कुछ देर पहले टीवी ऑन किया है। एक ऐड चल रहा है, एक लड़की बेहद छोटे कपड़ों में एक लड़के के डियोडरेंट से मंत्रमुग्ध होकर उसके बेडरूम की तरफ जा रही है। अब अगला ऐड आ रहा है। ऐड में लड़कों के कच्छे बनियान लड़कियां बेच रही हैं। समझ में नहीं आ रहा कि हर कमर्शियल में लड़की का बेवजह होना और उसका छोटे कपड़ों में होना क्यों जरूरी है।
चैनल बदल दिया है। गाने बज रहे हैं। एक हीरो नाच रहा है और उसके आस पास बिकनी में लड़कियां हीं लड़कियां हैं। दूसरा गाना आ गया है और लड़की बता रही है कि कैसे वह पानी-पानी हो गई है और सरे आम लुट गई है उसकी जवानी।
टीवी बंद कर दिया है। बालकनी में आ गया हूं। कुछ लड़के नीचे खड़े हैं। एक लड़की वहां से गुजर रही है। वे उसे घूर रहे हैं। एक ने दूसरे के कान में कुछ कहा है। सब हंस रहे हैं। लड़की ने सिर नीचे कर रखा है। वह तेज चलने लगी है। और तेज। लड़के घूर ही रहे हैं। लड़की उनके बगल से गुजर चुकी है। लड़के अब उसका पीछे से एक्स-रे कर रहे हैं।
अंधेरा होने लगा है। मेरी कामवाली बाई जल्दी-जल्दी काम निपटा रही है। कह रही है कि जल्दी से जल्दी घर पहुंचना है। अंधेरा होने के पहले घर पहुंचना चाहती है। कहती है, रास्ता सुनसान है, डर लगता है। बोल रही है कि ऊपर से सात साल की बेटी घर पर अकेली है। जमाना ठीक नहीं है। रोज टीवी पर छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार की खबर सुनकर डर बैठ गया है मन में।
बाई चली गई है। मैंने लैपटॉप पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो की वेबसाइट खोली है। साल दर साल के आंकड़े खंगाल रहा हूं। कुछ आंकड़े दिख रहे हैं। कह रहे हैं कि हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ ही रहा है। रेप भी हजारों की संख्या में हो रहे हैं। महिलाओं के खिलाफ सेक्सुअल अपराध की संख्या लाखों में बता रहा है। लिखा है कि महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध उनके जानकार ही करते हैं।
मन परेशान होने लगा है। वेबसाइट बंद कर दी है। लैपटॉप पर यू-ट्यूब खोल लिया है। किसी दूसरे चैनल का एक कार्यक्रम देख रहा हूं। एक बड़ी पार्टी के नेता एक महिला मंत्री से सवाल पूछने की शुरुआत में इस बात का खास जिक्र कर रहे हैं कि सुना है कि वो प्रधानमंत्री के बहुत करीब हैं। सोच रहा हूं कि अगर यह लाइन सवाल में नहीं भी होती तो सवाल का प्रारूप कितना बदल गया होता? नेता जी ने यह यूं ही तो नहीं बोला होगा?
लैपटॉप बंद कर दिया है। कपड़ों को तह लगाकर अलमारी में रखने के लिए बैठ गया हूं। पुराना अखबार बिछाने के लिए उठाया है। एक प्रतिष्ठित अखबार में दीपिका पादुकोण की क्लीवेज वाली तस्वीर छापने के विवाद वाला पन्ना हाथ में आ गया है। उसे रद्दी में बेचने के लिए अलग रख दिया है। एक दूसरे अखबार को पलट रहा हूं। पीछे छपा है कि क्या करें कि महिलाएं बिस्तर में आपसे खुश हो जाएं। अब दोनों अखबार मोड़कर कूड़े में फेंक दिया है।
बाहर शोर हो रहा है। दरवाजे पर खड़ा हूं। कचरा फेंकने को लेकर दो पड़ोसी लड़ पड़े हैं। गुस्सा बढ़ गया है। और ज्यादा.. मां-बहन की गालियां सुनाई दे रही हैं। मैं अंदर आ गया हूं। शायद एक-दूसरे की नहीं पर अपनी मां-बहनों का ख्याल करके दोनों पड़ोसी भी अंदर चले गए हैं। सन्नाटा है।
किसी ने टीवी ऑन किया है। कोई न्यूज़ चैनल चल रहा है। एंकर चिल्ला रहा है। बहुत चिंतित है। पूछ रहा है कि सलमान खान ने अब तक, 'ट्रेनिंग के बाद बलात्कार पीड़ित महिला जैसा फील होता था' के अपने इस बयान पर माफी क्यों नहीं मांगी है।
कुछ सवाल मन में उठने लगे हैं। अगर सलमान की सोच गलत थी, उसमें महिलाओं के लिए सम्मान नहीं था या बलात्कार पीड़ित के लिए दर्द नहीं था तो हममें से कितनों के अंदर महिलाओं के लिए यह सम्मान या बलात्कार पीड़ित के लिए यह दर्द है? अगर हम सब बलात्कार पीड़ित महिलाओं को लेकर संवेदनशील हैं तो क्यों आज भी ज्यादातर बलात्कार पीड़ित महिलाएं एक सामान्य सामाजिक जीवन जीने की जद्दोजहद से गुज़रती हैं? क्यों आज भी समाज को पता लगने के डर से बड़ी संख्या में रेप की घटनाएं रिपोर्ट नहीं होतीं? तो क्या हम सबके अंदर भी वही सलमान खान है जिसे हम बेहद असंवेदनशील बताकर उसकी माफी से कम में मानने को तैयार नहीं हैं?
मन में सवाल और तेज़ी से उठ रहे हैं अब। टीवी से अखबार तक महिलाएं वस्तु क्यों हैं, हर सामान बेचने के लिए महिलाओं को क्यों बिकना पड़ रहा है? टीवी से अखबार तक के जो बड़े-बड़े संपादक सलमान खान की संवेदनहीनता का मुद्दा उठा रहे हैं उनमें से कितने अपने दफ्तर की महिला कर्मियों के लिए संवेदनशील हैं?
क्या मां-बहन की गाली, संवेदनहीन होने की कैटगरी में नहीं आता? हर कामयाब महिला की कामयाबी के पीछे पुरुष बॉस के साथ सोने की मनगढ़ंत कहानी दूसरे सहकर्मियों को सुनाना संवेदनहीन होना नहीं होता? क्या एक ऐसा समाज महिलाओं को देना जहां वे अपनी मर्ज़ी से जी न सकें और बिना ख़ौफ कहीं भी आ जा न सकें, क्या यह संवेदनहीनता के दायरे में नहीं आता? या बच्ची को पेट मे मार देना संवेदनशील होने की निशानी है?
सवाल मन में आए जा रहे हैं। मैं इधर-उधर टहलकर सवालों की रफ्तार कम करने की कोशिश कर रहा हूं। कुछ सवाल अब भी मेरी तरफ देख रहे हैं। पूछ रहे हैं कि अगर सलमान खान संवेदनहीन है तो हम सबके अंदर भी ऐसा ही संवेदनहीन सलमान खान नहीं है क्या? अगर सलमान खान ने बिना सोचे समझे कुछ ऐसा कह दिया जो बलात्कार पीड़ितों के लिए जख्म की तरह है तो हममें से कितनों ने सोच समझकर बलात्कार पीड़ितों के लिए कुछ सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश की है? क्या और कितना बदलेगा सलमान खान के माफी मांगने से? बोरिया बिस्तर लेकर सलमान के पीछे पड़े लोग क्या खुद में मौजूद 'सलमान खान' से भी माफी की उम्मीद करेंगे और क्या हमारे अंदर का 'सलमान खान' कभी माफी मांगेगा?
This Article is From Jun 23, 2016
क्या हमारे अंदर का 'सलमान खान' माफी मांगने को तैयार है?
Sushant Sinha
- ब्लॉग,
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Updated:जून 23, 2016 21:07 pm IST
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Published On जून 23, 2016 21:07 pm IST
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Last Updated On जून 23, 2016 21:07 pm IST
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