाहिए।

यह क़ामयाबी और बड़ी हो सकती थी, लेकिन कई सीटों पर जेडीयू के उम्मीदवार वोट कटुआ के रूप में आरजेडी का रास्ते में मुश्किल पैदा कर रहे हैं। उदाहरण के लिए भागलपुर की सीट को लें, जहां आरजेडी के बुलो मंडल की जीत की गुंजाइश बहुत अधिक है, लेकिन जेडीयू ने यहां अबू कैसर को मैदान में उतारकर मुसलमान वोट में सेंध लगाने की कोशिश की है, जिसका फ़ायदा बीजेपी के शाहनवाज़ हुसैन को मिल सकता है।

जहां तक मोदी की लहर की बात है, तो केंद्र और राज्य सरकार के ख़िलाफ़ एंटी इनकंम्बेंसी के बीच जब लोग विकल्प की तरफ देखते हैं, तो उन्हें सिर्फ मोदी का चेहरा नज़र आता है। बदलाव के नाम पर लोग मोदी की तरफ ही निहार रहे हैं। इसमें भी कोई शक नहीं कि मुसलमान वोटों के ध्रुवीकरण की प्रतिक्रिया में हिंदू वोट में भी ध्रुवीकरण हुआ है, जो बीजेपी के लिए फ़ायदेमंद है।

रामविलास पासवान के एलजेपी से गठबंधन का फ़ायदा भी बीजेपी को हो रहा है। कुल मिलाकर बीजेपी के सीटों की तादाद 18-20 के आसपास रह सकती है। यह पिछली बार के 12 के मुकाबले कहीं अधिक होगी। लेकिन वैसा तो नहीं ही होगा जैसा कि मोदी लहर या मोदी की हवा के तौर पर कहा और दावा किया जा रहा था। बीजेपी यह बढ़ोतरी भी जेडीयू की क़ीमत पर करेगी, जिसकी सीटों की तादाद 20 से सिमट कर 4-5 पर आ सकती है। तो मान लीजिए की बिहार में नीतीश के उम्मीदों के गुब्बारे की हवा निकलने वाली है। वहीं मोदी की हवा भी ज़मीनी हक़ीकत से ऊपर बह रही है।

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