सब कुछ एक रूटीन-सा हो गया है। एक के बाद एक आतंकवादी घटनाएं होती जा रही हैं। टीवी चैनलों पर घटनास्थल की तस्वीरें अब एक-सी लगने लगी हैं। भागते एम्बुलेंस, फ्लैशलाइट वाली बुलेट पर सवार पुलिसकर्मी और इधर-उधर भागते लोग। उनकी चीख़ें, उनका क्रंदन। मरने वालों के नाम, उनके फोटो, उनकी संख्या, अंतिम स्टेटस अपडेट। घटना बदल जाती है, मगर मंज़र नहीं बदलता है।
फ्रांस के नीस में इस बार आतंकवादी बम लेकर नहीं आया। ट्रक लेकर आया और चौरासी लोगों को कुचल गया। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने कहा है कि पूरा फ्रांस इस्लामी आतंक के साये में हैं। फ्रांस में पिछले नवंबर से आपातकाल है, जब 130 लोगों की हत्या हुई थी। ऐसी घटनाओं की क्रूरता और बारंबारता बढ़ती ही जा रही है। इस्लामी स्टेट के आतंकवादियों की गतिविधियों पर कोई लगाम नहीं दिखती है।
आतंकवादी घटनाओं की प्रतिक्रिया का भी एक निश्चित पैटर्न हो गया है। घटना होते हुए दुनिया भर के दो-चार राष्ट्र प्रमुख ट्वीट कर निंदा करने लगते हैं, आतंक से लड़ने का संकल्प दोहराते हैं, कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात कहते हैं। वे यह नहीं बताते कि पिछली घटना के वक्त भी कंधे से कंधा मिलाकर आतंक से लड़ने का वादा किया था, उसका क्या नतीजा निकला...? वे आतंक के ख़िलाफ़ कहां जाकर लड़ते हैं...? लड़ते भी हैं या लड़ने के नाम पर सीसीटीवी लगाकर बैठ जाते हैं। पूरी दुनिया असुरक्षित होती जा रही है। राष्ट्रप्रमुखों की चिन्ताएं नकली साबित होती जा रही हैं। वे काम का हिसाब नहीं देते, सिर्फ ट्वीट कर देते हैं।
ब्रिटेन में जब चिल्कॉट की रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की भूमिका को संदिग्ध पाया गया तो क्या ट्विटर वाले इन राष्ट्र प्रमुखों ने कोई ट्वीट किया था...? जब चिल्कॉट और लेबर पार्टी के नेता इराक़ की जनता से और ब्रिटिश सेना से माफी मांग रहे थे, तब ये नेता कहां थे...? क्या ये ट्वीट कर माफी मांग रहे थे...? इन नेताओं का एक पॉवर क्लब सा बन गया है, जो सद्भावना-सांत्वना के लिए कम, अपने अस्तित्व के लिए भाईचारा-बहनापा ज़्यादा लगता है। वरना आप पता कीजिए, किस राष्ट्र प्रमुख ने चिल्काट रिपोर्ट पर चिन्तन किया है। जिनकी नीतियां आतंक के जड़ में रही हैं, वही सांत्वना भी व्यक्त कर रहे हैं। एक झूठ के सहारे इराक में लाखों लोगों को मारकर बदले में दुनिया पर आतंकवाद किसने थोपा है।
दुनिया की अवाम को हर दूसरे महीने काला सूट पहनकर फोटो खिंचाने वाले इन राष्ट्र प्रमुखों से पूछना चाहिए कि इस्लामिक स्टेट किसकी वजह से पैदा हुआ है...? इसे पैदा करने में किसने मदद की है...? दुनिया की कौन-कौन-सी कंपनियां हैं, जो इस्लामिक स्टेट के साथ कारोबार कर रही हैं...? इस्लामिक स्टेट के हथियार ख़त्म क्यों नहीं हो रहे हैं...? उन्हें हथियार कौन दे रहा है...? क्या इन सब बातों की ब्लैक सूट वाले नेताओं को बिल्कुल ही जानकारी नहीं है...? क्या वे आतंक से लड़ने वाले अपने ट्वीट में इसका कोई ज़िक्र कर रहे हैं...? उनकी लड़ाई का क्या नतीजा निकला कि इस्लामी स्टेट का आतंक सबके पड़ोस तक आ गया है।
राष्ट्रपति ओलांद कहते हैं, सीरिया जाकर लड़ेंगे, पर वह तो उनके फ्रांस में घुसकर हमला कर रहा है। वहां तो आपातकाल लगा है, फिर भी ओलांद आतंकी हमले नहीं रोक पा रहे हैं तो सीरिया जाकर क्या लड़ेंगे...? आसमान में जहाज़ उड़ाने और टीवी पर उसका वीडियो दिखाने से लड़ाई नहीं हो जाती है। सीरिया से पहले भी आतंक था, उसका दूसरा नाम था। वह किसकी वजह से था।
हर घटना दुनिया को दहशत और मातम में धकेल देती है। आम लोग मारे जा रहे हैं। इन्हीं ब्लैक सूट वाले नेताओं के क्लब में पाकिस्तान भी है, जहां आतंक को सैनिक समर्थन मिल रहा है। इन ब्लैक सूट वाले नेताओं ने वहीं कौन-सा आतंक को जड़ से मिटा दिया...? पाकिस्तान के लोग भी आतंकवाद के हमले में मारे जा रहे हैं, उनके लिए कौन लड़ रहा है...? लड़ भी रहा है कि केवल ट्विटरबाज़ी हो रही है। आज दुनिया में भांति-भांति के आतंक हैं, मगर ब्लैक सूट वाले नेताओं की सांत्वना, सद्भावना और संकल्प के बोल एक ही हैं। कई बार लगता है कि नेता ने पिछला ट्वीट ही ट्वीट कर दिया है।
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This Article is From Jul 15, 2016
आतंक के खिलाफ ट्वीट करने वाले राष्ट्रप्रमुख आतंक से लड़ भी रहे हैं या...?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 15, 2016 15:15 pm IST
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Published On जुलाई 15, 2016 13:23 pm IST
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Last Updated On जुलाई 15, 2016 15:15 pm IST
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