“मध्ययुगीन अतार्किक होने का एक रूप है धर्म और जब हम इसे आधुनिक हथियारों से मिला देते हैं तो यह हमारी आज़ादी के लिए ख़तरा बन जाता है। इस एकछत्र धार्मिक नियंत्रणवाद ने इस्लाम के दिल में ख़तरनाक घाव कर दिया है और आज हमने पेरिस में इसका एक दुखद नतीजा भी देखा। मैं शार्ली एब्दो के साथ हूं और हम सबको इसके साथ होना चाहिए ताकि हम व्यंग्य की कला का बचाव कर सकें, जो हमेशा ही बेईमानी, मूर्खता और आतंक की सत्ता के खिलाफ आज़ादी की ताकत रही है। धर्म का आदर करो का मतलब धर्म से डरो हो गया है। दूसरे अन्य विचारों की तरह धर्म की भी आलोचना होनी चाहिए, व्यंग्य होना चाहिए और हां, बिना डरे अनादर भी।
यहां सलमान रूश्दी के बयान का अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद इसलिए किया है ताकि हम पेरिस की घटना की निंदा तक ही सीमित न रहें। उन सवालों से भी टकराएं और उठाएं जिन्हें धार्मिक सत्ता के नाम पर दबाया जा रहा है। सलमान रूश्दी की इस बात को आप दुनिया के किसी भी देश और उस देश के गली-मोहल्ले में होने वाली बहसों में फिट कर सकते हैं। भारत में भी आए दिन धार्मिक सत्ता के नाम पर दिए गए मूर्खतापूर्ण बयानों को धर्म के आदर के नाम पर सही ठहराया जा रहा है। आस्था के नाम पर हम पूरी दुनिया में एक से एक हिंसक अंजाम देख चुके हैं। आस्था और आदर ने जितना धर्म को सहज और सुलभ नहीं किया है उससे कहीं ज्यादा हिंसक किया है।
ये वही आस्था और आदर के सवाल हैं जिनके नाम पर राजनीतिक दलों के लोग धार्मिक संगठनों से समझौता करते हैं। उन्हें अपनी चुनी हुई सत्ता का विशेषाधिकार सौंपते हैं। धार्मिक संगठनों के लोग राजनीतिक दलों को समझौता करने के लिए मजबूर करते हैं। आखिर हमने कब यह स्वीकार कर लिया कि आलोचना, व्यंग्य या सवाल करने से धर्म की सत्ता कमज़ोर हो जाती है। क्यों लगता है कि किसी के कार्टून बना देने या गाने लिख देने से अनादर उस सीमा तक हो गया कि धर्म का वजूद संकट में पड़ सकता है। दुनिया के हर धर्म में अच्छी बातें हैं तो बुरी से लेकर बहुत बुरी बातें हैं। हमें इसका सामना करना पड़ेगा। हम ही नहीं सदियों से लोग करते आए हैं तभी जाकर धर्म की कुछ बुराइयों पर काबू पाया जा सका है। इस पर अभी और काबू पाया जाना है।
धर्म के प्रति हमारी कमज़ोर समझ ने आस्था और आदर की लकीर को और गहरा किया है। इतना गहरा कर दिया है कि हम इसके नाम पर होने वाली उद्दंडता को ईश्वरीय मानने लगे हैं। हमें अब यह समझना होगा कि आखिर क्यों दुनियाभर में धर्म हिंसा का कारण बन रहा है। धर्म के प्रति इतनी भी निष्ठा ठीक नहीं है। हमारी नागरिकता और राष्ट्रीयता धर्म के नाम पर परिभाषित नहीं हो सकती है। कोशिश तो की जा रही है, लेकिन सफल नहीं हुई और सफल हो गई तो हम सब एक पोंगा नागरिक बन जाएंगे जैसे कर्मकांडों को ही धर्म समझने वाले को हम पोंगा पंडित कहते हैं। दुनियाभर में धार्मिक राष्ट्र की सत्ता कायम करने का ख़्वाब दिखाने वाले मूर्खों की चाल को समझिये। अपने विवेक की सत्ता को किसी ठेकेदार के हवाले मत कीजिए।
धर्म की सत्ता हमें चुनौती दे रही है। धर्मों का नाम बदल दीजिए, लेकिन इसके नाम पर होने वाली करतूतों में कोई अंतर नहीं है। कहीं इसके नाम पर कोई बंदूक चला रहा है तो कोई दंगे करवा रहा है। इन दंगों में गर्भवती महिलाओं के पेट तक चीर दिए गए हैं और लोगों को घरों में बंद कर जला दिया गया है। गले में टायर डालकर जलाया गया है। आए दिन धर्म के नाम पर दिये जाने वाले अनाप-शनाप बयानों को आंख दिखाने की ज़रूरत है। आस्था अगर अपना जवाब सिर्फ हिंसा से ही देना समझती है तो ज़रूरत है कि हम इस आस्था के ख़तरनाक मंसूबों को पहचान लें।
इसलिए धर्म पर सवाल कीजिए। व्यंग्य कीजिए। पालन और आदर भी कीजिए, लेकिन इसकी स्वाभाविकता को इतना भी पत्थर मत बना दीजिए कि एक दिन पालन करने वाले का ही सिर फट जाए। हमारी कमज़ोरी का सबसे ताकतवर और अतार्कित रूप धर्म ही है। यह हमें हमारी संभावनों को सीमित करने का काम ज्यादा करता है। सदियों से ऐसे लोगों को धर्मभीरू कहा जाता है। जब धर्म का आचरण करने वाले धर्म भिरुओं की संख्या बढ़ जाती है तब धर्म में हिंसा पैदा करने की संभावना तेज़ हो जाती है। इसलिए धार्मिक बनिए धर्म भीरू नहीं।
रही बात एक आदर की तो वो कौन तय करेगा। कब और कहां से तय होगा। यहां तो मामूली आलोचनाओं पर भी लोग पोस्टर फाड़ने निकल आते हैं। दुनियाभर में शार्ली एब्दो के कार्टून की पेशेवर आलोचना भी हुई है। इसके छापने न छापने पर हमेशा से कई राय रही हैं। कई लोगों की राय है कि ये कार्टून जानबूझ कर भड़काने वाले रहे हैं। शार्ली एब्दो में कई धर्मों के ऐसे कार्टून बनाए गए हैं। पर यही तरीका बेहतर है कि हम इसकी पेशेवर आलोचना करें। कहें कि फूहड़ है। बेकार है। नहीं छापने लायक है। घटिया व्यंग्य है। सड़कों पर उतरकर लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना है तो वो भी कीजिए। लेकिन इसकी जगह बंदूक उठा लें, हिंसा करें, आग लगा दें तो यह एक फूहड़ कार्टून, फूहड़ फिल्म या संवाद से भी घटिया और अधार्मिक काम है। हमें एक नागरिक के तौर पर खुद को तैयार करना चाहिए कि हम धर्म की सख़्त से सख़्त आलोचनाओं को सुनें और सहन करें। वर्ना हम किसी संगठन के इस्तेमाल किए जाने लायक खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
धर्म का इस्तेमाल डरने और डराने के लिए न हो। जैसे किसी भी लोकतंत्र में सवाल करने का जज़्बा ही आपको बेहतर नागरिक बनाता है उसी तरह किसी भी धर्म में अनादर करने का संस्कार ही आपको बेहतर ढंग से धार्मिक बनाएगा। धर्म की सत्ता ईश्वरीय नहीं है। इसके नाम पर सत्ता बटोरने वाले लौकिक हैं। इस जगत के हैं। इसलिए उन्हें सवालों के जवाब तो देने होंगे। इसके नाम पर इसलिए धर्म का बिना डरे अनादर कीजिए।
This Article is From Jan 08, 2015
रवीश कुमार की कलम से : धर्म के आदर के नाम पर
Ravish Kumar
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Updated:जनवरी 08, 2015 15:08 pm IST
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Published On जनवरी 08, 2015 11:05 am IST
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Last Updated On जनवरी 08, 2015 15:08 pm IST
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