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This Article is From Jul 16, 2020

राजनीतिक अस्तित्व के लिए सचिन पायलट की राह

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 16, 2020 19:41 pm IST
    • Published On जुलाई 16, 2020 19:41 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 16, 2020 19:41 pm IST

सभी लोग अलग-अलग कार्रवाई की बात करते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि पायलट अपने साथ जुड़े 16 विधायकों के साथ अब भी बीजेपी से बात कर रहे हैं. अपना चेहरा बचाने की आशा में उन्होंने एक स्वतंत्र संगठन के बारे में सोचा था. उनका अनुमान है कि बीजेपी और कांग्रेस के कुछ ''खिलाड़ियों'' के समर्थन वाली उनकी नई पार्टी दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगी.  

अहंकार की आग दोनों तरफ जल रही है.  कांग्रेस पार्टी के निशानेबाजों का दावा है कि पायलट ने भाजपा के साथ मिलकर अपनी ही सरकार को गिराने की तीन बार कोशिशें कीं. एक बार BC (कोरोनोवायरस से पहले), फिर पिछले महीने राज्यसभा चुनावों के दौरान, और अब "मानेसर विद्रोह" के साथ.

पायलट नाराज हैं, जो अनजाने में उप मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दरकिनार किए गए थे. उनकी चिंताओं का सारां इन दो बिंदुओं में साफ होता है: प्रियंका गांधी वाड्रा (सप्ताहांत पर) से बात करने के बाद, मैंने पार्टी में अपना विश्वास दोहराया (मैंने सार्वजनिक रूप से कांग्रेस विरोधी शब्द कभी नहीं कहा) और फिर मैंने कहा कि मैं भाजपा ज्वाइन नहीं कर रहा था. इस कोशिश के लिए मुझे क्या मिला? नोटिस (कांग्रेस विधायक के रूप में अयोग्य होने पर)."

दूसरी तरफ, कांग्रेस के अनुभवी संकटमोचक कहते हैं, "एक बार वे सार्वजनिक बयान में कहें कि मैं कांग्रेस अध्यक्ष (सोनिया गांधी) या पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष (राहुल गांधी) से बात करूंगा और उनसे बिना किसी शर्त के न्याय मांगूंगा. बिना किसी पूर्व-शर्तों (जैसे वह बना रहे हैं) के जयपुर वापस लौटें. "

मानेसर से जयपुर की एक छोटी ड्राइव हो सकती है, लेकिन यह दूरी बढ़ रही है.

राहुल गांधी के यूथ कांग्रेस को दिए गए बयान के बाद से हमेशा की तरह एक महत्वपूर्ण क्षण में समस्या और बढ़ गई है. राहुल गांधी ने यूथ कांग्रेस से कहा कि "कोई भी छोड़ दे, बड़े नेता या और कोई, यह आपके लिए अधिक स्थान बनाता है." 

गांधी की ओर से काम करने वालों का कहना है कि सभी के कंधे पर एक हाथ है (हां, कांग्रेस के सिंबल में निहित इरादा), जो कि सही समय पर तनाव घटाने के लिए "परिवार" द्वारा रखा गया है- लेकिन देर से, अब यह काम नहीं कर रहा. सिंधिया ने पेंच कसा; पायलट अपने ही तीन महीने पुराने नक्शेकदम पर चल रहा है.

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राजनीतिक व्यवहारिकता पर विचार करना होगा. पायलट जर्द हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि उन्होंने कांग्रेस से विधायकों को लेकर शायद अपनी क्षमता से अधिक अनुमान लगाया. राजस्थान मध्यप्रदेश नहीं है, जहां सिंधिया के पाला बदलने के लिए कमलनाथ सरकार का मार्जिन काफी कम था. पायलट राजस्थान में इसका सीक्वल नहीं दे सकते. और इसके पीछे केवल सत्ता के भूखे अमित शाह और उनके "कांग्रेस-मुक्त भारत" का एजेंडा है.

एक और बड़ा अंतर. मध्य प्रदेश में चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया और उनके लोगों को सरकार में समायोजित किया- उन्हें पता था कि टॉप आफिस में फिर से प्रवेश पाने के लिए कीमत तो चुकानी पड़ेगी. राजस्थान में भाजपा की वसुंधरा राजे संभावित दावेदारों या प्रतिद्वंद्वी सत्ता के खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के मूड में नहीं हैं, खासकर वे जो उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बना सकते हैं. शाह को उनके साथ सावधानी से चलना है. राजे के मोदी और शाह के साथ एक झगड़ालू संबंध हैं जो कि 45 विधायकों के एक बड़े समूह से नियंत्रित किए जाते हैं.

अपनी मौजूदा ताकत के आधार पर पायलट के पास सिर्फ यही विकल्प है कि वे गांधी परिवार द्वारा उनके लिए छोड़े गए रास्ते का लाभ उठाएं और विलक्षण पुत्र के रूप में वापसी करें. या फिर किसान अधिकारों के लिए लड़ने वाला एक अर्ध-राजनीतिक संगठन शुरू करें. इसके लिए राजस्थान में राजनीतिक विकल्प द्विआधारी है, इसमें कांग्रेस और भाजपा के लिए मतदान के विकल्प हो सकते हैं. 

पायलट युवा हैं,  गहलोत 69 के हैं जबकि वे सिर्फ 42 साल के हैं. वे कांग्रेस के साथ इंतजार करके बेहतर सेवा कर सकते हैं. राहुल गांधी ने कथित तौर पर उनसे कहा था कि वे मुख्यमंत्री बाद में बनेंगे, लेकिन अभी उन्हें जयपुर वापस भेजना मुश्किल और गहलोत को जोखिम में डालना होगा. इसके बजाय केंद्र में पायलट को एक अहम स्थान दिया जा सकता है.

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राहुल गांधी और सचिन (फाइल फोटो).


इस बीच, गहलोत को विश्वास है कि वे विश्वास मत जीत सकते हैं, वे पायलट को कोई रियायत नहीं दे रहे हैं. उनके अपने पूर्व डिप्टी पर हमले व्यक्तिगत और क्रूर हो गए हैं - "केवल अच्छी अंग्रेजी के साथ दिखने में सुंदर" और "इसके सबूत हैं कि उन्होंने विधायकों को खरीदने के लिए नकद लेनदेन संभाला." गहलोत को जोधपुर से आम चुनाव हार चुके अपने बेटे वैभव के उत्तराधिकार के लिए भी योजना बनानी पड़ी. 

पायलट तेजतर्रार राजनीतिक प्रवृत्ति के हैं और समझते हैं कि सत्ता की भूख में महामारी के इस दौर में ही अपनी ही सरकार को पटकने की जल्दबाज़ी में उनका नुकसान होगा. वह जिस चीज का इंतजार कर रहे हैं वह है गांधियों की एक पेशकश, जो बिना किसी चोट के उन्हें मिला अपमान खत्म करने की इजाजत दे सकती है.

चाहे उनकी बेलआउट पजेसिव-एग्रेसिव कांग्रेस या भाजपा व शाह के साथ कुछ विधायकों के साथ हो, अगले कुछ दिन में तय हो जाएगा. और फिर वहां विकल्प है कि युवा नेताओं को लगता है कि राहुल गांधी के साथ वीपी सिंह और सोनिया गांधी के रूप में वहां जाना जाता है- अंततः सत्ता के साथ सार्वजनिक त्याग.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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