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This Article is From May 29, 2014

डायरी : शिक्षा के मसले पर स्मृति ईरानी को ही क्यों घेरा जा रहा है...?

डायरी : शिक्षा के मसले पर स्मृति ईरानी को ही क्यों घेरा जा रहा है...?
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

कई लोगों के लिए यह हैरानी का विषय था, जब स्मृति ईरानी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं और बीजेपी सत्ता में आई है, तभी से कई विरोधाभास देखने को मिल रहे हैं, लेकिन इस समय स्मृति ईरानी की शिक्षा सोशल मीडिया पर लोगों के लिए बहस का मुद्दा बनी हुई है। विरोध करने वाले और पक्ष में कहने वाले दोनों ही अपनी बातों में कुतर्कों का सहारा ले रहे हैं।

क्या यह तर्क पर्याप्त है कि कुछ महान लोग पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने महान कार्य किए? और अगर उन्होंने महान कार्य किए, तो इसीलिए भले ही आप पढ़े-लिखे नहीं हैं, तो भी चलेगा। सारे साक्षरता अभियान खत्म कर दीजिए, इस तर्क पर। इस हिसाब से आप अपनी शिक्षा संबंधित हलफनामा कहीं भी जमा नहीं करवाइए, इसकी ज़रूरत क्या है, कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए भी? लेकिन ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि यह एक फिल्टर की तरह काम करता है। हिन्दुस्तान की शिक्षा पद्धति की खामी ही यही है कि आप किसी के बौद्धिक स्तर को, उसकी समझ को, उसकी डिग्री से, उसके नंबरों से नहीं आंक सकते। देखते हैं, स्मृति ईरानी इस पद्धत्ति में क्या अंतर ला पाएंगी।

स्मृति ईरानी को जनता ने कभी सांसद बनने लायक नहीं समझा, लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें पूरे भारत के मानव संसाधन मंत्री के तौर पर चुना है। लेकिन मुझे कहीं भी लोकतंत्र का, बहुमत के फैसले का हवाला देने वाले लोगों की आवाज़ें नहीं सुनाई दे रहीं। यह मुझे मेरे मित्र नितिन की कही हुई बात याद दिला रहा है कि यह लोकतंत्र नहीं, लोकतंत्रनुमा सिस्टम है, क्योंकि हमने मनमोहन सिंह को नहीं चुना था, उन्हें सोनिया गांधी ने चुना था। हमने सोनिया गांधी को भी कांग्रेस की अध्यक्ष के रूप में नहीं चुना था, जो सरकार के फैसलों पर मुहर लगाती रहीं। यही सिलसिला जारी है, बदली हुई सरकार में भी।

स्मृति ईरानी को ही क्यों घेरा जा रहा है शिक्षा के मसले पर। क्या भारत की राजनीति में ऐसे उदाहरण और नहीं हैं? कितने ही सांसद हैं, जिन्हे जनता ने चुना है, उनकी शिक्षा और यहां तक की तमीज का स्तर देखे बिना। क्या इसका कारण यह है कि वह महिला हैं? हो सकता है इसलिए, क्योंकि उनकी पृष्ठभूमि एक मॉडल की है, और इसीलिए सीधे तौर पर महिला विरोधी बयान से बचकर यह रुख अपनाया गया है। अतीत में कांग्रेस के नेता संजय निरूपम एक चैनेल डिबेट के दौरान स्मृति ईरानी की पृष्ठभूमि को लेकर छिछली टिप्पणी कर चुके हैं। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर उनकी डिग्री को लेकर सवाल खड़े करते रहे हैं। यहां तक कि उनकी पृष्ठभूमि और वह क्या काम करती थीं, इस मसले को भी वक्त-बेवक्त उछाला जाता रहा है।

लेकिन क्या यह लोगों के तर्कों का ही मसला है? एडीआर संस्था की वेबसाइट पर लोकसभा चुनाव 2004 के डाटा को आप खंगालेंगे तो पाएंगे कि स्मृति ईरानी ग्रेजुएट हैं। उन्होंने यही हलफनामा दिया है। लेकिन वर्ष 2014 के चुनाव के हलफनामे के अनुसार स्मृति ईरानी ग्रेजुएट नहीं हैं। बैचलर ऑफ कॉमर्स पार्ट-1 उन्होंने पढ़ा है, जो कोई डिग्री नहीं है और इसे वहां लिखे जाने की भी ज़रूरत नहीं थी। क्या यह फर्जीवाड़ा नहीं है? क्या मंत्री के पॉलिसी चुनाव को आप इस बात का संज्ञान लेकर नहीं देखेंगे?

एक समय था, जब स्मृति ईरानी धरने पर बैठी थीं और मोदी जी का इस्तीफा मांग रही थीं, लेकिन बाद में पार्टी दबाव के कारण उठ गईं। तब तक कोर्ट का कोई फैसला नहीं आया था। जितना फुटेज चाहिए था, वह ले लिया था, लेकिन फिर राजनितिक भविष्य बचाए रखने के लिए पलटी मार दी थी। आज के समय में इसे 'ड्रामा' कहा जाता है, तब इसे 'धरना' कहा जाता था। राजनितिक भविष्य के लिए, पार्टी के दबाव में आने वाले मंत्री के पॉलिसी चुनाव को आप इस बात का संज्ञान लेकर नहीं देखेंगे?

मिडिल क्लास इस मुद्दे को उछालता रहा है कि निरक्षर लोग, कम पढ़े-लिखे लोग क्यों हमारे देश को चला रहे हैं। मुझे जनता की सोच पर अब ज़्यादा भरोसा रहा नहीं, क्योंकि अगर मोदी जी सचिन तेंदुलकर को मंत्री बना देते तो उनकी शिक्षा के बारे में नहीं पूछा जाता। किस मंत्रालय के लायक हैं या नहीं, यह भी नहीं पूछा जाता। नजरिये को अच्छे और बुरे की श्रेणी में मत बांटिए, क्योंकि नज़रिया सिर्फ अच्छा या बुरा नहीं होता, यह किसी के लिए अच्छा, और किसी के लिए बुरा होता है। यह तो आप देख ही रहे होंगे।

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