"यह मौसम भी गया, वह मौसम भी गया, अब तो कहो, मेरे सनम फिर कब मिलोगे, मिलेंगे जब हां हां हां.. बारिश होगी।" बॉलीवुड के इस गाने की तरह कुछ मौसम तो चला गया, लेकिन अब यह मिलन दूर नहीं है।
बारिश तो शायद नहीं होगी, लेकिन इस ठंड में अब बीजेपी और आम आदमी पार्टी का मिलन होने वाला है। यह मत सोचिए ये दोनों पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगी बल्कि चुनावी मैदान में ये पार्टियां एक-दूसरे से मिलेंगी और लड़ेंगी।
दोनों पार्टियों ने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। वैसे, आम आदमी पार्टी पहले से ही जोर-शोर से तैयारी में लगी हुई है, लेकिन अब बीजेपी भी सामने आ गई है।
किरण बेदी, शाजिया इल्मी, कृष्णा तीरथ जैसे महिला चेहरों को शामिल करके बीजेपी ने अपनी रणनीति साफ कर दी है। इस मिलन में कांग्रेस को दूर रखिए, क्योंकि कांग्रेस की असली मिलन तब होगा, जब जरूरत पड़ने पर वह चुनाव के बाद तय करेगी कि किसके साथ मिलकर सरकार बनानी है या किसके साथ नहीं।
दिल्ली के चुनाव को लेकर जो अटकलें लगाई जा रही थीं, वह अब खत्म हो गई हैं। 7 फरवरी को दिल्ली में मतदान होगा और 10 फरवरी मतगणना होगी। इसके बाद ही पता चलेगा कि मोदी जी केजरीवाल जी को बधाई देंगे या केजरीवाल मोदी जी को।
मार्च तक सरकार बन जाएगी, अप्रैल में हमलोग आकलन करेंगे, जून में सरकार की आलोचना करने का कार्यक्रम शुरू होगा.... फिर जैसा होता है,,,, वैसा चलता रहेगा।
वैसे आप लोगों का कहना है कि इस बार 'आप' आपकी है या बीजेपी अबकी। केजरीवाल जी की 49 दिन की सरकार आपको याद आ रही है या मोदी जी की सात महीने की। यह लड़ाई बीजेपी या आप पार्टी के बीच नहीं, बल्कि मोदी और केजरीवाल के बीच है।
एक ऐसी लड़ाई, जो बहुत कम दिखाई देती है, जैसे वाराणसी में दिखाई दी थी, जहां पूरी मीडिया वाराणसी के गंगा के किनारे बांसुरी बजाती नज़र आई थी।
वैसे यह तो साफ है कि दिल्ली के इस मैदान में केजरीवाल तो चुनाव लड़ रहे है लेकिन मोदी जी नहीं। मगर बीजेपी मोदी जी की अगुवानी में चुनाव लड़ रही है, जैसे महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और में झारखंड में लड़ी थी। चुनावी मैदान में किरण बेदी के रूप में मोदी जी ने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया है।
दिल्ली में बीजेपी के लिए एक साफ-सुथरा चेहेरा मिल गया है। हर्षवर्धन के केंद्रीय मंत्री बन जाने के बाद बीजेपी के अंदर, जो संकट दिखाई दे रहा था, वह किरण बेदी के आने से दूर हो गया है। बेदी बीजेपी के लिए उम्मीद की किरण बन सकती हैं या नहीं, यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा, लेकिन किरण बेदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी पार्टी के अंदर जो "काले बादल" मौके का इंतज़ार कर रहे हैं, उन्हें अपने किरण से किनारे करना और पार्टी को एक नई दिशा में ले जाना।
जब लोकसभा चुनाव के बाद किरण बेदी के पार्टी में आने की बात चल रही थी, तब किरण बेदी को लेकर पार्टी के अंदर आवाज उठी थी। स्थानीय नेता इस खबर से खुश नहीं थे। अभी भी कई नेता नाराज हैं, लेकिन खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसा लग नहीं रहा है कि किरण बेदी के आने से बीजेपी को कोई ज्यादा फायदा होने वाला है।
चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं है और किरण बेदी के पास ज्यादा समय भी नहीं है कि वह लोगों के पास पहुंचे और उनका दिल जीत सकें, लेकिन आम आदमी पार्टी बीजेपी के चेहरे को लेकर जो सवाल उठा रही थी शायद अब उसे रोकने में किरण बेदी सक्षम होंगी।
अरविंद केजरीवाल अपनी हर रैली या इंटरव्यू के दौरान कौन होगा बीजेपी का मुख्यमंत्री को लेकर जो सवाल उठा रहे थे अब वह "सवाल" सवाल ही रह जाएगा। कहीं न कहीं किरण बेदी इस लिहाज़ से आम आदमी पार्टी को रोक सकती हैं।
कभी अरविंद केजरीवाल की दोस्त रहीं किरण बेदी अब केजरीवाल के खिलाफ खड़ी नजर आ रही हैं। अन्ना आंदोलन के समय केजरीवाल और किरण बेदी एक साथ जनलोकपाल के लिए अन्ना हज़ारे के साथ लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन जब केजरीवाल ने अपनी पार्टी बना ली तब किरण बेदी और केजरीवाल अलग हुए, लेकिन किरण बेदी कहती हैं कि मोदीजी की राजनीतिक शैली ने उन्हें प्रभावित किया है। कभी मोदी जी की आलोचना करने वाली किरण बेदी बीजेपी की किरण बन गई हैं।
राजनीति में केजरीवाल का जो तजुर्बा है, वह किरण के पास नहीं, लेकिन किरण बेदी भी एक अच्छी प्रशासक रूप में जानी जाती हैं। चुनाव में केजरीवाल और किरण जैसे लोग आएंगे तो तमाशा नहीं, वल्कि देश की तरक्की होगी।
इस बार चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है। भारत के इतिहास में शायद ही ऐसा चुनाव देखने को मिला हो, जहां जाति और धर्म नहीं बल्कि विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है। बिजली, पानी, सड़कें जैसे मुद्दे चुनाव में राजनेताओं के लिए चुनौती बन रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि दिल्ली में बीजेपी आम आदमी पार्टी से थोड़ी-सी आगे है। मध्यम वर्ग को मोदी पर भरोसा है, वह आप पार्टी के ऊपर भारी पड़ सकता है।
केंद्र में बीजेपी की सरकार होने से इसका फायदा बीजेपी को इन चुनावों में भी मिल सकता है, लेकिन निम्न मध्यम वर्ग और अल्पसंख्यकों के वोट केजरीवाल के साथ हैं। 49 दिन की सरकार छोड़ने की जो गलती आम आदमी पार्टी ने की थी, उसे इसका अहसास हो चुका है और सबसे बड़ी बात यह है कि केजरीवाल अपनी गलती के लिए दिल्ली की जनता से माफ़ी मांग चुके हैं। यह देखना बाकी है कि क्या दिल्ली की जनता केजरीवाल के दिल की बात सुनेगी या मोदी के मन की बात।