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This Article is From May 19, 2014

चुनाव डायरी : दिल्ली और दिल्ली की सरकार...

चुनाव डायरी : दिल्ली और दिल्ली की सरकार...
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

आजकल खबर ज़ोरों पर है कि क्या आम आदमी पार्टी दिल्ली में एक बार फिर सरकार बनाएगी? ज़ाहिर सी बात है 70 सीटों की विधानसभा में आम आदमी पार्टी के पास 27 विधायक हैं। (28 थे लेकिन एक को पार्टी ने निकाल दिया)

तो सरकार बनाने के लिए समर्थन कांग्रेस के आठ विधायकों का लेना होगा, हालांकि संख्या 36 की होनी ज़रूरी है, लेकिन बीजेपी के तीन विधायक क्योंकि अब संसद पहुंच गए हैं तो कांग्रेस के समर्थन से सरकार बन तो सकती है।

लेकिन कहानी इस गुणा भाग की नहीं है, कहानी ये है कि आम आदमी पार्टी का लोकसभा में प्रदर्शन खराब रहा है, अपने घर दिल्ली की सभी सीटें तो हारे ही साथ ही अरविन्द केजरीवाल को छोड़ दिल्ली से बाहर सभी बड़े नेताओं की ज़मानत ज़ब्त हो गई
और दिल्ली ही की बात कर लो तो यहां 60 विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने बढ़त बनाई जबकि आम आदमी पार्टी केवल 10 में ही बढ़त बरकरार रख सकी।

आम आदमी पार्टी में आवाज़ उठ रही है कि हमको सरकार बनानी चाहिए और जो लोग ये आवाज़ उठा रहे हैं उनके पास इसकी वजह भी हैं।

पहला, दिल्ली में सरकार छोड़ने की वजह से पूरे देश में पार्टी से नाराज़गी बढ़ी और पार्टी के लिए माहौल खराब हो गया, इसलिए इस बार सरकार बनाकर अपनी शासन क्षमता को साबित करना चाहिए। दूसरा, मोदी की हवा इतनी प्रचंड है कि अगर विधानसभा चुनाव हुए तो शायद बीजेपी यहां भी पूर्ण बहुमत से सरकार बना ले।

तीसरा, पार्टी लगातार चुनाव लड़ रही है और डोनेशन देने वाले भी कब तक अपनी वाइट मनी देते रहेंगे। खासतौर से तब जब पार्टी दिल्ली में ही हार गई और दिल्ली का सबसे बड़ा वोटर मिडिल क्लास नमो जाप कर रहा हो। चौथा, लगातार चुनाव लड़कर सब थके हुए हैं और वालंटियर्स का मनोबल भी इस समय गिरा हुआ है, ऐसे में चुनाव में ना जाकर सरकार बनायी जाए और अपनी गलती मानी जाए।

लेकिन, दूसरा धड़ा इस बात से सहमत नहीं है, उसका कहना है कि अगर सरकार बनाईं तो उस नैतिक आधार का क्या होगा जिसका राग पिछले तीन महीने से सरकार छोड़ने के बाद पार्टी अलाप रही थी, दूसरा, कांग्रेस पर वो भरोसा कैसे करे क्योंकि कांग्रेस के वोट बैंक पर कब्ज़ा करके आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का दिल्ली से सफाया किया है और कांग्रेस की पूरी कोशिश होगी कि किसी तरह इस पार्टी को निपटाया जाए तभी उसका अस्तित्व बचेगा।

तीसरा, अब सरकार बनाने का सन्देश ये भी जा सकता है कि आप को भी अब सत्ता का लालच हो गया है, और चौथा इस पूरे घटनाक्रम से पार्टी की अपरिपक्वता एक मिसाल बन जाएगी।

वैसे खबर निकलते ही आप ने कहा कि सरकार बनाने का कोई सवाल ही नहीं उठता तो कांग्रेस बोली कोई समर्थन नहीं देंगे। अब आप को तो क्या ये खबर यहीं खत्म मान ली जाए? यानी सरकार नहीं बन रही दिल्ली वालों की?

इसके लिए हमें कांग्रेस की हालत पर गौर फरमाना पड़ेगा
दिल्ली में विधानसभा में उसके आठ विधायक हैं और अब हुए लोकसभा में वह एक भी विधानसभा सीट पर बढ़त नहीं बना पाई।
सियासी हलकों में सब इस बात पर सहमत हैं कि दिल्ली में फिर चुनाव हुए तो कांग्रेस शायद एक भी सीट न जीत पाए क्योंकि लोकसभा चुनाव में केवल 15 फीसदी वोटों के साथ दिल्ली में कांग्रेस अप्रासंगिक हो गई है।

यानी उसके पास आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवाने से बढ़िया कोई विकल्प नहीं है।

वैसे आम आदमी पार्टी इसपर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है लेकिन आम आदमी पार्टी कोई कदम तब आगे बढ़ाना चाहेगी जब कांग्रेस खुद सरकार बनवाना चाहे और ऐलान करे कि दिल्ली की जनता के हित और बीजेपी को रोकने के लिए वो आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर चाहती है कि वो एक बार फिर दिल्ली वालों से किए वादे पूरे करे।

आप का अपनी तरफ से पहल करना मुश्किल लगता है क्योंकि इससे उसकी साख पर बट्टा लग सकता है क्योंकि पार्टी का सिद्धांत ही गठबंधन के लिए मना करता है और पिछली बार भी कांग्रेस ने खुद ही समर्थन दिया था। आप ने मांगा नहीं था ऐसे में खुद समर्थन कैसे मांग ले?

उधर, कांग्रेस भी अपनी तरफ से ऐलान नहीं करना चाह रही वो चाह रही है कि आम आदमी पार्टी झुके और खुद समर्थन की मांग करे। आखिर जो भी हो कांग्रेस है तो नेशनल पार्टी ही न। इतनी आसानी से कैसे उस पार्टी के सामने झुक जाए जिसने उसके घर से उसको निकाल दिया।

यानी पहले 'आप' और पहले 'कांग्रेस' का खेल दिल्ली में अभी चल रहा है जो कुछ दिन अभी और चल सकता है।

एक पत्रकार के तौर पर मैं अपना पक्ष नहीं रख सकता, लेकिन क्योंकि दिल्ली कवर करता हूं और हूं तो एक नागरिक ही
इसलिए ये ज़रूर कहना चाहता हूं इस समय दिल्ली वालों को अपनी चुनी हुई सरकार की सबसे ज़्यादा जरूरत है। गर्मी का मौसम है पानी की किल्लत बढ़ने लगी है, बिजली घंटों गायब रहने की खबरें आने लगी हैं, इसके अलावा दिल्ली में ज़्यादातर काम
सरकार ना होने की वजह से रुके हुए हैं और अफसरशाही हावी है।

कुल मिलाकर दिल्ली में कोई कहने सुनने वाला नहीं है, सरकार किसी की भी हो.… अगर होगी तो कोई तो होगा जो समस्या दूर करेगा, कोई तो सुनेगा जनता की, कोई तो होगा जो आश्वासन देगा कि चिंता ना करें आपका काम हो जाएगा।

अगले कुछ दिन दिल्ली की राजनीति और दिल्ली के नागरिकों के लिए अहम रहेंगे।

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