रवीश कुमार की नजर से : नीलाम सूट के बहाने दाग़ से मुक्ति की कामना

नई दिल्ली:

जिस समय प्रधानमंत्री बेंगलुरु में बेहद सादे लिबास में सेना के अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे ठीक उसी समय के आस-पास उनके गृह राज्य सूरत में उस सूट की नीलामी शुरू हो गई, जिसे लेकर इन दिनों खूब राजनीतिक विवाद हुए।
लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार से लेकर शपथ ग्रहण तक प्रधानमंत्री का हर पहनावा फैशन और स्टाइल स्टेटमेंट के लिहाज़ देखा गया। उनके प्रभाव में आकर लोगों ने भी अपनाया। कार्यकर्ता भी अपने प्रधानमंत्री की तरह बन-ठन कर चलने लगे। अच्छा और अच्छे से पहनना राजनीतिक कार्यप्रणाली से भी जुड़ गया। प्रदेश बीजेपी दफ्तर के बाहर मोदी के रंगीन जैकेटों की नकल बेचने वाले उस मुस्लिम दुकानदार की याद आ गई, जिन्होंने कहा था कि टीवी में मोदी जिस रंग के जैकेट पहने दिखते हैं, उसके अगले ही दिन कार्यकर्ता मांग करने लगते हैं कि हमें उसी रंग की सदरी चाहिए।
 
लेकिन राजनीति के अलावा अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मीडिया में खास वजह से विवादित इस सूट की नकल करने का प्रयास किसी ने नहीं किया। हालांकि कमीज़ की बांह पर भी सिग्नेचर का होना फैशन में कब से है। अपना और किसी का भी नाम हाथ से लेकर कान तक पर गोदवाने का चलन भी है, लेकिन सूट की हर धारी अपने ही नाम की बनी हो ये लोगों को पसंद नहीं आया, इसे समझने की ज़रूरत है। क्या इसकी वजह सूट की विवादित कीमत थी, जिससे यह सवाल उठा कि इतना महंगा सूट पहन कर प्रधानमंत्री क्या संदेश देना चाहते हैं। क्या लोगों को इस सूट में वह नरेंद्र मोदी दिखे जिनके बारे में वे नहीं जानते थे। क्या इस सूट ने प्रधानमंत्री को उस जनता के बीच अनजाना बना दिया, जिनके दिलों पर वो राज करते थे।

दरअसल, सूट की विवादित कीमत के अलावा उनके नाम की बनी धारी ने भी काफी नुकसान पहुंचाया। प्रधानमंत्री को उन पहलुओं से जोड़ दिया, जिसकी चर्चा तो होती थी, मगर एक हद से ज्यादा कोई ध्यान नहीं देता था। कई लोगों को उस सूट में आत्ममुग्ध व्यक्तिवादी मोदी नज़र आने लगे। कुछ ने मिस्र के तानाशाह होस्नी मुबारक के सूट से तुलना कर दी। होस्नी मुबारक भी इसी तरह की अपने नाम की धारी से लैस सूट पहनते थे। मोदी के फैशन डिज़ाइनरों ने इस एक सूट से अपने नेता को उन लोगों से कुछ समय के लिए बहुत दूर कर दिया, जो उन्हें दिल से चाहती रही है। दिल्ली के चुनाव कवरेज के दौरान सामान्य जन को भी उस सूट को लेकर बात करते सुना था। जिन लोगों ने प्रधानमंत्री को हर रंग में स्वीकार किया उन्हें यह नीले रंग का सूट जमा नहीं।

लेकिन अब वह सूट सूरत में नीलाम हो रहा है। इस सूट के साथ प्रधानमंत्री के तौर पर मिले उपहारों की भी नीलामी होगी। जो सूची मीडिया से साझा की गई है, उसमें 237 कपड़े हैं, मगर मीडिया में यह नीलामी सूट के कारण ही सुर्खियों में आई है। नीलामी में कपड़ों के अलावा अन्य कई सामग्रियां हैं, जो अगले तीन दिनों तक नीलाम होंगी। बताया गया है कि इससे जो पैसा आएगा वह गंगा की सफाई में लगा दिया जाएगा। तो क्या अब प्रधानमंत्री इस सूट से लगे दाग से मुक्त हो जाएंगे। क्या विवाद अब थम जाएगा।

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प्रधानमंत्री का बचाव करने वाले कहेंगे कि गंगा के लिए इतना महंगा सूट पहना तो विरोधी नीलामी की कीमत जोड़कर बताएंगे कि देखिये सूट कितना महंगा है। यह विवाद चलता रहेगा। लोग शायद यकीन भी न करें कि यह सूट गंगा के लिए पहना गया मगर सबक सीखने में तत्परता के मामले में प्रधानमंत्री की दाद देनी होगी। उन्होंने इस सूट से छुटकारा पाने में हफ्ता भर नहीं लगाया। दिल्ली चुनाव के नतीजे आने के बाद उनके कपड़ों के रंग का टोन उस तरह से तेज़ नहीं है, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। संवाद और संचार में माहिर प्रधानमंत्री से ज्यादा बेहतर कौन समझ सकता है। हाल के दिनों के पहनावे से वे बता रहे हैं कि उन्होंने सबक सीख लिया है। मनमोहन सिंह सरकार के आखिरी दौर में जब हर तरफ निराशा का माहौल था, मोदी अपने रंगीन और कलफ़दार कुर्तों से यह संदेश देने में सफल रहे कि वे चुनौती उठाने के लिए तैयार हैं। वे आशा का संचार कर सकते हैं। लोगों ने उन रंगों को मज़बूत नेतृत्व के स्वाभाविक गुणों से जोड़कर देख लिया और सरकार बनने के बाद भी वही सिलसिला जारी रहा।
 
लेकिन क्या इन रंगों के प्रदर्शन को लेकर कुछ ज्यादा हो गया था जिससे लोगों ने चमकदार प्रधानमंत्री के नेतृत्व के सामने दिल्ली में एक ऐसे व्यक्ति को अपना नेता चुन लिया, जिसके फैशन की नकल कर लोग अपने बच्चे के जन्मदिन में भी न जाएं। अरविंद केजरीवाल ने यह बता दिया कि आम जन का लिबास ऐसा ही है। भले फैशन न हो मगर वो इतना ही खरीद सकता है और ऐसा ही पहनना पसंद करता है, जिनके घरों में बिजली नहीं आती और हिटर नहीं चलता है, वहां लोग अरविंद की तरह ही मफ़लर से कानों को कस देते हैं ताकि गरम रहे। मंकी कैप का कितना भी कोई मज़ाक उड़ा ले मगर पहनने वाले पहनते ही हैं। आप कोलकाता से लेकर बिहार के गांवों में जाकर देख लीजिए।
 
दिल्ली चुनाव के नतीजों में एक फैशन स्टेटमेंट भी है। जनता हमेशा बेहतरीन नाप और डिज़ाइन वाले कपड़ों में ही नेता को नहीं परखती है। उसने एक बेहद साधारण से दिखने वाले स्वेटर, मफलर और पतलून के सामने डिज़ाइनर मगर कथित रूप से लाखों के सूट को परास्त कर दिया। नीलामी में यह सूट हो सकता है करोड़ों में बिक जाए या यह भी हो सकता है कि इसकी बहुत कम बोली लगे मगर जो भी यह सूट लेगा वो गर्व से नमो के इस सूट को नहीं दिखा पाएगा, क्योंकि इस सूट में कोई फैशन स्टेटमेंट नहीं बचा है। इस सूट को नमो ने भी अपना बनाकर गले नहीं लगाया पर समझदारी दिखाते हुए झटक दिया है। यह एक ऐसा कपड़ा है जिसे प्रधानमंत्री भी अपनी अच्छी यादों का हिस्सा नहीं बनायेंगे। हो सकता है कि खरीदने वाला भी इस सूट को अपने घर के किसी बक्से के कोने में चुपचाप दफन कर दे।