
Difference between impeachment and no-confidence: महाभियोग और अविश्वास प्रस्ताव, लोकतंत्र में जवाबदेही के दो अलग-अलग रास्ते हैं. हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग की चर्चा और मध्य प्रदेश में नगरीय निकायों में अविश्वास प्रस्ताव की अवधि बढ़ाने का प्रस्ताव सुर्खियों में रहा है. तो चलिए जानते हैं, इन दोनों में क्या फर्क है और ताजा घटनाओं से क्यों ये फिर चर्चा में हैं.
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क्या होता है महाभियोग
महाभियोग एक खास तरह की संवैधानिक प्रक्रिया है. इसका इस्तेमाल मुख्य चुनाव आयुक्त, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज जैसे बड़े पदों पर बैठे लोगों को हटाने के लिए किया जाता है, जब उन पर गंभीर आरोप लगते हैं जैसे भ्रष्टाचार, कदाचार या काम करने में अक्षमता. महाभियोग की प्रोसेस शुरू करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों को एक लिखित नोटिस देना पड़ता है. इस नोटिस पर लोकसभा में कम से कम 100 सांसद या राज्यसभा में कम से कम 50 सांसद के साइन होना जरूरी है. तभी ये प्रस्ताव आगे बढ़ सकता है. फिर एक जांच समिति बनती है. अगर आरोप सही साबित होते हैं तो प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में जाता है, जहां इसे पास करने के लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए. आखिर में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही महाभियोग पूरा होता है.
18 अगस्त 2025 को इंडिया गठबंधन ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार किया. आरोप था कि बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर गड़बड़ियां हुईं और उसमें पक्षपात दिखा.
अविश्वास प्रस्ताव: राजनीतिक ताकत की परीक्षा
अविश्वास प्रस्ताव पूरी तरह राजनीतिक प्रक्रिया है. इसका मकसद यह देखना होता है कि सरकार या किसी चुने हुए पदाधिकारी के पास अब भी बहुमत है या नहीं. लोकसभा में इसे लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों का समर्थन चाहिए और अगर साधारण बहुमत से यह पास हो जाए तो प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमंडल इस्तीफा दे देते हैं. यही नियम राज्य स्तर और लोकल निकायों में भी लागू होता है.
मध्य प्रदेश सरकार ने अभी प्रस्ताव रखा है कि नगरीय निकायों में अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि तीन साल से बढ़ाकर साढ़े चार साल कर दी जाए. सरकार का कहना है कि इससे स्थिरता आएगी, जबकि विपक्ष का आरोप है कि इससे उनकी जांच और विरोध की भूमिका कमजोर हो जाएगी.
महाभियोग बनाम अविश्वास प्रस्ताव
महाभियोग एक तरह से संवैधानिक जिम्मेदारी तय करने का टूल है. यह सिर्फ उन बड़े पदों पर लागू होता है जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त या जज. इसमें लंबी जांच होती है और पास होने के लिए संसद में बड़ा बहुमत चाहिए. वहीं अविश्वास प्रस्ताव राजनीति की ताकत को परखने का तरीका है. यह सरकार या लोकल बॉडी के चुने गए चेयरपर्सन पर लागू होता है. इसे पास कराने के लिए बहुमत जरूरी है.
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि महाभियोग जहां संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की जवाबदेही तय करता है, वहीं अविश्वास प्रस्ताव सीधे-सीधे राजनीति की परीक्षा लेता है. दोनों ही लोकतंत्र को मजबूत करते हैं, लेकिन अपने-अपने तरीके से.
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