प्रदीप कुमार की कलम से : वे पांच पहलू, जिसमें चूक गए कैप्टन कूल धोनी

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

टेस्ट से महेंद्र सिंह धोनी के संन्यास के साथ ही भारतीय क्रिकेट का एक दौर बीत गया। ऐसा दौर, जिसमें महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी मनमर्जी से भारतीय टीम को चलाया। भारतीय क्रिकेट में इस दौरान कोई खिलाड़ी उनके कद के आसपास नहीं नजर आया। उन्हें कामयाबी भी खूब मिली। कामयाबी के साये में उनकी नाकामियां भी छुपती रहीं। अब जब उन्होंने टेस्ट से संन्यास ले लिया है, तो क्या आपको उनकी कोई नाकामी याद आ रही है। एक नजर पांच उन मौकों पर, जहां पर धोनी एक कप्तान के तौर पर न केवल नाकाम हुए, बल्कि उनका खुद का कद भी कमतर हुआ।

1-खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध नहीं
महेंद्र सिंह धोनी ने कप्तान के तौर पर भले करिश्माई कामयाबी हासिल की हो, लेकिन टीम के साथी खिलाड़ियों के साथ उनके संबंध बहुत मधुर नहीं थे। वे अपने साथी के लिए उपलब्ध भी नहीं होते। इसका खुलासा तब हुआ जब वीवीएस लक्ष्मण ने अपने संन्यास की घोषणा की। भारत के लिए लंबे समय तक मैच विनर खिलाड़ी की भूमिका निभाने वाले वीवीएस लक्ष्मण ने जब टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के मसले पर धोनी से संपर्क करना चाहा, तो वह बार-बार कोशिश करने के बाद भी कामयाब नहीं हुए। तब वीवीएस लक्ष्मण ने कहा था, मैं धोनी से संपर्क नहीं कर सका, वे बिज़ी आदमी हैं। इस मसले पर धोनी ने कहा था, मुझसे संपर्क करना हमेशा मुश्किल होता है। मैंने सुधरने की कोशिश की, लेकिन ये संभव नहीं हो पाया। महेंद्र सिंह धोनी की शादी में भी टीम इंडिया की ओर से केवल सुरेश रैना नजर आए थे।

2-सहवाग, सचिन पर सवाल
2008 में ऑस्ट्रेलिया में 0-4 से करारी हार के बाद धोनी आलोचना के घेरे में थे। टीम वनडे सीरीज़ में भी उम्मीद के मुताबिक नहीं खेल पा रही थी। ऐसे में धोनी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीनियर खिलाड़ियों पर निशाना साधकर टीम को दो गुटों में विभक्त कर दिया। उन्होंने सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर की फील्डिंग पर सवाल उठाते हुए उन्हें स्लो फील्डर कहा। सचिन और सहवाग को लेकर धोनी की ओलचना पर सवाल भी खूब उठे और सहवाग ने फील्ड में ही जवाब देने का मन बनाकर बेहतर कैच लपका, लेकिन टीम में दरार आ चुकी थी, सहवाग ने यह भी कहा कि अगर धोनी उन्हें ब्रेक देना चाहते हैं, तो वह कप्तान हैं, ऐसा कर सकते हैं। उस दौर में टीम इंडिया में गुटबाजी और तनाव की ख़बरें चरम पर थीं, लेकिन इसकी शुरुआत टीम के कप्तान धोनी ने ही की थी।

3-मीडिया से तनातनी
टीम इंडिया के कप्तान के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी के मीडिया के साथ रिश्ते हमेशा तनातनी वाले रहे। टीम में गुटबाजी की ख़बरों का जवाब देने के लिए उन्होंने 2009 के टी-20 वर्ल्डकप के दौरान पूरी टीम इंडिया को प्रेस कॉन्फ्रेंस में खड़ा कर दिया। 2013 में जब आईपीएल में सट्टेबाज़ी और फिक्सिंग का विवाद गहराया तो धोनी ने इस विवाद पर मीडिया में चुप्पी साध ली। अपने अंतिम टेस्ट सीरीज में भी पहले उन्होंने खुद विराट कोहली और शिखर धवन के बीच तनाव की बात कही और उसके बाद इस पहलू पर मीडिया पर कटाक्ष किया।

4-सट्टेबाज़ी में उछला नाम?
महेंद्र सिंह धोनी का नाम आईपीएल सीजन 6 की सट्टेबाज़ी और स्पॉट फिक्सिंग मामले में भी उछला। चाहे उनकी पत्नी साक्षी रावत की विंदू दारा सिंह के साथ तस्वीर रही हो या फिर गुरुनाथ मय्यपन के साथ धोनी की नजदीकियां। इन सबने धोनी को संदेह के घेरे में ला दिया। एक ही वक्त में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान और एन श्रीनिवासन की कंपनी में नौकरी को लेकर कंफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट का मामला भी गरमाया। इतना ही नहीं टीम इंडिया के कप्तान और खुद की स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कंपनी चलाने के लिए भी धोनी की आलोचना हुई। इस मैनजेमेंट कंपनी से जुड़े कई खिलाड़ी धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया की ओर से खेल रहे थे।

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5-विदेशी पिच पर जीत को तरसे
महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट के सबसे कामयाब टेस्ट कप्तान भले हों, लेकिन उनकी कप्तानी में टीम इंडिया का प्रदर्शन विदेशी पिचों पर बहुत अच्छा नहीं रहा। उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने विदेशी मैदानों पर 30 टेस्ट मैचों में कप्तानी की और टीम इसमें 15 टेस्ट हार गई। खासकर ऑस्ट्रेलियाई और इंग्लैंड के मैदानों पर धोनी की कप्तानी निराश करने वाली रही। टीम इंडिया के कप्तान के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी की जब जब कामयाबी की बात होगी, क्रिकेट प्रेमियों को उनकी ये नाकामियां भी याद आएंगी।