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This Article is From Feb 18, 2015

रवीश कुमार : मोदी के सूट की नीलामी पर राजनीति

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    फ़रवरी 18, 2015 21:19 pm IST
    • Published On फ़रवरी 18, 2015 21:08 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 18, 2015 21:19 pm IST

नमस्कार, मैं रवीश कुमार... काश सूट के बहाने सार्वजनिक जीवन में मौजूद हमारे नेताओं के पहनावे और उनकी कीमत पर खुलकर चर्चा हो जाती। तब आपको प्रधानमंत्री के सूट के बहाने पता चल जाता कि दूसरे नेताओं के सूट और शॉल कितने महंगे हैं। अच्छी फैब्रिक का जवाहर जैकेट आठ-दस हजार में आ जाता है, लिनेन का कुर्ता भी इतने का बन जाता है, मगर सूट लेंथ तीन से पांच छह लाख का होता है। शाल की कीमत भी लाखों में हो सकती है। कई विधायक पांच-छह लाख का सूट पहने दिख जाते हैं। जरूर उनकी मेहनत की कमाई इतनी होती होगी।

26 जनवरी को दिल्ली में राष्ट्रपति ओबामा के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस सूट को पहना था, उसे सूरत के विज्ञान केंद्र में प्रतिमा पर नीलामी के लिए टांगा गया है। इस सूट के अलावा कपड़ों के 237 आइटम भी नीलामी के लिए रखे गए, मगर सबकी किस्मत इस सूट जैसी नहीं है। किसी को औपचारिक रूप से यह पता नहीं कि इस सूट की कीमत क्या होगी, मगर राहुल गांधी ने इसे अपनी चुनावी रैलियों में दस लाख का बताया था।

बीजेपी के सांसद सीआर पाटिल ने कहा कि सूरत के लोग राहुल गांधी से भी ज्यादा इसकी कीमत लगायेंगे। प्रधानमंत्री को मिला सूट हमारे लिए अनमोल है। वैसे राहुल गांधी नीलामी में बोली नहीं लगा रहे थे, चुनाव में आरोप लगा रहे थे। अन्य चीज़ों की बोली भले ही कुछ हज़ारों में लगी, लेकिन सूट की नीलामी लाख से शुरू होकर शाम होते-होते एक करोड़ बीस लाख तक पहुंच गई। अंतिम कीमत तीसरे दिन ही पता चलेगी, जब नीलामी समाप्त होगी। खरीदार मोदी के फैन्स हैं, जो उनके साथ अपने संबंधों को बहुत पुराना बता रहे हैं। आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मिले सभी उपहारों की नीलामी करते रहे हैं और उससे मिली रकम सरकारी योजनाओं में देते रहे हैं। वे कम से कम ये तो बताते हैं कि मुख्यमंत्री के तौर पर कितने उपहार मिले और उनका उन्होंने क्या किया। बाकी मुख्यमंत्रियों का सार्वजनिक रूप से पता नहीं चलता है।

लेकिन इस कहानी में एक और ट्विस्ट आया है। वो यह कि यह सूट प्रधानमंत्री ने खुद नहीं बनवाया था, बल्कि उनके एक पारिवारिक मित्र ने तोहफे में दिया था। हीरे के कारोबार से जुड़ी कंपनी के निदेशक रमेश विरानी एएनआई न्यूज़ एजेंसी के ज़रिये सामने आए और पूरा किस्सा बताया। बाकी सवालों के लिए हमने भी संपर्क करने का प्रयास किया मगर नाकाम रहे। ।

रमेशकुमार भिकाभाई विरानी ने यूं बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को अपने बेटे की शादी में निमंत्रित करते वक्त यह सूट लेंथ तोहफे में दिया था, क्योंकि उनके पिताजी जब भी नरेंद्र भाई से मिलते, एक धोती ज़रूर देते। सूट पर मोदी जी का नाम लिखने का आइडिया मेरे बेटे का था, जो उन्हें ऐसा तोहफा देना चाहता था, जिससे वे चौंक जाएं। विरानी साहब ने दाम तो नहीं बताया, लेकिन कहा कि जितना बताया जा रहा है, उतना तो नहीं है और मेरे बेटे की हिम्मत नहीं है कि वो इतनी बड़ी रकम खर्च कर दे। जवाब देते-देते विरानी साहब कौतुहल को उकसा गए कि आखिर ब्रिटेन से ऐसा सूट बनवाने में कितना खर्च आता होगा। अब आगे का किस्सा यह है कि प्रधानमंत्री ने उसी दिन विरानी जी को कह दिया था कि वे ये सूट नीलाम कर देंगे और पैसे को गंगा सफाई अभियान में दे देंगे। विरानी जी इस बात को लेकर भावुक हैं कि प्रधानमंत्री ने उनके पारिवारिक रिश्ते का मान रखा और उसी दिन पहना जिस दिन उनके बेटे की शादी थी। यानी 26 जनवरी को।

अगर इतनी सी बात थी तो विरानी जी चुनाव के दौरान ही सूट के विवादों पर विराम लगा सकते थे। पर क्या विरानी जी की सफाई से विराम लग गया। जिस दिन नीलामी की खबर मीडिया में आई, उसके अगले दिन यानी बुधवार को विरानी जी सामने आए। पर कांग्रेस इस सूट को लेकर क्यों सुबह से आक्रामक है।

लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उनका हर पहनावा चटखदार होता था। मनमोहन सिंह के निराशा भरे दौर में जनता ने इन रंगों को उनके नेतृत्व का हिस्सा मान स्वीकार कर लिया। कई लोगों ने उनके स्टाइल स्टेटमेंट यानी फैशनपरस्ती पर भी खूब लिखा कि वो पहनने-ओढ़ने में भी कितना ख्याल रखते हैं। चुनाव के बाद भी उनके रंगीन कुर्ते और जैकेट कई ब्रांड स्टोर के लिए नकल का ज़रिया बन गए। मगर इस सूट ने ऐसा क्या कर दिया या इसमें ऐसी क्या खास बात थी, जिससे उन्हें अपने पहनावे को लेकर विवादों का सामना करना पड़ा। नाम का लिखा होना या इसका दाम। क्योंकि दाम को लेकर मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं कि यह रकम कहां से आ गई। अब बच गया नाम वाला मसला।

दिल्ली चुनाव में सूट मुद्दा बन गया। अंतर्राष्ट्रीय प्रेस में भी इसकी चर्चा हुई। 10 फरवरी के बाद से सार्वजनिक मंचों पर प्रधानमंत्री के पहनावों को देखें तो उनमें एक किस्म की सादगी है। अगर वे इस बारे में कोई सुधार कर रहे हैं, तो क्या उन्हें इसका मौका नहीं मिलना चाहिए।

आज ही बंगलुरू में उन्होंने सामान्य रंग का कुर्ता और सदरी पहना था। इससे पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति के साथ भी उनके पहनावे में एक सादगी थी। वैसे इस तरह का कुर्ता और जैकेट वो पहले भी पहनते रहे हैं। मुझे हैदराबाद में रूसी राष्ट्रपति के साथ उनका पहनवा उनके रंगीन कुर्तों से कहीं ज्यादा बेहतरीन लगा। कहीं-कहीं प्रिंस सूट में भी नज़र आए, मगर ऐसा लगता है कि फिलहाल के लिए उन्होंने अपने पहनावे में बदलाव किया है।

बीजेपी इस विवाद को शुरू से व्यक्तिगत स्तर और ओछी राजनीति से जोड़कर देखती रही है। दिल्ली चुनाव के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली का तब एक ऐसा ही बयान आया था। कांग्रेस नीलामी की खबर को लेकर काफी सक्रिय नज़र आ रही है। पार्टी का कहना है कि डैमेज कंट्रोल यानी अपनी छवि को बिगड़ने से बचाने के लिए इस सूट की नीलामी हो रही है। इतना ही नहीं इसके तहत नियमों को भी ताक पर रखा जा रहा है। उम्मीद है प्रधानमंत्री के सूट के साथ साथ बाकी नेताओं के कपड़ों के दाम भी चर्चा का विषय बनेंगे फिलहाल तो चर्चा जो है उसी पर। (प्राइम टाइम इंट्रो)

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