राहुल गांधी 14 जनवरी से मणिपुर से भारत न्याय यात्रा शुरू कर रहे हैं. यह यात्रा 14 राज्यों से गुजरेगी और 20 मार्च को इसका समापन मुंबई में होगा. जिन राज्यों से यह यात्रा गुजरेगी, वहां से लोकसभा की 355 सीटें आती हैं और इनमें से 238 सीटें भाजपा ने पिछले आम चुनाव में जीती थीं जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ 14 सीटें आईं थीं. आंकड़ों के आईने में यह देखना रोचक होगा कि इस यात्रा का क्या असर हो सकता है, क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कोई चुनौती खड़ी हो सकती है? उससे देश की राजनीति कितनी प्रभावित हो सकती है?
लेकिन आंकड़ों पर आने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि इन 14 राज्यों का मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य क्या है? इन 14 राज्यों में से सात में भाजपा की सरकार है. ये राज्य हैं - मणिपुर, असम, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात. महाराष्ट्र में एनडीए सरकार है और मेघालय व नगालैंड में भाजपा क्षेत्रीय दलों के साथ सरकार में शामिल है. तीन राज्यों - बंगाल, बिहार और झारखंड में इंडिया दल समूह की सरकारें हैं. ओडिशा में बीजू जनता दल सरकार में है जो न इंडिया गठबंधन में है और न एनडीए में.
असम, मणिपुर, राजस्थान, मप्र, छत्तीसगढ़ और गुजरात में भाजपा व कांग्रेस आमने-सामने हैं. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, बंगाल और उड़ीसा में भाजपा का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से है.
1. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात की कुल 91 सीटों में से भाजपा के पास 88 सीटें और कांग्रेस के पास तीन सीटें हैं. यहां भाजपा का स्ट्राइक रेट 97% है. यानी यहां पर भाजपा लगभग उच्चतम स्तर पर है. इसमें बढ़ोत्तरी की गुंजाइश न्यूनतम है जबकि कांग्रेस को यदि थोड़ी भी मजबूती किसी तरह से मिली तो वह अपनी सीटों में कुछ वृद्धि तो दर्ज कर ही सकती है.
2. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल और महाराष्ट्र में भाजपा का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से है. इन राज्यों के बड़े क्षेत्रीय दल इंडिया गठबंधन में हैं. यहां कुल 224 सीटें हैं. इनमें से 131 यानी 58% सीटें भाजपा के पास हैं जबकि कांग्रेस सिर्फ 6 (2.6%) सीटें ही जीत पाई. कुल मिलाकर यहां 150 सीटें एनडीए के पास और 61 सीटें इंडिया के पास हैं. इसके अलावा, 10 सीटें बसपा की, दो एआईएमआईएम और एक आजसू की है.
A. बिहार, झारखंड, बंगाल व महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन मजबूत दिखाई दे रहा है. गठबंधन के समीकरणों के बाद यहां वोटों का गणित भाजपा के पक्ष में नहीं रह गया है. इन राज्यों में कुल 144 सीटें हैं और इसमें से 69 सीटें भाजपा के पास हैं और एनडीए के अन्य सहयोगी दलों की 17 सीटें हैं. दूसरी ओर इंडिया गठबंधन दलों की 55 सीटें हैं. इंडिया गठबंधन बनने के बाद, इन चारों राज्यों में वोटों का गणित इंडिया गठबंधन के पक्ष में मजबूती से झुक गया है.
B. उत्तर प्रदेश में सपा और रालोद के इंडिया गठबंधन में आ जाने से स्थिति कुछ सीटों पर मजबूत हो सकती है.
(*बिहार में जदयू ने एनडीए के हिस्से के तौर पर चुनाव लड़ा था और उसने 16 सीटें जीती थीं. एनडीए के एक अन्य घटक दल लोजपा ने 6 सीटें जीती थीं. जदयू ने बाद में एनडीए से नाता तोड़कर राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होकर सरकार बना ली. इसलिए जदयू की सीटों को विपक्षी गठबंधन इंडिया के खाते में दिखाया जा रहा है. महागठबंधन की ओर से सिर्फ कांग्रेस एक सीट जीत पाई थी. राजद को एक भी सीट नहीं मिली थी.
**महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था. शिवसेना ने 17 सीटें जीती थीं. दूसरी ओर विपक्ष में एनसीपी ने चार और कांग्रेस ने एक सीट जीती थी. बाद में शिवसेना ने एनडीए छोड़कर एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाते हुए नया गठबंधन महा विकास अघाड़ी बना लिया. कुछ दिनों बाद भाजपा ने शिवसेना से एक गुट तोड़ लिया और उस गुट के नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बना ली. इस साल की शुरुआत में भाजपा ने एनसीपी को भी तोड़ दिया और यह गुट एनडीए में शामिल हो गया. शिवसेना को 17 सीटें मिली थीं और एनसीपी को चार. यानी कुल 21 सीटें. इनमें से 10 सीटों को एनडीए के खाते में और 11 सीटें इंडिया के खाते में दिखाई गई हैं.)
3. पूर्वोत्तर के राज्यों में 25 सीटें हैं. इसमें 14 सीटें असम से हैं और बाकी 11 अन्य राज्यों से. असम में भाजपा की 9, कांग्रेस की 3, एक सीट एआईयूडीएफ की और एक निर्दलीय है. बाकी राज्यों की 11 सीटों में से 6 भाजपा के पास और एक कांग्रेस के पास है. जिन चार राज्यों - असम, मणिपुर, नगालैंड व मेघालय से यात्रा निकलेगी, वहां कुल 19 सीटें हैं. इनमें से 11 सीटें भाजपा के पास और चार सीटें कांग्रेस के पास हैं.
4. ओडिशा में 21 सीटें हैं. यहां बीजू जनता दल का प्रभाव है. यहां बीजू जनता दल ने 12, भाजपा ने 8 और एक सीट कांग्रेस के पास है. लेकिन जिस तरह भारत जोड़ो यात्रा ने तेलंगाना में असर दिखाया, ओडिशा में न्याय यात्रा उतना नहीं तो कुछ तो असर डाल सकती है.
राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा इन सभी राज्यों से होकर गुजरेगी. इन सभी राज्यों में कांग्रेस का 2019 में बहुत ही खराब प्रदर्शन रहा. अलबत्ता, जिन दलों ने भाजपा के सामने अपनी जमीन बचाए रखीं, उनमें से अधिकतर अब इंडिया गठबंधन में हैं. यात्रा को चार बिंदुओं के बरक्श देखा जा सकता है-
पहला - 14 जनवरी से शुरू हो रही यह यात्रा एक एक्सटेंडेड रोड शो की तरह होगी. जब भाजपा पूरे देश में राम मंदिर के जरिए 2024 की चुनावी राजनीति को साधने में जोर-शोर से लगी होगी, तब दूसरी ओर राहुल गांधी या कहें विपक्ष वैकल्पिक नैरेटिव के रूप में सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक न्याय की कहानी खड़ी करने की कोशिश में सड़क पर लोगों से बतिया रहा होगा.
दूसरा- यात्रा के दौरान ही केंद्रीय बजट आएगा. प्रधानमंत्री मोदी स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर खड़ा होगा. स्पष्ट है कि बजट उनकी इसी बात को एप्लीफाई करने वाला होगा. ऐसी स्थिति में यह यात्रा आर्थिक असमानता, बेरोजगारी और महंगाई की बात कर रही होगी.
तीसरा- जातिगणना या सामाजिक न्याय के मुद्दे पर भाजपा पहले तो पशोपेश में रही लेकिन फिर प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी काट के तौर पर गरीब, किसान, महिला और युवाओं को सामने रखना शुरू किया. इस बीच, आरएसएस का एक बयान आया कि जाति गणना से समाज में वैमनस्य बढ़ेगा. लेकिन अगले ही दिन संघ ने इस बयान को बदलकर जातिगणना का पक्ष लेने की बात की. संकेत साफ है कि सामाजिक न्याय राजनीतिक रूप से इतना संवेदनशील मुद्दा है कि थोड़ी सी असावधानी बहुत बड़ा नुकसान कर सकती है. मुद्दा इंडिया गठबंधन ने मजबूती से उठाया है. यात्रा बिहार, उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र से भी गुजरेगी जहां यह मुद्दा गरम है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी भी इस मुद्दे पर इंडिया गठबंधन की धार कुंद करने में बड़ी शिद्दत से लगे हुए हैं. इन तीन राज्यों से 168 सीटें आती हैं और इनमें से पिछले चुनाव में भाजपा ने 102 सीटें जीती थीं.
चौथा- यात्रा मणिपुर से शुरू हो रही है. इसका एक मजबूत राजनीतिक संदेश हो सकता है, जो न सिर्फ पूर्वोत्तर के राज्यों बल्कि झारखंड, बंगाल, उड़ीसा व छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश से लेकर गुजरात तक के आदिवासियों को संबोधित कर सकता है. मणिपुर वह राज्य है जो पिछले 3 मई से जातीय हिंसा का शिकार है. प्रधानमंत्री मणिपुर नहीं जा सके. यहां तक कि पड़ोसी राज्य मिजोरम में चुनाव प्रचार के लिए भी वे नहीं गए. जबकि राहुल गांधी हिंसा के बीच वहां गए थे. अब यात्रा भी वहीं से शुरू कर रहे हैं.
दो बातें हो सकती हैं- पहली बात, यह यात्रा भारत जोड़ो की तरह असरदार साबित हो और कांग्रेस ही नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन के दलों को इतनी ताकत दे दे कि वे 2019 के मुकाबले अपना प्रदर्शन और सुधार सकें. कांग्रेस भी इस संवेग पर सवारी कर अपनी सीटों में भी हर जगह दो-तीन का इजाफा कर ले.
या फिर दूसरी बात - इस यात्रा का असर कांग्रेस व इंडिया गठबंधन के चुनावी प्रदर्शन पर इतना न पड़े कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कोई बदलाव ला सके. कांग्रेस कुल मिलाकर 50-60 पर अटकी रहे. ऐसे में राहुल गांधी और कांग्रेस, दोनों के लिए 2024 के चुनाव के बाद के दिन बहुत कठिन होंगे. भाजपा का मौजूदा गवर्नेंस मॉडल और रफ्तार पकड़ेगा. फिर क्या 2029 और क्या 2034….गड्डी जांदी ए छलांगा मारदी…
राजेंद्र तिवारी वरिष्ठ पत्रकार है, जो अपने लम्बे करियर के दौरान देश के प्रतिष्ठित अख़बारों - प्रभात ख़बर, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान व अमर उजाला - में संपादक रहे हैं...
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