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This Article is From Aug 10, 2016

बिहार में शराबबंदी : नीतीश की राष्ट्रीय चुनाव नीति की नींव

Nidhi Kulpati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 10, 2016 21:01 pm IST
    • Published On अगस्त 10, 2016 20:58 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 10, 2016 21:01 pm IST
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराब बंदी कर एक ऐतिहासिक सामाजिक कदम उठा लिया है. शराब बंदी पर लाए गए सख्त कानून की आलोचनाओं को देखते हुए उन्होंने एनडीटीवी की वेबसाइट पर एक लेख लिखकर अपने राज्य में शराब पर रोक लगाने के प्रयासों पर नजरिया साफ किया. उन्होंने महात्मा गांधी को याद कर लिखा कि बापू ने भी 1931 में 'यंग इंडिया ' में लिखा था कि ''यदि मुझे एक घंटे के लिए पूरे भारत का तानाशाह बना दिया जाए तो बिना मुआवजे के सभी शराब की दुकानों को बंद करना मेरा सबसे पहला कदम होगा. '

अपने कदम को सही ठहराने के लिए नीतीश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर कहा कि मादक पदार्थों के बिजनेस या व्यापार का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. राज्य को अपनी नियामक शक्तियों के तहत मादक पदार्थों के किसी भी रूप के निर्माण,भंडारण, आयात, निर्यात, बिक्री और कब्जे पर पांबंदी लगाने का अधिकार है. उन्होंने समझाया  कि सघन समीक्षा और जन जागरूकता के बाद कानून बनाया. एक करोड़ अभिभावकों ने शराब न लेने की शपथ ली. पांच लाख स्वयंसेवी समूहों ने ग्राम संवाद कायम किया. इससे सामाजिक बदलाव की नींव पड़ी है. यह भी लिखा कि एक शक्तिशाली लाबी इसके खिलाफ है.

लेकिन नीतीश के बिहार आबकारी संशोधन बिल 2016 के तहत कुछ प्रावधान विवाद का मुद्दा बन गए हैं. इसके तहत घर में सभी वयस्क की जिम्मेदारी होगी अगर घर में शराब मिलती है या पी जाती है. यह गैर जमानती है, स्पेशल कोर्ट इसके लिए बनाए गए हैं जो आबकारी मामलों को निबटाएंगे. अब तक यह कोर्ट सिर्फ अफसरों में भ्रष्टाचार के मामले देखते आए हैं. बहरहाल बिहार में गंभीर अपराधों जैसे माओवादी हिंसा,आतंक, रेप और हत्या तक के लिए ऐसे कोर्ट नहीं हैं. नए प्रवधान के तहत अगर किसी बर्तन में चीनी, गुड़ और अंगूरों का मिश्रण मिल जाता है तो पुलिस को अधिकार होगा यह मानने का कि यहां शराब बन रही थी. घर मालिकों की जिम्मेदारी होगी यह सुनिश्चित करना कि किरायेदार शराब तो नहीं पी रहे. अगर सांस चेक करने के लिए ब्रीथ एनालाइजर से जांच नहीं कराते तो वह भी एक अपराध होगा. एक और विवादास्पद प्रावधान है कि वह घर जब्त हो जाएगा जहां शराब पी या रखी जा रही है.

नीतीश कुमार के नए नियम  तुगलकी फरमान बताए जा रहे हैं. नीतीश कुमार का कहना है कि 'जो लोग इस प्रावधान की आलोचना कर रहे हैं तो उनसे आग्रह है कि कृपया वे यह बताएं कि यदि किसी के घर से शराब की बोतलें बरामद होती हैं और परिवार का कोई भी सदस्य इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता तो किसे पकड़ा जाना चाहिए. उन्हें यह भी बताना चाहिए कि घर यदि पत्नी के नाम है तो किसे गिरफ्तार करें...." तो नीतीश कुमार भले ही शराब बंदी को लेकर बेहद संजीदा हों लेकिन इनकी व्यवहारिकता पर सवाल हैं. क्या इसका विरोधियों के खिलाफ प्रयोग होगा? क्या पुलिस राज की ओर बढ़ा जा रहा है? क्या वसूली का कारोबार बढ़ेगा? पुलिस पर भी कार्रवाई का दबाव पड़ रहा है. पुलिस महकमे में अधिकारी थाना प्रभारी नहीं बनना चाह रहे हैं. नीतीश बहरहाल इतने गंभीर हैं कि उनके इलाके नालंदा में एक पूरे गांव पर जुर्माना लगा दिया गया.

नीतीश कुमार की इस कड़ाई के पीछे सामाजिक पहलू तो है ही लेकिन यह राष्ट्रीय रजनीति में जगह बनाने की कोशिश भी मानी जा रही है. राज्य को कमाई का नुकसान गिनाया जा रहा है लेकिन इससे राजनीतिक पकड़ मजबूत हो रही है. बिहार, तमिलनाडु में शराबबंदी की घोषणा के बाद अन्य राज्यों में भी इसकी मांग उठ रही है. महाराष्ट्र में तीन जिलों में शराब बंदी लागू है लेकिन फडणवीस सरकार के लिए पूरे राज्य में बंद करना आसान नहीं होगा क्योंकि इससे 15,000 करोड़ की कमाई होती है. छत्तीसगढ़, झरखंड में इसके लिए मांग उठ रही है. नीतीश कुमार ने उत्तरप्रदेश का रुख भी किया है. अखिलेश यादव को यूपी में भी इसे लागू करने का सुझाव दिया जा रहा. सवाल उठ रहे हैं कि दिल्ली को सलाह क्यों नहीं जबकि अरविंद केजरीवाल उनके खासे करीबी दोस्त बताए जाते हैं. शायद इसलिए भी कि यूपी में चुनाव हैं, दिल्ली में नहीं.

बिहार से पहले कई राज्यों में पूर्ण शराबंदी की पहल हुई लेकिन गुजरात को छोड़ किसी राज्य में बरकरार नहीं रह सकी. बिहार के साथ-साथ यह गुजरात, केरल और लक्षद्वीप में पूरी तरह लागू है. मणिपुर नगालैंड में आंशिक तौर पर. इससे पहले आंध्र,तमिलनाडु, हरियाणा में चल नहीं सकी. मिजोरम में 18 साल बाद हटाई गई. सन 1977 में कर्पुरी ठाकुर ने बिहार और 1996 में बंसीलाल ने हरियाणा में घोषणा की लेकिन चल नहीं पाई. अमेरिका में भी 1920 से 1933 तक शराबबंदी का प्रयोग किया गया था. यूरोप और दक्षिण अमेरिका में भी, लेकिन सफल नहीं रहे. तो नीतीश कुमार सामाजिक बदलाव की नींव रखकर राष्ट्रीय राजनीति में पैर जमा रहे हैं. साल 2019 के चुनावों की ज़मीन बनानी उन्होंने शुरू कर दी है.

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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