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This Article is From Jan 20, 2015

रवीश कुमार : दिल्ली के लिए नई दिल्ली से बीजेपी की तौबा

Ravish Kumar, Saad Bin Omer
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  • Updated:
    जनवरी 20, 2015 01:15 am IST
    • Published On जनवरी 20, 2015 01:05 am IST
    • Last Updated On जनवरी 20, 2015 01:15 am IST

तो नई दिल्ली से नहीं लड़ेंगी किरण बेदी। जब से किरण बेदी भाजपा मे आईं हैं, तब से उनसे पत्रकार नई दिल्ली के बारे में पूछ रहे हैं। किरण बेदी ने भी औपचारिक तौर पर हां या ना कहे बिना इस रोमांच को बनाए रखा। चुनाव में कोई भी उम्मीदवार किसी चुनौती को सीधे ख़ारिज नहीं करता है। इसलिए वह कहती रही हैं कि पार्टी जहां से लड़ाएगीं मैं तैयार हूं।

बीजेपी ने किरण बेदी को कृष्णानगर से लड़ाने का फ़ैसला किया है। इसी के साथ नई दिल्ली के लिए तैयार किरण बनाम केजरीवाल जैसी सुर्ख़ियां धरी की धरी रह गईं। अब चैनलों और अख़बारों को नई दिल्ली और कृष्णानगर के लिए अलग अलग सुर्खियों की तुकबंदी करनी पड़ेगी।

नई दिल्ली सीट दिल्ली की राजनीति में रोमांच और जुनून का प्रतीक बन गई है। पिछले चुनाव में दिग्गज शीला दीक्षित को अरविंद केजरीवाल ने चुनौती देने की घोषणा से सबको चौंका दिया था। कइयों को लगा था कि नई दिल्ली से शीला दीक्षित को हराना मुश्किल है।

यह एक ऐसा दांव था, जिसने आम आदमी पार्टी को मैच के पहले ही ओवर से आक्रामक दल के रूप में स्थापित कर दिया। अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को हरा दिया। इसी कारण मीडिया और लोग इस बार भी नई दिल्ली सीट पर किसी बड़ी जंग की उम्मीद लगाए बैठे थे। सबको लग रहा था कि बीजेपी भी अरविंद को ऐसी ही पटखनी देगी।

लेकिन किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का बड़ा दांव चल कर भी बीजेपी ने उन्हें चुनाव लड़ाने के मामले में कोई जोखिम नहीं उठाया। हर पार्टी को अपने हिसाब से रणनीति बनाने का हक़ है, लेकिन बीजेपी ने किरण बेदी के लिए सुरक्षित सीट चुनकर यह भी संकेत दिया है कि फ़ोकस चुनाव जीतने पर रखा जाए न कि कोई एक सीट। कृष्णा नगर के कारण किरण बेदी बाक़ी दिल्ली में प्रचार कर सकेंगी।

पूर्वी दिल्ली का कृष्णानगर 1993 से बीजेपी के पास है। यहां से डाक्टर हर्षवर्धन जीतते रहे हैं। इस सीट पर उन्हें कोई नहीं हरा सका। साल 2008 के विधान सभा को छोड़कर बीजेपी को यहां कभी भी पचास प्रतिशत से कम वोट नहीं मिले हैं। इस लिहाज़ से यह भाजपा की सीट है। नई दिल्ली से बीजेपी ने नूपुर शर्मा को उतारा है।

दिल्ली की राजनीति पर नज़र रखने वाले और चुनावी चस्का लेने वाले इस ख़बर को कई तरीके से पढ़ेंगे कि बीजेपी अरविंद के सामने किरण को उतारने से घबरा गई या बीजेपी को अब भी विश्वास नहीं है कि किरण से नैय्या पार होगी। इसलिए चार राज्यों में बिना मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बताए चुनाव में उतरने वाली बीजेपी ने दिल्ली के लिए रणनीति बदल दी। पहले मुख्यमंत्री के सवाल पर चुप रही, लेकिन अब बता ही दिया कि किरण ही भाजपा की किरण हैं। वह अब बेदी नहीं दीदी हैं। शायद हमारा मतदाता किसी महिला नेतृत्व में दीदी और मां ही देखता होगा।

तभी 65 साल की किरण बेदी को किरण दीदी बुलाने के लिए कहा गया है। किरण के सामने पंद्रह साल छोटे अरविंद केजरीवाल होंगे। कहीं आप वाले दीदी के मुक़ाबले उन्हें अरविंद भैया न कहने लगें। जो भी हो दिल्ली का चुनाव भैय्या दीदी का खेल नहीं रहा। यह चुनाव जीत के लिए जोखिम में डालने का चुनाव है। अमित शाह ने तो कह ही दिया है कि दिल्ली एक प्रयोग है। यहां हम जीत के लिए अपने सिस्टम को आज़माएंगे और अगर जीतें तो 25 साल तक बीजेपी जीतती रहेगी।

अफ़सोस बस इतना है कि गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले इस राज्य के चुनाव में नई दिल्ली की सीट का रोमांच चला गया। इसके बाद भी दिल्ली के चुनाव में अब भी रोमांच बाकी है। बस मीडिया के कैमरों को नई दिल्ली और कृष्णानगर में दौड़ लगानी होगी।

अरे हां क्या इस सवाल में दिलचस्पी है कि कहीं पिछली बार की तरह अरविंद केजरीवाल भी कृष्णानगर न चलें जाए किरण बेदी को टक्कर देने! क्या पता बीजेपी का ये भी दांव हो। अरविंद केजरीवाल इतनी बड़ी गलती तो नहीं करेंगे जैसे बीजेपी ने किरण बेदी को नई दिल्ली न भेजकर कोई ग़लती नहीं की है।

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