विज्ञापन
This Article is From Apr 29, 2020

यादों में बसी हैं इरफान खान से हुई मुलाकातें : बोलते कम थे, सुनते ज़्यादा...

Vimal Mohan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 17, 2020 18:14 pm IST
    • Published On अप्रैल 29, 2020 21:09 pm IST
    • Last Updated On मई 17, 2020 18:14 pm IST

इरफ़ान ख़ान से बस दो-तीन मुलाक़ातें ही हो पाईं, बेहद छोटी. लेकिन हर मुलाक़ात यादगार रही. आख़िरी मुलाक़ात एनडीटीवी के पार्किंग एरिया में हुई. वे शायद 'पान सिंह तोमर' फ़िल्म के प्रमोशन के लिए एनडीटीवी के के स्टूडियो आए थे. उन्हें देखते ही मैंने कहा, आपकी 'एक डॉक्टर की मौत'.. के बाद ये सबसे अच्छी फ़िल्म लगी. उन्हें बहुत अच्छा लगा कि किसी पत्रकार ने उनसे इतने लंबे वक्त के बाद 'एक  डॉक्टर की मौत' का ज़िक्र किया. मुझे लगता है वो बोलते कम और सुनते ज़्यादा थे. वो दूसरों की बातों को आंखों में एक चमक और बड़े ही कौतूहल से सुनते थे. सुनते रहे. इस बीच अपनी जो भी कही, अलग ही अंदाज़ में कही. उन्होंने तब क्या कुछ कहा, वो बात आख़िर में..

एक डॉक्टर की मौत.. 90 के दशक में रिलीज़ हुई थी. तब दिल्ली में प्रगति मैदान के  शाकुन्तलम थिएटर में लगी थी. शाकुन्तलम में सस्ते टिकट में तब मल्टीप्लेक्स जैसा ही अहसास होता था. एक डॉक्टर की मौत में पंकज कपूर के किरदार के आगे भी इरफ़ान ने अपनी अलग छाप छोड़ी थी. कॉलेज के दोस्तों के बीच इरफ़ान की तारीफ़ करना तब अपने इंटेलेक्ट की तारीफ़ करने जैसा होता था. इरफ़ान के अभिनय  की तरह ही उनके अंदाज़ की वजह से लगता था उनमें सब पर छा जाने का करिश्मा है. उन्हें देखते ही लगता था जैसे ये शेर उनके लिए ही लिखा गया है,' ..महफ़िल में बैठ जाएं तो तन्हा दिखाई दें..'

इरफ़ान की शख़्सियत ही कुछ ऐसी थी कि आप उनके साथ खड़े हों तो आप उनके बारे में जानना चाहेंगे. उनका राजस्थान से दिल्ली आना, एनएसडी में दाखिला लेना, सीके नायडू क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए चयन किया जाना जैसी कई बातें अब उनकी चर्चित कहानियों का हिस्सा हैं. लेकिन कला और नई चीज़ों को जानने की उनकी ललक शायद उस तरह से अब तक सबके सामने नहीं आ सकी है. 

एक दफ़ा वे दिल्ली के ललित होटल की लॉबी में मिले. हमारे साथ कई पत्रकार एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के शुरू होने के इंतज़ार कर रहे थे. इरफ़ान काफ़ी देर तक होटल की लॉबी में लगी कलाकृतियों को बड़े ही ग़ौर से देखते रहे. इस दौरान उनके एक-दो पुराने दोस्त मिले भी तो वो किसी को ज़्यादा तवज्जो दिए बगैर अपना काम करते रहे. ऐसा लग रहा था जैसे किसी फ़िल्म की रेकी कर रहे हों. किसी ने शायद कुछ पूछा भी तो कहा, 'अच्छा है, थोड़ी देर में मिलते हैं ..'

इरफ़ान की शख़्सियत और एक्टिंग में एक ख़ास बात थी. वो कभी स्तर से उतरते या फ़ूहड़ नहीं दिखे. इरफ़ान को आपने जिस फ़िल्म में भी देखा हो, वो किरदार आपके ज़ेहन में अपनी जगह ज़रूर बनाता रहा होगा. सलाम बॉम्बे, मुझसे दोस्ती करोगा, एक डॉक्टर की मौत, मक़बूल, लाइफ़ इन अ मेट्रो, द नेमसेक, संडे, बिल्लू, द जंगल बुक, स्लमडॉग मिलिनेयर, लाइफ़ ऑफ़ पाई, हैदर, पीकू, क़रीब-क़रीब सिंगल, हिन्दी मीडियम और अंग्रेज़ी मीडियम जैसी उनकी कई फ़िल्में हैं जो बार-बार देखी जा सकती हैं. 

इरफ़ान अपनी यादों के साथ बहुत सारा दर्द छोड़ गए. उनसे हुई आख़िरी मुलाक़ात में कहा कि आपको और भी स्पोर्ट्स की फ़िल्में करनी चाहिए. वो मुस्कुराए और कहा, "हां, शायद..." जब पूछा कि आपने कहां से पान सिंह तोमर को ढूंढ लिया. देश के बहुत से नामचीन पत्रकार या खेल से जुड़े लोगों को भी पान सिंह तोमर के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं. वो पान सिंह तोमर की शख़्सियत के बारे में संजीदगी से बताते रहे. फिर आख़िर में जो कहा ...शायद अलंकारों में अपने लिए भी एक इशारा कर गए. कहा, "पान सिंह की मौत और भी दर्दनाक थी....आख़िर में वो पानी मांगते रहे...लेकिन उन्हें दिया नहीं गया. हमने फ़िल्म में ये एंड (अंत) नहीं दिखाया..."

(विमल मोहन एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com