प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
दिल्ली में एक बार फिर ऑड-ईवन योजना लागू हो गई है, जो 30 अप्रैल तक चलेगी। योजना का यह दूसरा चरण है। इससे पहले यह जनवरी में 15 दिन के लिए लागू हुई थी। इस योजना की शुरुआत दिल्ली में प्रदूषण के खतरनाक स्तर तक पहुंच जाने के कारण की गई थी। उस समय अलग-अलग सर्वे आए थे, जिनमें प्रदूषण के स्तर को लेकर भिन्न दावे किए गए थे। विशेषज्ञ भले ही कुछ भी कहें, लेकिन इस योजना कुछ ऐसे फायदे हैं, जिन्हें कोई भी नकार नहीं सकता-
ईंधन की महाबचत
ईंधन ऐसा स्रोत है, जो समय के साथ खत्म हो जाएगा। ऐसे में न केवल सरकार बल्कि तेल कंपनियां भी समय-समय पर ईंधन की बचत के लिए कैंपेन चलाती हैं और लोगों से इसके लिए अपील करती हैं, लेकिन आमतौर पर ऐसा करना संभव नहीं हो पाता। ऑड-ईवन लागू होने से सड़क पर गाड़ियों की संख्या लगभग आधी हो जाएगी। मान लीजिए यदि आधी नहीं भी हो पातीं, तो अपेक्षाकृत रूप से काफी कम तो हो ही जाएंगी। ऐसे में दिनभर में ईंधन की खपत आम दिनों (जब सभी गाड़ियां सड़क पर होती हैं) की अपेक्षा काफी कम हो जाएगी। यदि आंकड़ों पर गौर करें, तो दिल्ली में लगभग 12 लाख निजी गाड़ियां हैं, जिनमें से आधे पर ऑड-ईवन लागू होगा। अब उदाहरण के तौर पर देखें, तो यदि हम आम दिनों में दिनभर में 12 लाख लीटर ईंधन खर्च कर रहें हैं, तो ऑड-ईवन लागू होने पर यह लगभग आधा हो जाएगा। अब कल्पना कीजिए कि हम महीनेभर में कितना ईंधन बचा सकते हैं।
बचत का अर्थशास्त्र
आप सोच रहे होंगे कि भला ऑड-ईवन से पैसे की बचत कैसे हो सकती है। तो हम आपको बता रहे हैं कि यह कैसे आपके पैसों की भी बचत कर सकता है। अब जरा सोचिए कि ऑड-ईवन लागू होने पर आप ऑफिस कैसे जाएंगे। या तो मेट्रो से या कार पूल के द्वारा। यदि आप मेट्रो से यात्रा करते हैं, तो आपके प्रतिदिन के पेट्रोल-डीजल के खर्च की तुलना में वह सस्ती पड़ती है, वहीं यदि आप कार पूल का सहारा लेते हैं, तो मान लीजिए कि एक कार में ऐसे 4 लोग यात्रा करते हैं, जो पहले 4 अलग-अलग कारों से जाते थे। अब यदि एक कार का प्रतिदिन का खर्च 300 रुपए है, तो 4 कारों का खर्च 1200 रुपए प्रतिदिन होगा, अब इस खर्च को महीनेभर के खर्च के रूप में देखिए। मतलब यह कि जो 4 लोग अलग-अलग कारों पर 1200 रुपए प्रतिदिन खर्च कर रहे थे, वह एक साथ मात्र 300 रुपए प्रतिदिन के खर्च पर ऑफिस पहुंच सकते हैं, तो हुई न पैसों की बंपर बचत।
ट्रैफिक समस्या से निजात
दिल्ली की सड़क पर चलने वाले किसी भी व्यक्ति से यदि आप पूछेंगे कि उसे किस समस्या से सबसे अधिक जूझना पड़ता है, तो वह यही कहेगा कि साहब यहां का ट्रैफिक बहुत खराब है। दरअसल एक समय में जितनी गाड़ियां दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती हैं, उसके अनुपात में सड़कें पर्याप्त चौड़ी नहीं है। फ्लाइओवर तो बनाए गए हैं, लेकिन उन पर भी जाम की स्थिति बनी रहती है। खासतौर पर 'पीक अवर' में, जिसे सामान्य शब्दों में ऑफिस जाने और वहां से लौटने का समय कह सकते हैं, हर कहीं जाम और बस जाम ही दिखता है। ऑड-ईवन लागू होने पर जब गाड़ियों की संख्या लगभग आधी हो जाती है, तो जाम की स्थिति लगभग खत्म हो जाती है। ऐसा हम पिछले अनुभव और लोगों से बातचीत के आधार पर कह सकते हैं।
प्रदूषण में कमी
इस पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। ऑड-ईवन लागू होने के बाद पिछली बार कई सर्वे किए गए जिनमें से कई में प्रदूषण कम बताया गया, तो कुछ में बढ़ा हुआ भी बता दिया गया, लेकिन जरा आप राजनीति से परे सामान्य रूप में सोचिए कि जब सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी कम हो जाएगी, तो जाहिर है कि उनसे कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा। यदि कार्बन उत्सर्जन कम होगा, तो उससे प्रदूषण पर कुछ तो फर्क पड़ेगा ही। यह बात अलग है कि प्रदूषण में गाड़ियों के साथ-साथ उद्योगों का भी अहम रोल है या यूं कहें कि अधिक रोल है। फिर भी हम वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नकार नहीं सकते। ऐसे में ऑड-ईवन से इसमें भी कुछ फायदा तो होगा ही।
दुघर्टना/रोड रेज की संभावना कम
यदि आप गौर करेंगे, तो ऊपर बताए गए सभी फायदे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अब यह फायदा भी कुछ अलग नहीं है। ऑड-ईवन के कारण जब सड़क पर गाड़ियां कम होंगी, तो आपाधापी की स्थिति नहीं बनेगी, ऐसे में गाड़ियां आसानी से दौड़ सकेंगी। इससे वह वापस में टकराएंगी नहीं और दुर्घटनाएं अपेक्षाकृत रूप से कम हो जाएंगी। इसके साथ रोड रेज की घटनाओं में भी कमी आएगी। आपने देखा होगा कि जल्दी पहुंचने के चक्कर में जाम की स्थिति बनने पर यदि आपकी गाड़ी जरा-सी भी दूसरी गाड़ी को छू जाती है, तो कई बार लोग आपे से बाहर हो जाते हैं और गुस्से में मारपीट कर बैठते हैं। सड़कें खाली होने पर इन घटनाओं से भी कुछ हद तक निजात मिलेगी।
ईंधन की महाबचत
ईंधन ऐसा स्रोत है, जो समय के साथ खत्म हो जाएगा। ऐसे में न केवल सरकार बल्कि तेल कंपनियां भी समय-समय पर ईंधन की बचत के लिए कैंपेन चलाती हैं और लोगों से इसके लिए अपील करती हैं, लेकिन आमतौर पर ऐसा करना संभव नहीं हो पाता। ऑड-ईवन लागू होने से सड़क पर गाड़ियों की संख्या लगभग आधी हो जाएगी। मान लीजिए यदि आधी नहीं भी हो पातीं, तो अपेक्षाकृत रूप से काफी कम तो हो ही जाएंगी। ऐसे में दिनभर में ईंधन की खपत आम दिनों (जब सभी गाड़ियां सड़क पर होती हैं) की अपेक्षा काफी कम हो जाएगी। यदि आंकड़ों पर गौर करें, तो दिल्ली में लगभग 12 लाख निजी गाड़ियां हैं, जिनमें से आधे पर ऑड-ईवन लागू होगा। अब उदाहरण के तौर पर देखें, तो यदि हम आम दिनों में दिनभर में 12 लाख लीटर ईंधन खर्च कर रहें हैं, तो ऑड-ईवन लागू होने पर यह लगभग आधा हो जाएगा। अब कल्पना कीजिए कि हम महीनेभर में कितना ईंधन बचा सकते हैं।
बचत का अर्थशास्त्र
आप सोच रहे होंगे कि भला ऑड-ईवन से पैसे की बचत कैसे हो सकती है। तो हम आपको बता रहे हैं कि यह कैसे आपके पैसों की भी बचत कर सकता है। अब जरा सोचिए कि ऑड-ईवन लागू होने पर आप ऑफिस कैसे जाएंगे। या तो मेट्रो से या कार पूल के द्वारा। यदि आप मेट्रो से यात्रा करते हैं, तो आपके प्रतिदिन के पेट्रोल-डीजल के खर्च की तुलना में वह सस्ती पड़ती है, वहीं यदि आप कार पूल का सहारा लेते हैं, तो मान लीजिए कि एक कार में ऐसे 4 लोग यात्रा करते हैं, जो पहले 4 अलग-अलग कारों से जाते थे। अब यदि एक कार का प्रतिदिन का खर्च 300 रुपए है, तो 4 कारों का खर्च 1200 रुपए प्रतिदिन होगा, अब इस खर्च को महीनेभर के खर्च के रूप में देखिए। मतलब यह कि जो 4 लोग अलग-अलग कारों पर 1200 रुपए प्रतिदिन खर्च कर रहे थे, वह एक साथ मात्र 300 रुपए प्रतिदिन के खर्च पर ऑफिस पहुंच सकते हैं, तो हुई न पैसों की बंपर बचत।
ट्रैफिक समस्या से निजात
दिल्ली की सड़क पर चलने वाले किसी भी व्यक्ति से यदि आप पूछेंगे कि उसे किस समस्या से सबसे अधिक जूझना पड़ता है, तो वह यही कहेगा कि साहब यहां का ट्रैफिक बहुत खराब है। दरअसल एक समय में जितनी गाड़ियां दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती हैं, उसके अनुपात में सड़कें पर्याप्त चौड़ी नहीं है। फ्लाइओवर तो बनाए गए हैं, लेकिन उन पर भी जाम की स्थिति बनी रहती है। खासतौर पर 'पीक अवर' में, जिसे सामान्य शब्दों में ऑफिस जाने और वहां से लौटने का समय कह सकते हैं, हर कहीं जाम और बस जाम ही दिखता है। ऑड-ईवन लागू होने पर जब गाड़ियों की संख्या लगभग आधी हो जाती है, तो जाम की स्थिति लगभग खत्म हो जाती है। ऐसा हम पिछले अनुभव और लोगों से बातचीत के आधार पर कह सकते हैं।
प्रदूषण में कमी
इस पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। ऑड-ईवन लागू होने के बाद पिछली बार कई सर्वे किए गए जिनमें से कई में प्रदूषण कम बताया गया, तो कुछ में बढ़ा हुआ भी बता दिया गया, लेकिन जरा आप राजनीति से परे सामान्य रूप में सोचिए कि जब सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी कम हो जाएगी, तो जाहिर है कि उनसे कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा। यदि कार्बन उत्सर्जन कम होगा, तो उससे प्रदूषण पर कुछ तो फर्क पड़ेगा ही। यह बात अलग है कि प्रदूषण में गाड़ियों के साथ-साथ उद्योगों का भी अहम रोल है या यूं कहें कि अधिक रोल है। फिर भी हम वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नकार नहीं सकते। ऐसे में ऑड-ईवन से इसमें भी कुछ फायदा तो होगा ही।
दुघर्टना/रोड रेज की संभावना कम
यदि आप गौर करेंगे, तो ऊपर बताए गए सभी फायदे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अब यह फायदा भी कुछ अलग नहीं है। ऑड-ईवन के कारण जब सड़क पर गाड़ियां कम होंगी, तो आपाधापी की स्थिति नहीं बनेगी, ऐसे में गाड़ियां आसानी से दौड़ सकेंगी। इससे वह वापस में टकराएंगी नहीं और दुर्घटनाएं अपेक्षाकृत रूप से कम हो जाएंगी। इसके साथ रोड रेज की घटनाओं में भी कमी आएगी। आपने देखा होगा कि जल्दी पहुंचने के चक्कर में जाम की स्थिति बनने पर यदि आपकी गाड़ी जरा-सी भी दूसरी गाड़ी को छू जाती है, तो कई बार लोग आपे से बाहर हो जाते हैं और गुस्से में मारपीट कर बैठते हैं। सड़कें खाली होने पर इन घटनाओं से भी कुछ हद तक निजात मिलेगी।
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