अगले 48 घंटे में मुंबई और महाराष्ट्र में भारी से अति वृष्टि होने वाली है. मंगलवार को मुंबई, पुणे सहित महाराष्ट्र भर में दीवार गिरने से 31 लोगों की मौत हो गई. पुणे में पिछले हफ्ते दीवार गिरने से 17 लोगों की मौत हो गई थी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बारिश के कारण महाराष्ट्र भर में दीवार गिरने से 46 लोगों की मौत हुई है. मुंबई में ही बारिश के कारण अलग-अलग दुर्घटनाओं में 25 से अधिक लोगों की मौत हो गई है. ये सभी मज़दूर हैं इसलिए मात्र संख्या हैं. मुंबई में 30 जून और 1 जुलाई को जो बारिश हुई है वो दस साल में सबसे अधिक है. जुलाई भर में जितनी बारिश होती है उतनी बारिश मुंबई में सिर्फ दो दिनों के भीतर हो गई है. 2 जुलाई को भी खूब बारिश हुई जिसके कारण कई इलाकों में पानी भर गया. महानगर में सार्वजिनक छुट्टी की घोषणा कर दी गई है.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि पिछले 45 साल में सिर्फ दो मौकों पर इतनी बारिश हुई है. इसके पहले 26 जुलाई 2005 को बारिश हुई थी. उस वक्त 944 मिलिमीटर बारिश हुई थी, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1100 लोगों की मौत हो गई थी. इस बार की बारिश भी कम नहीं है लेकिन लगता है कि तैयारी कुछ बेहतर है इसलिए जानमाल का नुकसान 2005 की तरह नहीं है. पिछले 24 घंटे में जितनी बारिश हुई है वह 10 साल में सबसे अधिक है. हवाई उड़ानें बुरी तरह प्रभावित हैं. बारिश से पहले तैयारी को लेकर 3 जून को हिन्दुस्तान टाइम्स ने एक रिपोर्ट की थी. एम एस एहसानप्रिया ने लिखा है कि 2017 और 2018 में मुंबई में 273 बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की पहचान की गई थी. मानूसन से पहले इनमें से 178 क्षेत्रों में तैयारी पूरी कर ली गई है. इस रिपोर्ट में संवाददाता ने बीएमसी के स्टार्म वॉटर डिपार्टमेंट के इंजीनियर से बात की है. इंजीनियर ने बताया है कि बरसाती नाले की क्षमता एक घंटे में 50 मिलिमीटर पानी ही निकालने की क्षमता है. अगर बारिश 100 मिलीमीटर या 150 मिलीमीटर हो गई तो फिर बाढ़ को रोका नहीं जा सकता है. मुंबई में पिछले तीन दिनों में बारिश 150 मिलिमीटर से अधिक हुई है. 2 जुलाई की सुबह तक 375 मिलीमीटर बारिश हुई है. उसके पहले दो दिनों में 550 मिलीमीटर बारिश हुई है. जुलाई भर की बारिश दो दिनो में हो गई है. इतनी बारिश होगी तो ज़ाहिर है मुंबई के बरसाती नाले पानी को नहीं निकाल पाएंगे. बीएमसी की साइट से पता चलता है कि इस बार समदंर में 17000 मिलियन लीटर बरसात का पानी डाला है. ज़ाहिर है सिस्टम कुछ काम भी कर रहा होगा.
हमारे सहयोगी सोहित मिश्र ने बताया कि 24 घंटों में 53 जगहों पर जलजमाव हुआ है. ये निचले इलाके हैं. यानी सायन, माटूंगा, चेम्बूर, अंधेरी, खार, कुर्ला, घाटकोपर, सांताक्रूज. मुंबई के पर्यावरण को लेकर आजीवन लोगों और सिस्टम को जागरूक करने वाले Darryl D'Monte अब दुनिया में नहीं हैं. लेकिन उन्हीं का एक पुराना लेख है स्क्रोल डॉट इन. उन्होंने लिखा है कि जून 1985 में मुंबई में महीने भर में 1000 मिलीमीटर से अधिक बारिश हो गई थी. उसके बाद बीएमसी ने ब्रिटिश कंस्लटेंट वाट्सन हॉक्स्ले को नियुक्त किया कि वे शहर की योजना बना कर दें कि एक घंटे में 50 मिलिमीटर बारिश हो जाए तो कैसे निपटा जाए. आठ साल लगाकर रिपोर्ट तैयार की गई, लेकिन बीएमसी ने लागू करने में 12 साल और लगा दिए. करोड़ों का बजट है. उनका हिसाब नहीं मिलता. इस वक्त बीएमसी का दावा है कि 160 इलाकों को जलजमाव से मुक्त करा दिया गया है. 1985 से मुंबई की बरसात लगातार चेतावनी दे रही है. महीने भर की बारिश एक दिन या दो दिन में होने लगी है.
26 जुलाई 2005 की बारिश को न्यूज़ चैनलों पर कई दिनों तक घंटों कवर किया गया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 700 लोग मारे गए थे. इसके बाद भी हम 2005 की बारिश की खौफनाक यादों से दूर जा चुके हैं. सामान्य हो चुके हैं. 2005 की जैसी बारिश तो इस साल नहीं हुई है लेकिन इस बार की बारिश बता रही है कि आप और हम मुंबई की बारिश के बारे में अपनी सोच बदल लें. इस साल 20 दिन में जो औसत बारिश होती है वो सिर्फ दो दिन के भीतर हो गई. 10 जून 2015 को भी मुंबई में भारी बारिश हुई थी. 2005 के बाद सबसे अधिक बारिश 10 जून 2015 को हुई थी. वो रिकॉर्ड इस बार टूट गया. 4 दिनों के भीतर मुंबई में 795 मिलीमीटर बारिश हुई है. 30 अगस्त 2017 के दिन मुंबई में 7 घंटे में 200 मिलीमीटर बारिश हुई थी. उस साल वर्ली इलाके में 12 घंटे के भीतर 330 मिलीमीटर बारिश हो गई थी. 2018 में भी ऐसी बारिश हुई थी.
ये रिकॉर्ड बता रहे हैं कि अब हम मुंबई की बारिश के अपने पुराने अनुभवों पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. हम जिन रास्तों को सुरक्षित समझते हैं उन्हीं रास्तों पर डुबा देना वाला पानी जमा हो सकता है. शायद यही वजह होगी कि एसयूवी गाड़ी में दो लोग पानी जमा होने के बाद भी आगे बढ़ते रहे और अंत में गाड़ी में ही डूब गए, उनकी मौत हो गई. दो लोगों की यह मौत बता रही है कि बारिश को लेकर मुंबई के सदियों और दशकों के अनुभवों का भरोसा अब छोड़ देना चाहिए.
पुराना अनुभव अब काम नहीं आएंगे. मुंबई की बारिश कभी भी धोखा दे सकती है. मुंबई में समंदर के अलावा नदियों और दलदली ज़मीन का अपना एक सिस्टम बना हुआ था. हम धीरे-धीरे उन पर कब्ज़ा करते चले गए. ये प्राकृतिक सिस्टम महानगर की सुरक्षा के उपकरण थे. अपने आस पास देखिए. प्राकृतिक आपदाओं का स्केल बड़ा होता जा रहा है. बीएमसी की तैयारी तबाही के असर को कुछ कम कर सकती है मगर तबाही नहीं टाल सकेगी. जिन लोगों की बनाई नीतियों के ये परिणाम हैं उन पर बीएमसी का ज़ोर नहीं चलेगा. अब देखिएगा. यहां से भाषा बदलेगी. उस भाषा को ग़ौर से नोट कीजिए. जब आप पूछेंगे कि इस तबाही का ज़िम्मेदार कौन है, कैसे इस तबाही से बचें तो जवाब आएगा हम सबको मिलकर सामूहिक रूप से जिम्मेदारी उठानी होगी. जब भी लापरवाही का स्तर हद से ज्यादा हो जाता है, लापरवाही सामूहिक बताई जाने लगती है और उन्हें बचा लिया जाता है जो कुर्सी पर बैठते हैं. बजट पास करते हैं, योजनाएं बनाते हैं. आम लोग ज़िम्मेदार हो जाते हैं.
क्या आम लोग रियल इस्टेट के साम्राज्य से लड़ सकते हैं, उनकी किससे सांठगांठ हैं उन तक कभी पहुंच नहीं पाएंगे. जिन रास्तों को भर कर इमारतें बनी हैं, उन्हीं के बीच चलते हुए आम लोग बाढ़ में डूब रहे हैं. दशकों तक मुंबई में रियल इस्टेट वालों को पूरी छूट मिली. ये इतने ताकतवर हो गए नेता भी यही बने और राजनीति भी इन्हीं के दम पर चलने लगी. मुंबई की हर प्राकृतिक ज़मीन भर दी गई है. भोइसर, ओशिवारा, दहीसर और मिठी नदी के रास्ते को भर कर मोहल्ले बनाने के पीछे जो ताकतें रहीं, उन लोगों के चेहरे अब हमारे सामने नहीं हैं. वो अपने फैसलों से करोड़ों बनाकर पीढ़ियों का इंतज़ाम कर गए लेकिन शहर ने जो अपना इंतज़ाम सदियों से किया था, उसे बर्बाद कर गए. अब इन्हीं लोगों को बचाने के लिए मीडिया की ज़ुबान में सामूहिक ज़िम्मेदारी का बोध प्रवेश करेगा. हर कोई कहेगा कि सबको मिलकर कुछ करना होगा. जब बर्बाद किया जा रहा था, तब कुछ लोग मिलकर करोड़ों बना रहे थे, जब बर्बाद हो गया तो बचाने की ज़िम्मेदारी का लेक्चर उन्हें भी दिया जाएगा जो विक्टम हैं, जो शिकार हैं. आबादी की समस्या को दोष दिया जाएगा. आज मीठी नदी के हिस्से पर जो रनवे है, उस पर कौन उड़ता है. लेकिन मीठी नदी के भर जाने से बाढ़ आती है उसमें कौन मरता है. आपको यकीन न हो तो संजय राउत जी का बयान सुन लें.
जिन चंद लोगों की नीतियों की वजह से नदियां सूख गईं वही अब सारे भारत को पाठ पढ़ाएंगे कि मिलकर हल निकालना होगा. जागरूकता लानी होगी. जब नदियों के रेत लूटे जा रहे थे, उनकी पानी में औद्योगिक कचरे छोड़े जा रहे थे तब आम लोगों से इन्हें रोकने की अपील नहीं की गई. तब तो कोई जागरूकता की बात नहीं कर रहा था. प्राकृतिक आपदाओं में सबसे ज्यादा ग़रीब मरते हैं. लेकिन अमीरों तक भी जलवायु परिवर्तन का कहर पहुंचने लगा है. 2015 में चेन्नई शहर में बाढ़ आई थी. शहर में पानी इतना भर गया था कि पहली मज़िल तक की इमारतें डूब गईं. 343 लोग मारे गए थे. उस चेन्नई में सूखा है. वहां इस बार पानी नहीं है. आज सुबह अमिताभ घोष की किताब पढ़ रहा था. The great derangement संयोग से मुंबई वाले चैप्टर पर पहुंच गया. अमिताभ घोष बहुत बड़े लेखक हैं. उनकी किताब अनुदित होकर अफीम सागर जो राजकमल से छपी है उसे पढ़ लीजिए जीवन तर हो जाएगा. द ग्रेट डिरेंजमेंट पेंगिवन ने छापी है और 399 रुपये की किताब है. इसे अवश्य पढ़ें. बहरहाल दि ग्रेट डिरेंजमेंट में मुंबई पर जो चैप्टर आता है उसके बारे में ज़िक्र करना चाहता हूं. अपने हिन्दी के दर्शकों के लिए.
अमिताभ घोष इस किताब में जलवायु परिवर्तन को लेकर कई सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि हम अभी भी मान कर चल रहे हैं कि कुछ नहीं होगा, यहां नहीं होगा, वहां नहीं होगा. इसका आधार हमारे दशकों या सदियों के अनुभव हैं इसलिए जब कुछ अचानक बड़ा हो जाता है, प्रलयकारी हो जाता है तो हम कहते हैं कि समझ नहीं आया कैसे हो गया. मगर आप अब दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही इन तबाहियों को देखिए. भारत में ही देखिए आपको पता चलेगा कि आप भले न समझने के लिए तैयार हुए हों, प्रकृति आपके पीछे पड़ गई है. अमिताभ घोष मुंबई को लेकर बाढ़ और साइक्लोन की आशंका के बारे में लिख रहे हैं. आप सोचेंगे कि मुंबई में साइक्लोन कहां से आ गया. दरअसल इसी सवाल को लेकर अमिताभ घोष ने एक अमरीकी प्रोफेसर को लिखा था. पता चलता है कि औपनिवेशिक दौर में यानी जब पुर्तगाली और अंग्रेज़ों का राज़ रहा तब मुंबई में कई बार साइक्लोन आया. आज के मुंबईकरों को भले न लगे कि यहां न्यूयार्क की तरह हरिकेन सैंडी जैसा चक्रवात आ सकता है मगर मुंबई में चक्रवात आते रहे हैं. 1783 में ऐसा जबरदस्त चक्रवात आया था कि 400 लोग मर गए थे. 19वीं सदी और बीसवी सदीं के शुरू में चक्रवाती तूफान के रिकार्ड मिलते हैं. 2009 में भी मुंबई में चक्रवात आया था मगर तब हवा की रफ्तार 85 किलोमीटर प्रति घंटे ही थी जो कि काफी धीमी थी. न्यूयार्क के हैरिकेन सैंडी की रफ्तार 185 किलोमीटर प्रति घंटे थी. उस वक्त न्यूयार्क के मेयर ब्लूमबर्ग ने शानदार काम किया था तब भी 285 लोग मारे गए थे. यही नहीं दि ग्रेट डिरेंजमेंट पढ़ते हुए जानकारी मिली कि इन दिनों अरब सागर के तटों पर चक्रवाती तूफान की संख्या बढ़ने लगी है जो आने वाले समय में और बढ़ेगी. उसी तरह बंगाल की खाड़ी में चक्रवाती तूफानों की संख्या कम होने लगेगी. अमिताभ ने लिखा है कि अगर मुंबई में चक्रवात आया तो फिर उसका गेटवे ऑफ इंडिया वाला सिरा तबाह हो जाएगा जहां अमीर आबादी रहती है. जिसे न मैंग्रोव वन के काटे जाने से फर्क पड़ता है और न मीठी नदी को मिटा दिए जाने से. मुंबई की ऊंची इमारतों में जो शीशे लगे हैं वो उखड़ कर जानलेवा बन जाएंगे. कुल मिलाकर मुंबई न तो 1000 मिलिमीटर से अधिक बारिश के लिए तैयार नज़र आती है न ही चक्रवात के लिए. क्योंकि मुंबई में पहले जब भी चक्रवात आया है तब उसकी आबादी दस लाख से कम थी. आज दो करोड़ से अधिक थी. तबाही का अंदाज़ा लगा सकते हैं अगर नहीं तो बेहतर है कि आप व्हाट्सएप करते रहें, गुडमार्निंग मेसेज में ही ध्यान लगाइये. कुछ नहीं होगा. आपका जो होना था वो अब हो चुका है.
चेन्नई की बाढ़ के चार साल हुए हैं. मदास हाईकोर्ट ने कहा था कि अदयार और कूअम नदी के किनारे से अतिक्रमण हटाया जाए. यह भी चेक कर सकते हैं. हम कुछ करने की बात कर न करने के मामले में ग़ज़ब के लोग हैं. अगर मुंबई के कवरेज को देखते हुए किसी को यह लग रहा है कि उसके शहर में नहीं होगा तो उसे केरल की बाढ़ याद कर लेनी चाहिए.
अगस्त 2018 में गुरुग्राम की वो बाढ़ याद कर लेनी चाहिए. 29 अगस्त को पांच घंटे के भीतर 121 मिलीमीटर बारिश हो गई थी. आठ साल तक ऐसी बारिश नहीं हुई मगर उस दिन हो गई. घंटों लोग जाम में फंसे रहे. हीरो होंडा चौक के पास 20 फीट गहरा पानी जमा हो गया था. गुरुग्राम के लोग मिलेनियम मिलेनियम ट्विट करते रहे लेकिन जलवायु परिवर्तन उन्हें चेतावनी दे कर जा चुका था. दावे के साथ नहीं कह सकते कि अब जब ऐसी बारिश होगी तो गुरुग्राम में वैसा सब कुछ नहीं होगा.
जलवायु परिवर्तन के सवाल पर आ जाइए. इस पर सैंकड़ों रिसर्च हैं. सारे एक्सपर्ट आकर चेतावनी दे रहे हैं जो हो भी रहा है. इसलिए जागरूकता की कमी नहीं है. अगर आदित्य ठाकरे जलवायु परिवर्तन की बात कर रहे हैं तो सुनिए लेकिन उनसे पूछिए भी जलवायु परिवर्तन का ख्याल इसी साल आया है. पहले क्यों नहीं आया. अब जब आ ही गया तो वो क्या करने जा रहे हैं. क्या वे 54000 मैंग्रोव के पेड़ों को बुलेट ट्रेन के लिए कटने से रोक लेंगे. कुछ समय को छोड़ दें तो 1985 से लेकर आज तक शिवसेना ही बीएमसी में राज करती रही है. इसलिए बीएणसी उसकी जवाबदेही तो बनती है.
मुंबई सिर्फ बचाने आती है. तबाही के समय शहर का प्रदर्शन शानदार होता है. एक एक कर्मचारी काम पर लग जाते हैं. बचाव कार्य में लगे हीरो को पहचानिए मगर उस विलेन को भी खोजिए जो इन सबके लिए दशकों से ज़िम्मेदार रहा है. इस बीच शिव सेना के सांसद संजय राउत के एक ट्वीट पर नज़र पड़ गई. उनकी कविता देखकर मैं भावुक हो गया. ऐसी कविताएं आपको ट्रकों पर, लाइन होटलों की दीवारों पर,बस अड्डे में खूब पढ़ने को मिलती हैं. शेयरचैट और व्हाट्स एप और टिक टॉक में ऐसी कविताओं और शायरी की भरमार है. जैसा पानी का लेवल है वैसा ही शायरी का लेवल है. पहले हम जलवायु परिवर्तन को ठीक कर लें बाद में शायरी की समस्या देख लेंगे. तो संजय राउत जी की कविता है...
कुछ तो चाहत रही होगी
इन बारिश की बूंदों की भी
वरना कौन गिरता है
इस ज़मीन पर
आसमान तक पहुंचने के बाद
जब प्रधानमंत्री ने ग़ालिब का शेर कोट किया तब आलोचकों ने कहा कि ऐसा ग़ालिब ने तो नहीं कहा, ज़रूर व्हाट्सएप जगत से आया होगा. तो उसी से प्रभावित होकर हमने इंटरनेट में सर्च किया संजय राउत जी की शायरी का पता करने के लिए. हालांकि उन्होंने अपने ट्वीट में दावा नहीं किया है कि उन्होंने लिखी है. फिर भी हमने चेक किया कि ये कविता आई कहां से. सैड शायरी डॉट काम के लव शायरी सेक्शन में इसी तरह की एक कविता मिली है. हार्मनी शायरी डाट काम के सेक्शन बारिश शायरी में यह कविता मिली है. संजय राउत ने पहले से इस कविता में सिर्फ बारिश जोड़ कर ट्वीट कर दिया है. क्या हमारे सांसद मुंबई से ज्यादा हार्मनी शायरी और लव शायरी डाट कॉम पर ज्यादा समय बिता रहे हैं. वेरी सैड एंड वेरी फनी. यह कविता आपको इंटरनेट पर खूब मिलेगी. हमें अफसोस है कि जिस तरह से हम मुंबई की तबाही के लिए ज़िम्मेदार को खोज नहीं पाए, उसी तरह प्रेमियों के बीच पॉपुलर इस कविता के रचयिता को भी खोज नहीं सके.
कुछ तो चाहत होगी
इन बूंदों की भी
वरना कौन छूता है
इस ज़मीं को...
उस आसमान से टूट कर
तभी कहा कि कविता से मैं भावुक हो जाता हूं. कहां कहां भटक गया. मैं संजय राउत जी को हबीब जालिब की किताब देना चाहता हूं. ग़ालिब की भी दूंगा ताकि कोई ग़ालिब और जालिब में कंफ्यूज़ न करें. इसलिए आप बीएमसी की जवाबदेही और जलवायु परिवर्तन को लेकर कंफ्यूज़ न हो. जलवायु परिवर्तन के कारण सिर्फ मुंबई में नहीं हैं. दिल्ली की राजनीति में भी हैं. उन नीतियों में भी है जिनकी हम वाहवाही करते रहते हैं.
पिछले 11 महीने में भारत में 5 बड़ी प्राकृतिक आपदाएं आईं हैं. सबका एक ही कारण है जलवायु परिवर्तन. इसने लाखों लोगों को प्रभावित किया है. केरल की बाढ़. चेन्नई का सूखा, ओडिशा का साइक्लोन फोनी, भारत भर में भयंकर गरमी. मुंबई की बारिश. हम भूल चुके हैं कि मई और जून में तापमान आसमान छू रहा था. चुरू में 50 डिग्री सेल्सियम तापमान चला गया तो दिल्ली में अधिकतम तापमान के रिकॉर्ड टूटने लगे. लू के कारण बिहार में ही कितने लोगों की मौत हो गई. इसकी आधाकारिक संख्या तो नहीं है मगर मीडिया ने लू से मरने वालों की संख्या कहीं 185 लिखी है तो कहीं 150. चेन्नई में 198 दिनों तक कोई बारिश ही नहीं हुई. यह भी रिकॉर्ड है. दस साल में सबसे अधिक बारिश मुंबई में होती है यह भी रिकॉर्ड है. अगर आपका काम रिकार्ड से चलता है तो लिख लें, रट लें मगर प्राकृतिक आपदा आपकी तैयारियों का इम्तहान लेने आ रही है और आपकी लापरवाही की सज़ा देने भी.
जलवायु परिवर्तन के सवाल का जवाब बीएमसी या एमसीडी के पास नहीं है, न होगा. उनके पास है जिन्हें हम राजनीतिक जवाबदेही सौंपते हैं. इस वक्त हमारी राजनीति के पास जो अर्थ नीति है उससे तीस चालीस सालों के भीतर ही हमारी सैंकड़ों नदियां गायब हो गईं. नाले में बदल गईं. वहां पर बिल्डिंग बन गई. रनवे बन गए. राजनीति आपसे कहेगी कि इस समस्या का हल सबको मिलकर करना है. अब तक आप राजनीतिक विकल्प का मतलब दल या नेता से समझ रहे थे. इसकी जगह आर्थिक विकल्प की बात शुरू कर दीजिए. जो नीतियां चल रही हैं जिनमें हम अपने सपने देखते हैं उनमें सिर्फ तबाही के नए नए रिकॉर्ड हैं. मुंबई से हमारे सहयोगियों ने जो रिपोर्ट भेजी है वो आपके सामने है. याद रखिए लव शायरी से जलवायु परिवर्तन की समस्या का हल नहीं होगा.