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This Article is From May 08, 2016

मदर्स डे : भारत माता के गरीब बच्चों को ही मौत की सजा क्यों?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 08, 2016 00:33 am IST
    • Published On मई 08, 2016 00:31 am IST
    • Last Updated On मई 08, 2016 00:33 am IST

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली द्वारा जारी मृत्युदंड प्रोजेक्ट की रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर मामलों में गरीब और वंचित वर्ग के लोगों को ही फांसी की सजा होती है। इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट के जज मदन बी लोकुर ने कहा कि भारत की आपराधिक न्यायिक व्यवस्था ध्वस्त हो गई है जिसे तत्काल सुधारने की जरूरत है।

गरीबों को सजा और अमीरों के लिए मजा
इटली की अदालत ने नवीनतम फैसले में मजबूरी में चोरी करने वाले गरीब आदमी को सजा देने से इंकार कर दिया। दूसरी ओर भारत में छुट-पुट चोरी और अपराध के आरोप में लाखों बेगुनाह जेल में सड़ रहे हैं जिनमें अधिकांश अशिक्षित और गरीब हैं। ऐसे मामलों में पुलिस तथा अदालतें कानून की मनमर्जी व्याख्या कर कठोरतम दंड देती हैं जिसके खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने का हौसला गरीबों के पास होता ही नहीं। दूसरी ओर 9 हजार करोड़ के कर्ज को डकार कर विजय माल्या यूरोप में मजे लेते हुए पूरी न्यायिक व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं।

अमीरों को सुरक्षा पर गरीबों को कानूनी सहायता भी नहीं
संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत देश के हर नागरिक को सुरक्षा का अधिकार है। भारत की सबसे शक्तिशाली महिला नीता अंबानी को मोदी सरकार द्वारा वाई-कैटेगरी की सुरक्षा व्यवस्था सुरक्षा मुहैया कराई गई है, जिसके तहत 20 सुरक्षा अधिकारियों का काफिला उनके साथ रहेगा। इसी तरह से कथित अपराधियों को भी कठोर सजा या मृत्यू दंड देने से पहले क्या श्रेष्ठतम कानूनी सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए? एनएलयू की रिपोर्ट के अनुसार फांसी की सजा दिए गए 90 फीसदी अपराधियों को शुरुआती दौर में वकील की मदद ही नहीं मिली! इस वजह से पुलिस द्वारा दर्ज केस ही कई बेगुनाह लोगों की फांसी और माताओं की त्रासदी बन गए।

फांसी की सजा पर है कानूनी विवाद
संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य देशों ने  महासभा द्वारा मृत्युदंड समाप्ति के प्रस्ताव का समर्थन किया लेकिन भारत में इस पर विवाद है। पिछले हफ्ते राज्यसभा में फांसी की सजा को गैर-जरूरी और अनुचित करार देते हुए सरकार से इसे समाप्त करने कीं मांग की गई पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने उसका जोरदार विरोध किया। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एवं विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए पी शाह ने भी मृत्युदंड पर पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता बतायी थी। सुप्रीम कोर्ट भी कई मामलों में यह स्वीकार कर चुका है कि फांसी की सजा देने में कई बार त्रुटियां हुई हैं जिससे लोगों को  सही न्याय नहीं मिल सका है।  

संविधान तो भारत माता के सभी लाड़लों के लिए है
सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में आर्थिक अपराधियों और सफेदपोश नेताओं को देश का दुश्मन बताया है। ऐसे गुनाहगारों के लिए कड़े दंड की बजाय उनके ऊपर राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा वीआईपी सुरक्षा के नाम पर हजारों करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। अगस्ता वेस्टलेंड मामले में इतनी बहस और सबूतों के बावजूद कोई गिरफ्तारी न होने से आम जनता में यही धारणा बनती है कि कानून सिर्फ गरीबों के लिए है। गरीबी, अशिक्षा और अपराध का एक भयानक दुश्चक्र है जिसे अदालतें समझने में विफल रहीं हैं, जिसकी स्वीकरोक्ति सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस लोकुर ने की है।

क्या भारत माता की शासन व्यवस्था, मदर्स डे पर संविधान के प्रभावी पालन का संकल्प लेगी, जिसमें आम जनता को भी बराबरी और न्याय मिल सके? जेलों में सड़ रहे लाखों बेगुनाह कैदियों की रिहाई करके क्या सरकार और अदालतें अभागी माताओं को मदर्स डे का गिफ्ट दे पाएंगी?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
 

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