टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया में टी-20 सीरीज जीतकर बड़ी उम्मीदें जगा दी हैं।
टी-20 वर्ल्डकप के लिए टीम का चयन वैसा ही हुआ, जैसा कि इस फॉर्मेट का खेल होता है। एकदम अनिश्चित और रोमांच से भरपूर। जिस टीम ने ऑस्ट्रेलिया में किसी भी तरह के फॉर्मेट में 140 साल बाद क्लीन स्वीप किया हो, उसमें वैसे भी ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं थी, लेकिन उस जीत ने अगर किसी एक व्यक्ति को एक बार फिर सबसे ज्यादा अधिकार और अपने हिसाब से निर्णय लेने की ताकत बख्शी, तो वह और कोई नहीं कप्तान महेंद्र सिंह धोनी हैं।
(यह भी पढ़े- जानिए, टीम इंडिया के उन रणबांकुरों के बारे में जो निकलेंगे टी-20 वर्ल्ड कप अभियान पर)
इस टीम में उनकी पसंद और वर्किंग स्टाइल की झलक देखी जा सकती है। सबसे बड़ा सवाल अजिंक्य रहाणे और मनीष पांडे के बीच में से किसी एक को चुनने का था। धोनी बड़े टूर्नामेंट में नए की जगह पुराने खिलाडि़यों पर ही दांव लगाते हैं। जाहिर है, उन्होंने मनीष पांडे की जगह रहाणे के साथ ही जाना बेहतर समझा। जबकि आईपीएल और हाल ही में ऑस्ट्रेलिया को इकलौते वन-डे में हराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले पांडे को कप्तान का समर्थन नहीं मिला।
दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया में बेंच पर ही बैठे रहने वाले और टीम संयोजन में फिट नहीं बैठने वाले हरभजन को टीम में जगह दी गई है, इसकी सबसे बड़ी वजह कप्तान ही हैं, क्योंकि उनको भज्जी पर भरोसा है। काश! यही भरोसा इरफान खान के प्रति होता। कभी अपनी शानदार स्विंग से बल्लेबाजों की नाक में दम कर देने वाले और उसके बाद अपने स्ट्रोक्स से चकित कर देने वाले इरफान ने हाल ही में सैयद मुश्ताक अली ट्राफी में भी शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन इसका कोई असर चयनकर्ताओं और भारतीय थिंक टैंक पर न होना परेशान करने वाला है। याद रहे कि कुछ इसी रवैए के कारण आशीष नेहरा पांच साल ‘नेशनल’ कैप से दूर रहे, जबकि वह आईपीएल में शानदार थे और चोट से भी उबर चुके थे। क्या इरफान जैसी प्रतिभा को भी इतनी ही प्रतीक्षा करनी होगी?
इस तरह हम पाते हैं कि चयनकर्ताओं और कप्तान ने एक डिफेंसिव टीम चुनी है। एमएस धोनी, विराट कोहली, रोहित, रैना, युवराज सिंह, अजिंक्य रहाणे, हार्दिक पांड्या, रवींद्र जडेजा, शिखर धवन, आर अश्विन, जसप्रीत बुमराह, आशीष नेहरा के नाम पर तो बहस ही नहीं थी। बहस इसके बाद थी, जिसमें हमें कोई ‘अटैकिंग’ एप्रोच नहीं दिखी। मो. शमी की फिटनेस हाल ही में आस्ट्रेलिया में धोखा दे चुकी है, इसलिए उन्हें थोड़ा और समय देना चाहिए था। इरफान उनकी जगह आ सकते थे। हरभजन सिंह ने घरेलू सीरीज में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कुछ खास नहीं किया था, ऐसा लगता है कि वह भी बस ‘अतीत’ की छाया में खिलाए जा रहे हैं। उनकी जगह ऑलराउंडर गुरकीरत मान हो सकते थे, क्योंकि भारतीय मैदानों में उनका प्रदर्शन शानदार है और वह एक ‘पैकेज’ खिलाड़ी हैं।
और आखिर में पवन नेगी। हम उस खिलाड़ी के बारे में क्या कहें, जिसकी लॉटरी लगी हो। मप्र से खेलने वाले जलज सक्सेना उनसे काफी पहले से बल्लेबाजी और स्पिन गेंदबाजी में शानदार प्रदर्शन करते आ रहे हैं, लेकिन शायद चेन्नई और दिल्ली से अधिक दूरी और उनकी टीम के औसत प्रदर्शन ने उनके प्रदर्शन को फीका कर दिया है।
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इस टीम में उनकी पसंद और वर्किंग स्टाइल की झलक देखी जा सकती है। सबसे बड़ा सवाल अजिंक्य रहाणे और मनीष पांडे के बीच में से किसी एक को चुनने का था। धोनी बड़े टूर्नामेंट में नए की जगह पुराने खिलाडि़यों पर ही दांव लगाते हैं। जाहिर है, उन्होंने मनीष पांडे की जगह रहाणे के साथ ही जाना बेहतर समझा। जबकि आईपीएल और हाल ही में ऑस्ट्रेलिया को इकलौते वन-डे में हराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले पांडे को कप्तान का समर्थन नहीं मिला।
दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया में बेंच पर ही बैठे रहने वाले और टीम संयोजन में फिट नहीं बैठने वाले हरभजन को टीम में जगह दी गई है, इसकी सबसे बड़ी वजह कप्तान ही हैं, क्योंकि उनको भज्जी पर भरोसा है। काश! यही भरोसा इरफान खान के प्रति होता। कभी अपनी शानदार स्विंग से बल्लेबाजों की नाक में दम कर देने वाले और उसके बाद अपने स्ट्रोक्स से चकित कर देने वाले इरफान ने हाल ही में सैयद मुश्ताक अली ट्राफी में भी शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन इसका कोई असर चयनकर्ताओं और भारतीय थिंक टैंक पर न होना परेशान करने वाला है। याद रहे कि कुछ इसी रवैए के कारण आशीष नेहरा पांच साल ‘नेशनल’ कैप से दूर रहे, जबकि वह आईपीएल में शानदार थे और चोट से भी उबर चुके थे। क्या इरफान जैसी प्रतिभा को भी इतनी ही प्रतीक्षा करनी होगी?
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और आखिर में पवन नेगी। हम उस खिलाड़ी के बारे में क्या कहें, जिसकी लॉटरी लगी हो। मप्र से खेलने वाले जलज सक्सेना उनसे काफी पहले से बल्लेबाजी और स्पिन गेंदबाजी में शानदार प्रदर्शन करते आ रहे हैं, लेकिन शायद चेन्नई और दिल्ली से अधिक दूरी और उनकी टीम के औसत प्रदर्शन ने उनके प्रदर्शन को फीका कर दिया है।
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