विज्ञापन
This Article is From May 26, 2015

संजय किशोर की कश्मीर डायरी-10 : हिमालय की गोद में 'मिनी स्विट्जरलैंड', यश चोपड़ा का प्यार

Sanjay Kishore
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 26, 2015 17:58 pm IST
    • Published On मई 26, 2015 16:47 pm IST
    • Last Updated On मई 26, 2015 17:58 pm IST
श्रीनगर से पहलगांव तक का पूरा रास्ता खूबसूरत केसर के बैगनी और सरसों के पीले फूलों से सजा हुआ था। रास्ते में अनंतनाग आता है। पहलगांव अनंतनाग जिले में है। यहां बंद का असर दिख रहा था। पलायन के कारण कश्मीर घाटी में गैर-मुस्लिमों की संख्या अब कम ही बची है, लेकिन अनंतनाग के आसपास सरदारों को बस्ती नज़र आई। अपने मिजाज़ के मुताबिक, बेपरवाह और बिंदास।

आगे एक पुलिस पिकेट लगी थी। जम्मू-कश्मीर पुलिस लग रही थी।
"कौन सी कंपनी में काम करते हो।" जरा रौब से पुलिस वाले ने पूछा।
"एनडीटीवी।"
आगे कोई सवाल नहीं किया और न ही गाड़ी की चेकिंग की।

आते समय प्लेन से नीचे देखा था कि पूरी घाटी में कोई चीज़ चमक रही है। नीचे आकर पता चला कि वे यहां के घर हैं। यहां के घरों के छत अमूमन टीन की बनी होती हैं। पहलगांव के रास्ते में लिड्‌डर नदी और लिड्डर घाटी की सुंदरता का वर्णन नहीं किया जा सकता। इसे महसूस करने के लिए आपको यहां आना पड़ेगा। नदी के किनारे खूबसूरत घर देखकर बड़ा रश्क हो रहा था। घर के सामने लॉन। लॉन के सामने कलकल बहती नदी। नदी में क्रिस्टल नीला पानी। बैक ड्रॉप में फ़िर पहाड़। पहाड़ पर बर्फ़। उफ़ ऐसी जगह कौन नहीं रहना चाहेगा। अरु में नदी के किनारे टूरिस्ट बंगले भी हैं। यहां रहकर इन सब का मज़ा लिया जा सकता है।

हम जल्दी ही पहलगांव पहुंचने वाले थे। पहलगांव गड़ेड़ियों का गांव रहा है। यहां हिमालय के दो रेंज हैं- पीर पांजाल और ज़ांसकार। सबसे अच्छी बात यह है कि यहां पहुंचने के लिए चढ़ाई वाले घुमावदार रास्ते नहीं हैं। पहलगांव पहुंचते ही पोनी वालों ने घेर लिया। पहलगांव में ज़्यादातर आपको पैदल या पोनी से ही घूमना पड़ता है। एक पोनी के 1200 रुपये मांग रहे थे। वहां लगे बोर्ड पर रेट का हवाला दे रहे थे। आबिद ने हमें बता दिया था यहां भी खूब मोल भाव होता है। आबिद ने यह भी कहा था कि आप पैदल भी जा सकते हो। पोनी वालों के रेट सुनकर हम गुस्से में पैदल ही बढ़े, लेकिन एक ढीढ पोनी वाला हमारे पीछे-पीछे लग गया। थोड़ी दूर जाने पर ही हमें पता चल चुका था कि बिना पोनी लिए पहाड़ों पर चढ़ना आसान नहीं है। काफ़ी मोलभाव के बाद 500 रुपये प्रति पोनी पर वह राजी हुआ। 3-4 प्वाइंट्स दिखाने की बात हुई जिसमें शामिल थे-डबियां, कश्मीर वैली, पहलगांव वैली और बैसरन। बैसरन को मिनी स्वी्‌जरलैंड कहा जाता है। जल्दी ही उसने फ़ोन कर 4 पोनी बुला लिए। 4 पोनी के साथ सिर्फ़ दो लोग थे। रास्ता क्या था सिर्फ़ पगडंडी थी। देवदार के दरख्तों के बीच पतली पगडंडी पर पोनी बिल्कुल किनारे चलते हैं। बहुत..बहुत..बहुत.. ज़्यादा डर लगता है। हमेशा डर बना रहता है कि अब गिरे खायी में, लेकिन ये पोनी बेहद ट्रेंड होते हैं। उन्हें हर रास्ते और हर मोड़ के बारे में पता होता है। गज़ब का संतुलन होता है, पोनी का। मेरा पोनी खास कर ज़्यादा शरारती था। पोनी वाले ने बताया कि वह 3 साल का ही है। बच्चा है। इसलिए गर्म मिज़ाज का है। एक बार मेरे पोनी ने दूसरे पोनी को धक्का दे दिया। लगा कि खाई मे गिरे। किसी दोस्त ने बाद में बताया कि अक्सर परिवार के मुखिया को वे बदमाश वाले पोनी दे देते हैं। पता नहीं क्यों और इसमें कितनी सच्चाई है। वैसे बच्चों को कम डर लग रहा था। हमने पोनी वाले से कहा भी कि हर पोनी के साथ एक एक आदमी होने चाहिए थे। उसने हंस कर कहा कि एक पोनी 5-6 घोड़ों को लेकर अमरनाथ चला जाता है। अमरनाथ यात्रा पहलगांव से ही शुरू होती है। पहलगांव बेस कैंप होता है। जुलाई से सितंबर तक यात्रा के कारण शहर में बहुत ज़्यादा भीड़ होती है।

पहले प्वाइंट पर पोनी वाले रुके तो जान में जान आयी। बेहद खूबसूरत दृश्य था। पोनी वालो ने हमारे खूब सारी तस्वीरें उतारीं। वहां कुछ महिलाएं और बच्चे भी थे। वे ज़बरदस्ती खरगोश को हमें थमा रहे थे। फ़ोटो पोज़ के लिए। दूसरे प्वाइंट पर एक बेहद खूबसूरत झड़ना था। मेरा शरारती पोनी पानी पीने झड़ने की तरफ़ दौड़ पड़ा। बड़ी मुश्किल से पोनी वाले ने उस पर काबू किया। सच तो ये है कि मिनी स्वीट्जरलैंड कहे जाने बैसरन के छोड़ वास्तव में कोई प्वाइंट नहीं है। हां पूरा इलाका ही खूबसूरत और मनमोहक है। बैसरन पहलगांव शहर से 5 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंच कर आप सारा डर और पोनी राइड की तकलीफ़ एक पल में भूल जाएंगे। सामने मानो कुदरत का कैनवाश हो। बहुत बड़ा घास का मैदान। चारों और नीले पहाड़। बर्फ़ से ढकी सफ़ेद चोटियां। लंबे-लंबे देवदार के दरख़्त। प्रकृति की सुंदरता देखकर एकबारगी हम सब स्तब्ध थे। बॉलीवुड के निर्देशकों की यह पसंदीदा जगह रही है।

1990 तक यहां फिल्मों की खूब शूटिंग होती थी। साठ से अस्सी के दशक तक यहां आरज़ू, कश्मीर की कली, जब जब फ़ूल खिले, कभी-कभी, सिलसिला, सत्ते पे सत्ता, रोटी जैसी सुपरहिट फ़िल्मों की शूटिंग हुई। 1983 में सन्नी देयोल और अमृता सिंह की फ़िल्म 'बेताब' की शूटिंग यहीं हुई थी। उस जगह का नाम बेताब वैली पड़ गया है। हालांकि बेताब वैली हम घूम नहीं पाए। रास्ता बंद होने के कारण हम वहां नहीं जा पाए, लेकिन फिर आतंकवाद के कारण यहां शूटिंग पर ब्रेक लग गया। 2011 में इम्तियाज़ अली की "रॉक स्टार" के साथ यहां दोबारा जोर-शोर से शूटिंग शुरू हुई है।

यश चोपड़ा की आखिरी फ़िल्म "जब तक है जान" की शूटिंग भी पहलगांव में हुई थी। शाहरुख़ ख़ान, अनुष्का शर्मा और कैटरीना कैफ़ थे इस फ़िल्म में। 'स्टूडेंड ऑफ़ द ईयर', 'ये जवानी है दीवानी', 'भाग मिल्खा भाग', 'हाइवे', 'हैदर' और अब 'बजरंगी भाईजान' की शूटिंग कश्मीर में हो रही है। (जारी है)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
कश्मीर यात्रा, संजय किशोर, कश्मीर डायरी, गुलमर्ग, Kashmir Visit, Sri Nagar, Sanjay Kisore, Kashmir Diary
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com