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This Article is From Jul 27, 2016

गोरक्षा के नाम पर यह मार-पिटाई कब रुकेगी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 27, 2016 22:50 pm IST
    • Published On जुलाई 27, 2016 22:50 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 27, 2016 22:50 pm IST
अगर कानून की समस्या है तो कानून को अपना काम करना चाहिए। कानून के बदले अगर वो काम कोई संगठन करने लगे तो एक दिन उसका हौसला बढ़ जाएगा। यहां तक बढ़ आएगा कि वो यह भी तय करना चाहेगा कि आप क्या पहन कर निकलें, किससे प्यार करें, और क्या क्या खायें। हाल ही में संसद में गुजरात में अनुसूचित जाति के चार युवकों की पिटाई के बाद बहस हुई और वहां भी ये सारी चिन्ताएं जताई गईं। सांसदों ने कहा कि मुस्लिम और दलित समाज के लोगों को इसके नाम पर निशाना बनाया जा रहा है। बहस के अलावा गुजरात में इस मामले में 20 लोग गिरफ्तार किए गए हैं फिर भी लगता है कि इन संकेतों को असर इन संगठनों पर नहीं हो रहा है।

मध्य प्रदेश के मंदसौर में पुलिस के जवानों की मौजूदगी में दो महिलाओं को बुरी तरह मारा गया। पुलिस रेलवे स्टेशन पर आई थी इन दोनों महिलाओं को गिरफ्तार करने लेकिन भीड़ में शामिल लोग इन पर हाथ उठाने लगे। एक महिला को इतना मारा कि गिर ही गई। पुलिस ने नहीं मारने की अपील भी की लेकिन भीड़ ने उसकी भी नहीं सुनी। बाद में मंदसौर के कोतवाली थाने के एसएचओ ने कहा कि उन्होंने ऐसी किसी घटना के बारे में नहीं सुना है। किसी महिला ने शिकायत ही नहीं की है। जबकि इन दो औरतों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। आरोप है कि ये बिना लाइसेंस के 30 किलो मांस लेकर जा रही थीं। पुलिस ने स्थानीय डॉक्टर से जांच कराई तो गाय का नहीं, भैंसे का मांस निकला। इन्हें कोर्ट में पेश किया गया है अगर आरोप सही निकले तो मध्य प्रदेश के कैटल प्रिवेंशन एक्ट के अनुसार एक साल की जेल हो सकती है। मध्य प्रदेश के गृह राज्य मंत्री ने कहा है कि कोई कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता है। जांच होगी। इसे लेकर राज्य सभा मे फिर से तकरार हो गई।

भीड़ की पिटाई के बाद उस परिवार पर जो गुज़रती है आपको उनके बारे में सोचना चाहिए। मारपीट से घायल होने के बाद अगर ये महिलाओं दो दिन भी नहीं कमाएंगी तो परिवार कैसे चलाएंगी। किसी की जान चली जाए तो क्या होगा। कर्नाटक के चिकमंगलूर में कोप्पा गांव के 53 साल के बलराज की घर में घुस पर पिटाई कर दी गई। बलराज अनुसूचित जाती के हैं। उनके घर में गाय का मांस रखे होने का शक था।

गुजरात में जिन चार भाइयों को बेरहमी से मारा गया है उनमें से एक रमेश भाई सरवैया की स्थिति गंभीर है। रमेश भाई को अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इन चारों भाइयों का राजकोट के अस्पताल में इलाज चल रहा था जहां से मंगलवार को इन्हें छुट्टी दे दी गई। लेकिन गांव पहुंचने के बाद रमेश भाई के मुंह और कान से ख़ून आने लगा जिसके बाद इन्हें तुरंत अहमदाबादा के लिए रवाना किया गया। रमेश भाई सरवैया के साथ साथ बाकी के तीन भाइयों को भी फिर से भर्ती कर दिया गया है लेकिन उनकी स्थिति सामान्य है। मंगलवार को चार और लोगों को गिरफ्तार किया गया। सीआईडी की शुरूआती जांच से पता चला है कि जिस गाय का चमड़ा ये लोग उतार रहे थे उसे शेर ने मारा था। जिसके बाद गाय के मालिक ने इन युवकों को बुलाकर अंतिम संस्कार करने के लिए कहा। उसके बाद इन्हें मारने वाले पहुंच गए।

कहीं पिता मारा गया, कहीं भाइयों को मारा गया अब औरतों पर भी हाथ उठ रहे हैं। गाय एक बहाना है। कई लोगों की मानसिकता अभी भी वहीं है कि दलित रसोइया खाना बनाएगा तो उसके हाथ का नहीं खाएंगे। लेकिन इन्हीं निराश क्षणों के बीच कोई आ जाता है जिसे देखकर आप संतोष कर सकते हैं कि कोई तो है जो कदम उठा रहा है।
 
(औरंगाबाद : डीएम (बाएं) ने दलित महिला रसोइए के हाथ का खाना खाया...)

ये बिहार के औरंगाबाद ज़िले के कलेक्टर कंवल तुनज हैं। इनके साथ ज़िला शिक्षा पदाधिकारी भी खाना खा रहे हैं। रफीगंज थाने के बटुरा स्थित एक स्कूल में बच्चों के साथ ज़िलाधिकारी कंवल तनुज ने बैठ कर खाना गया ताकि लोगों के दिमाग से यह बात निकले कि किसी के हाथ का खाना अपवित्र होता है। हमारे दिमाग़ में जाति इस कदर बैठी है कि कलेक्टर को खाकर बताना पड़ रहा है कि हम खा सकते हैं। हुआ यह था कि इस स्कूल में रसोइया की मौत हो गई। उसके बाद उसकी पत्नी को खाना बनाना था। दोनों अनुसूचित जाति के हैं। प्रिंसिपल गोविंद यादव को यह मंज़ूर नहीं हुआ कि विधवा खाना बनाएगी। उन्होंने उर्मिला को स्कूल से निकाल दिया। उर्मिला की साहस की भी दाद देनी होगी कि वो 45 किमी दूर चलकर कलेक्टर से शिकायत करने पहुंच गई। कलेक्टर ने भी देरी नहीं कि और आदेश दे दिया कि अगले ही दिन स्कूल आ रहे हैं। ज़िलाधिकारी ने स्कूल का दौरा किया, छात्रों और गांव वालों से भी बात की। आरोप सही लगा तो प्रिंसिपल साहब को संस्पेंड कर दिया और उर्मिला को फिर से बहाल कर दिया है। कलेक्टर ने पूरे ज़िले के स्कूलों में आदेश जारी किया है कि कहीं ऐसा मामला और भी तो नहीं हुआ है।
 
(वेजवाड़ा विल्सन)

इस जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़ हर दिन कोई न कोई संघर्ष कर रहा है। ऐसे एक एक दिन संघर्ष करते करते एक शख्स के तीस साल गुज़र गए। वेज़वाड़ा विल्सन नाम है। वेजवाड़ा विल्सन को रमन मेगसायसाय पुरस्कार मिला है। वेज़वाड़ा का काम आपको जानना चाहिए। वेजवाड़ा को जो पुरस्कार मिला है उससे देश का हर सफाई कर्मचारी गौरवान्वित हो रहा होगा। विल्सन ने इनके सम्मान और अधिकार की लंबी लड़ाई लड़ी है। कर्नाटक के कोलार गोल्ड फिल्ड टाउनशिप में एक दलित परिवार में पैदा हुए वेजवाड़ा विल्सन का परिवार पीढ़ियों से सर पर मैला उठाता था। आज के कई दर्शक मैला को मिट्टी समझ सकते हैं। कीचड़ समझ सकते हैं। दरअसल सर पर पखाना उठाने का काम इनके सर पर लादा गया। इन परिवारों ने लोगों का पखाना सर पर उठाया। अब हमारा संविधान इसकी अनुमती नहीं देता है मगर अब भी यह प्रथा समाप्त नहीं हुई है। विल्सन अपने परिवार में पहले पढ़े लिखे शख्स हैं। स्कूलों में जब विल्सन के साथ छुआछूत हुआ तो विल्सन को गुस्सा आया लेकिन विल्सन ने इस गुस्से को बदल दिया। वो गौ रक्षकों की तरह भीड़ लेकर स्टेशन पर दो कमज़ोर महिलाओं को मारने नहीं गए बल्कि लाखों सफाई कर्मचारियों को इससे मुक्ति दिलाने के संघर्ष के रास्ते पर चले गए।

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