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This Article is From May 29, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : बात-बात में गुस्सा क्यों, बात-बात में हत्या क्यों?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 29, 2017 21:51 pm IST
    • Published On मई 29, 2017 21:51 pm IST
    • Last Updated On मई 29, 2017 21:51 pm IST
गुस्से को राष्ट्रीय आचरण घोषित कर देना चाहिए. दिन-रात सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया से क्रोध का जनवितरण हो रहा है. पब्लिक ड्रिस्ट्रिब्यूशन. पहले हमने सोचा कि भीड़ सिर्फ राजनीतिक और वैचारिक है, लेकिन इसके दूसरे रूप भी नज़र आने लगे हैं. आख़िर अजमेर में सिख सेवादारों की पिटाई का क्या कारण रहा होगा जब वे गांवों में लंगर के लिए अनाज मांगने गए थे. इसका मतलब इस तरह की भीड़ सिर्फ हिन्दू बनाम मुसलमान की नहीं है, ये किसी के भी ख़िलाफ़ है, किसी को भी मार सकती है. क्यों बन जाती है ऐसी भीड़, क्या कारण है कि व्हाट्स अप पर बच्चा चोरी की अफवाह फैलते ही लोग झुंड में मुस्लिम को भी मार देते हैं और फिर हिन्दू को भी मार देते हैं. समाज के भीतरी मन में कुछ तो चल रहा है, जो इस तरह लावे की तरफ फूट रहा है.  

उत्तरी पश्चिमी दिल्ली के जीटीबी नगर मेट्रो स्टेशन पर हुई एक घटना को आप कैसे समझेंगे, ई रिक्शा चलाने वाले रविंद्र ने 2 लड़कों को मेट्रो स्टेशन के सामने पेशाब करने से मना किया और कहा कि भीतर सुलभ शौचालय है, पैसे नहीं है तो मुझसे ले लो मगर यहां पेशाब मत करो. रविंद्र ने अपने नागरिक होने का फ़र्ज़ अदा किया, शायद किसी को भी यही करना चाहिए मगर जिन लड़कों को रविंद्र ने मना किया, उन्हें यह बात पसंद नहीं आई. इसी बात पर झगड़ा हुआ, लड़के ई रिक्शा से ही कालेज आए और इम्तहान दिया. इम्तिहान के बाद रात को लौटे तो बीस-पच्चीस लड़के साथ में. गमछे में पत्थर बांध कर लाये. रात आठ बजे रविंद्र को इतना मारा कि उसकी मौत हो गई. दोपहर डेढ़ बजे की घटना के बाद उनके भीतर इतना गुस्सा भर गया कि किसी ने पेशाब करने से रोका तो चल कर मार ही देते हैं. झगड़ा तो दो लड़कों के साथ हुआ था, उसके साथ बीस-पच्चीस लड़के कैसे चले गए. उन्हें गुस्सा क्यों आया. हमारे सहयोगी मुकेश सिंह सेंगर ने लोगों से पूछा कि आपने क्यों नहीं रोका, सबने एक ही जवाब दिया कि वो उस वक्त वहां नहीं था. दूसरे ई-रिक्शा वालों ने भी यही कहा और दुकानदारों ने भी यही कहा.

केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने रविंद्र के परिवार वालों से मुलाकात की और पचास हज़ार का चेक दिया. दिल्ली सरकार ने पांच लाख का चेक दिया है. मेरे हिसाब से दोनों ने बहुत कम पैसे दिये हैं. जिस स्वच्छता अभियान के विज्ञापन के लिए करोड़ों रुपये ख़र्च होते हैं, जो सरकार की प्राथमिकताओं में ऊपर बताया जाता है, उसके लिए किसी के जान देने की यह पहली घटना है.

मुआवज़ों से रविंद्र का परिवार कितना संभलेगा. उसकी पत्नी गर्भवती है. अच्छा और मेहनती लड़का था. क्या हम यह सीख दे रहे हैं इस समाज को कि किसी को कुछ मत बोलो, टोको मत, पता नहीं कब कौन झुंड लेकर आ जाए और टूट पड़े. इस तरह से हम भीड़ को मान्यता देंगे तो फिर कोई नागरिक होने का फर्ज़ कैसे निभायेगा. रविंद्र से झगड़न के बाद दोनों लड़कों ने बीयर पी और फिर इम्तिहान देने गए. वहां से लौटे तो झुंड के साथ. बीयर पीकर इम्तिहान देने वाले हत्या न भी करते तो भी आगे चलकर कुछ ऐसा ही बड़ा नाम करने वाले थे.

न्यूज़ एंकर से लेकर नेता तक सबको ग़ौर से देखिये. गुस्से से बोल रहे हैं. चीख रहे हैं, चिल्ला रहे हैं. व्हाट्स अप से लेकर सोशल मीडिया तक की भाषा गुस्से की भाषा है. यूपी के रामपुर से एक वीडियो वायरल हुआ. यह घटना ऐसी है कि वीडियो देखा भी नहीं जाता, पुलिस जांच कर रही है और इसके आधार पर कुछ गिरफ्तारी भी हुई है. चौदह लड़कों ने दो लड़कियों के साथ छेड़खानी करने का फैसला कैसे कर लिया. इतनी हिम्मत इनमें कहां से आई. क्या उन वीडियो से जिनमें एंटी रोमियो के नाम पर लड़के लड़कियों को दो चार लोगों का झुंड पीट रहा होता है, उनका अपमान कर रहा होता है. हम कारण नहीं जानते मगर सोचिये कि लड़कियों ने जब खुद को छोड़ देने की गुहार लगाई तो उन्हें उठाकर ले जाने लगे. इस घटना का वीडियो भी बनाया और व्हाटस अप पर भी डाला. चौदह लड़कों में सब कानून हाथ में लेने के लिए कैसे तैयार हो गए. क्या इन्हें ज़रा भी चिंता नहीं हुई कि सरकार पर जब दबाव बनेगा तो इन्हें छोड़ा नहीं जाएगा. लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इसे लेकर आए दिन बहस होती रहती है. क्या इससे भी इन लोगों को कुछ फर्क नहीं पड़ता है.

क्या किसी तरह लोगों में यह धारणा बैठ गई है कि मिलकर झुंड में अपराध करने से बच जायेंगे. हाल फिलहाल में भीड़ की हिंसा कितनी बढ़ी है, हमारे पास आंकड़े नहीं हैं. रिसर्च के दौरान गार्डियन अखबार में छपा एक लेख मिला, जो इसकी बात कर रहा है कि आतंकी हमलों के व्यापक मीडिया कवरेज के कारण उन जगहों पर दोबारा आतंकी घटनाओं की आशंका ज़्यादा रहती है. जर्मनी और अमरीका की दो संस्थाओं ने मिलकर न्यूयार्क टाइम्स में 1972 से 2012 के बीच 60,000 आतंकी घटनाओं के कवरेज़ का अध्ययन किया है. यह देखा गया है कि जहां कवरेज़ ज़्यादा होता है वहां हफ्ते भर के भीतर में एक और आतंकी घटना हो जाती है.  आतंकी गुट भी चाहते हैं कि मीडिया कवरेज मिले ताकि उनका एजेंडा आगे बढ़ता रहे. कमज़ोर युवा जल्दी प्रभावित हो सके.

प्रोफेसर जेटर का कहना है कि सर काटने वाले वीडियो के कारण आईसीसी जैसे आतंकी संगठन का पूरी दुनिया में प्रचार हुआ है. दुनिया में रोज़ भूख से 7,123 बच्चे मर जाते हैं, इनका कवरेज नहीं होता, आतंकी हमले से रोज़ 42 लोग मरते हैं, इनका दुनिया भर में कवरेज़ होता है. लेख इतना कहता है कि यह देख लेने में हर्ज़ नहीं है कि कहीं हिंसा का माहौल देखते-देखते तो नहीं बन रहा है. इसमें व्हाट्स अप पर शेयर किये गए वीडियो का कितना हाथ है. क्या हमारा बर्ताव बदल रहा है. अगर यह बीमारी है तो इलाज भी है इसका.

दरअसल दिमाग में बादाम के आकार की एक बनावट होती है जिसे अमिगडला (amygdala) कहा जाता है. ये दिमाग के बीचों बीच सेरीबेलम और ब्रेन स्टेम के ठीक ऊपर टेंपोरल लोब में होता है. दिमाग में यही वो हिस्सा है जो डर, गुस्से और तनाव को तय करता है. अमिगडला (amygdala ) से ही तय होता है कि कोई व्यक्ति किसी स्थिति में कैसे रिएक्ट करेगा. सैन डिएगो में सोसायटी फॉर न्यूरोसाइंस कॉन्फ्रेंस में पेश किए गए एक रिसर्च पेपर के मुताबिक जो लोग ज़्यादा उत्तेजित होते हैं, ज़्यादा रिएक्टिव होते हैं, उनके दिमाग के इसी हिस्से में दूसरों के मुक़ाबले ज़्यादा हरकत होती है. ऐसे युवा ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया करते हैं. जैसे किसी को मुक्का मार दें, दरवाज़े पर लात मार दें. भले ही बाद में वो इसके लिए अफ़सोस जताएं, लेकिन उस समय वो ख़ुद को कंट्रोल नहीं कर पाते. ऐसे व्यक्तियों में दिमाग के प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में कम एक्टिविटी देखी गई. दिमाग का ये हिस्सा हमारी सोचने और फैसले लेने की क्षमता से जुड़ा होता है. प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में सुस्ती की वजह से ऐसे लोगों में अपनी हरकतों पर काबू पाने की क्षमता कम होती है, इसीलिए वो उस वक़्त अपनी हरकतों के अंजाम के बारे में नहीं सोच पाते.

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