
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो).
मुंबई:
क्या चुनाव आचार संहिता के बीच बजट पेश होना चाहिए? देश के पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा के साथ यह बहस भी तेज हो गई है. एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना ने इसी मुद्दे को उछाल दिया है.
शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुंबई में आयोजित राज्यव्यापी कार्यकर्ता सम्मलेन में अपने भाषण में कहा कि ''अगर जाति-धर्म के आधार पर वोट मांगना गलत है तो चुनाव के दौरान बजट पेश करना आचार संहिता का उल्लंघन तो नहीं? इसी वजह से मैं राष्ट्रपति से अपील करता हूं कि जब तक घोषित चुनाव के नतीजे नहीं आ जाते, इन्हें बजट के बहाने लोगों को गुमराह करने से रोका जाए.'' उद्धव ठाकरे ने अपने सांसदों से कहा है कि वे अपने इस मुद्दे पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से जाकर मिलें.
शिवसेना के अलावा कांग्रेस, आप और सीपीएम भी चुनाव आचार संहिता में बजट पेश किए जाने का खुलकर विरोध कर रही हैं. इन सभी पार्टीयों का आरोप है कि बजट के बहाने बड़ी घोषणाएं कर केंद्र सरकार मतदाताओं प्रभावित करना चाहती है. केंद्रीय बजट ठीक उस समय आने वाला है जब देश के 16 करोड़ लोग अपने-अपने राज्यों में वोट डालने के लिए मन बना रहे होंगे. ऐसे में बजट के लोकलुभावन वादों पर रोक लगाने को लेकर चुनाव आयोग के पास ज्ञापन आ चुके हैं. वहीं सरकार इस मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं है.
मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने इस मुद्दे पर कहा है कि इस बाबत आयोग के पास राजनीतिक दलों की राय पहुंच चुकी है. इस पर वे विचार विमर्श के बाद फैसला करेंगे. जबकि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ तौर पर बजट को नतीजों तक टालने को खारिज करते हुए कहा कि यह हो नहीं सकता और न इससे पहले कभी हुआ है. केंद्र सरकार बजट को पहले से जल्द इसलिए करना चाहती है ताकि नियत खर्च एक अप्रैल से शुरू हो जाए.
अमूमन फरवरी के आखिर में पेश होने वाला केंद्रीय बजट इस साल से एक फरवरी को पेश होने जा रहा है. सत्ताधारी बीजेपी बजट को लेकर अपनी भूमिका बदलने को तैयार नहीं. ऐसे में चुनाव आयोग को तय करना होगा कि क्या वह बजट भाषण से लोकलुभावन वायदों का पिटारा खुलने देंगे या नहीं.
शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुंबई में आयोजित राज्यव्यापी कार्यकर्ता सम्मलेन में अपने भाषण में कहा कि ''अगर जाति-धर्म के आधार पर वोट मांगना गलत है तो चुनाव के दौरान बजट पेश करना आचार संहिता का उल्लंघन तो नहीं? इसी वजह से मैं राष्ट्रपति से अपील करता हूं कि जब तक घोषित चुनाव के नतीजे नहीं आ जाते, इन्हें बजट के बहाने लोगों को गुमराह करने से रोका जाए.'' उद्धव ठाकरे ने अपने सांसदों से कहा है कि वे अपने इस मुद्दे पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से जाकर मिलें.
शिवसेना के अलावा कांग्रेस, आप और सीपीएम भी चुनाव आचार संहिता में बजट पेश किए जाने का खुलकर विरोध कर रही हैं. इन सभी पार्टीयों का आरोप है कि बजट के बहाने बड़ी घोषणाएं कर केंद्र सरकार मतदाताओं प्रभावित करना चाहती है. केंद्रीय बजट ठीक उस समय आने वाला है जब देश के 16 करोड़ लोग अपने-अपने राज्यों में वोट डालने के लिए मन बना रहे होंगे. ऐसे में बजट के लोकलुभावन वादों पर रोक लगाने को लेकर चुनाव आयोग के पास ज्ञापन आ चुके हैं. वहीं सरकार इस मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं है.
मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने इस मुद्दे पर कहा है कि इस बाबत आयोग के पास राजनीतिक दलों की राय पहुंच चुकी है. इस पर वे विचार विमर्श के बाद फैसला करेंगे. जबकि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ तौर पर बजट को नतीजों तक टालने को खारिज करते हुए कहा कि यह हो नहीं सकता और न इससे पहले कभी हुआ है. केंद्र सरकार बजट को पहले से जल्द इसलिए करना चाहती है ताकि नियत खर्च एक अप्रैल से शुरू हो जाए.
अमूमन फरवरी के आखिर में पेश होने वाला केंद्रीय बजट इस साल से एक फरवरी को पेश होने जा रहा है. सत्ताधारी बीजेपी बजट को लेकर अपनी भूमिका बदलने को तैयार नहीं. ऐसे में चुनाव आयोग को तय करना होगा कि क्या वह बजट भाषण से लोकलुभावन वायदों का पिटारा खुलने देंगे या नहीं.
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