मंत्रिमंडल विस्तार : हे जानकार, मुझे कुछ नया बताओ...

मंत्रिमंडल विस्तार : हे जानकार, मुझे कुछ नया बताओ...

मोदी कैबिनेट का विस्तार...

जमाने बाद चैनलों पर मंत्रिमंडल विस्तार से जुड़ी चर्चाएं सुन रहा था। मेरा यक़ीन और मज़बूत हो गया कि राजधानी दिल्ली में कुछ भी नहीं बदला है। वही बतिया सारी रतिया। मंत्रियों के ज़रिये राज्य की राजनीति बदली जा सकती है तो सारे मंत्री यूपी से बनाकर वहां चार सौ में से दो सौ सीटें जीती जा सकती हैं। बिहार में भी जीता जा सकता था। इस लिहाज़ से तो कोई भी पार्टी सत्ता में आने के बाद कभी चुनाव ही नहीं हारती। हर राज्य और जाति का मंत्री बना दें।

क्या दलितों के मंत्री बना देने से दलितों की समस्या ख़त्म हो जाएगी? जब रोहित वेमुला से लेकर दलितों के तमाम मुद्दे उठते रहे तब यही टमटा,राज, मेघवाल या अठावले कहां थे। जब बिहार चुनाव के समय आरक्षण समाप्त करने का मसला उठा तो ये दलित चेहरे क्यों नहीं सामने आए। उनके तो बयान भी सुनाई नहीं दिए। फिर इनके मंत्री बनते ही कैसे मान लिया जाता है दलितों का प्रतिनिधित्व हो गया।

बीजेपी के पास सबसे अधिक दलित सांसद हैं। फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष को कुंभ में समरसता स्नान की राजनीति क्यों करनी पड़ी? क्या उनके साथ बाकी दलित सांसद भी स्नान करने गए थे? यूपी के कारण दलित सांसद मंत्री बने हैं तो उदित राज में कौन-सी कमी थी? क्या दलित होने के कारण इन्हें बड़ा मंत्रालय भी मिलेगा? वित्त राज्य मंत्री बनेंगे या समाज कल्याण या बाल कल्याण मंत्री ही बनते रहेंगे। कैबिनेट मंत्री बन रहे हैं ये दलित सांसद या राज्य मंत्री? राज्य मंत्रियों के पास क्या काम होता है, अचानक चर्चाओं से ग़ायब हैं।

टीवी के इन्हीं जानकारों के द्वारा अरुण जेटली और कलराज मिश्र को ब्राह्मण चेहरा बताया जा चुका है। कलराज मिश्र के रहते हुए महेंद्र पांडे को ब्राह्मण चेहरा बताने का क्या तुक है? क्या महेंद्र पांडे कलराज मिश्र से बड़े नेता हैं या कलराज मिश्र अब ब्राह्मण नेता नहीं रहे? आरएसएस प्रमुख प्राय: ब्राह्मण ही होते हैं। बीजेपी में भी कई ब्राह्मण नेता स्थापित हैं। क्या ये सभी यूपी में ब्राह्मण वोट नहीं ला सकते। मुझे कई बार समझ नहीं आता कि किस आधार पर हम किसी की जाति को राजनीति से बड़ा देखने लगते हैं। अगर चुनाव और जाति के आधार पर ही ये सांसद बनाए गए हैं तो दो साल बाद हुए इस पहले विस्तार से यही लगता है कि मोदी ही नहीं भारतीय राजनीति के पास कोई नया आइडिया नहीं है।

दो सांसदों की साइकिल से संसद आने की तस्वीर की काफी चर्चा हुई। बिना शक ये सराहनीय कार्य है। लेकिन उन्हें पर्यावरण का प्रतिनिधि चेहरा बनाने से पहले कम से कम यह तो देख लिया जाता कि सरकार की पर्यावरण की नीतियां क्या हैं। उनके क्या असर होने वाले हैं। साइकिल ही अंतिम प्रतिनिधि है तो फिर नीति क्या है। वैसे मेघवाल श्रेष्ठ सांसद चुने गए हैं और प्रशासनिक अनुभव भी है उनके पास। लेकिन उनके जैसे तमाम दलित सांसद जब दलित मुद्दों के समय सामने नहीं आते तो मंत्री बनते ही कैसे ये यूपी से लेकर भारत के तमाम दलितों के प्रतिनिधि बन जाते हैं।

हे जानकारों, इस लिहाज़ से तो प्रधानमंत्री को ये करना चाहिए कि सभी प्रमुख जातियों के शर्मा, पटेल, सिंह, सिन्हा को मंत्री बनाकर सो जाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि मैं कुछ अलग तरीके से चर्चा करता। मैं भी होता तो शायद यही सब बातें कर रहा होता। शायद इसीलिए लग रहा है कि भारत की राजनीति और उसके विश्लेषक जड़ हो चुके हैं। उनके पास कोई नया पैमाना नहीं है। हमारी राजनीति में सब कुछ हमारे पैदा होने से पहले तय हो चुका है। हम सब उसे पालने पोसने के लिए दुनिया में आए हैं! हर एंकर दूसरे जानकार को सही कह रहा है कि आप यूपी को दूसरों से अच्छा जानते हैं। आप मोदी को सबसे बेहतर जानते हैं। नया क्या बता रहे हो जानकारों जो आप सारे लोगों से बेहतर जानते हैं। टेल मी न!

अगर राजनीति सिर्फ छवि और प्रोजेक्शन का खेल है तो जनता को दिनभर टीवी ही देखना चाहिए। उसे नौकरी, तरक़्क़ी और सस्ती पढ़ाई और सस्ते अस्पताल की जगह अपनी जाति के मंत्रियों के नाम पासबुक में लिखते रहना चाहिए। पहले से जो मंत्री बने हैं वो भी उम्र, जाति और अनुभव का प्रतिनिधित्व करते हैं। वो भी इसी तरह से बताये गए। उन पैमानों पर उनका प्रदर्शन क्या रहा है? कोई बता सकता है? अगर असम हार जाते तो क्या प्रधानमंत्री और शाह इस्तीफ़ा देते? क्या ये पहले से ही मज़बूत नहीं हैं? अगर हार जीत इनकी मज़बूती का पैमाना है तो यूपी हारने के बाद शाह क्या गुजरात भेज दिये जायेंगे?

केंद्र ही नहीं राज्यों में भी यही होता है। इससे जनता का क्या भला हो रहा है। क्या ये चेहरे किसी नीति का भी प्रतिनिधित्व करते हैं? क्या इनकी अपनी कोई सोच है? क्या ये सभी अपने दम पर चुनाव जीतने की क्षमता रखते हैं? आज यूपी के जितने मंत्री जाति और इलाक़े का चेहरा बताये जा रहे हैं कोई दिल पर हाथ रख कर कहे कि क्या ये सभी बिना मोदी लहर के 2014 में चुनाव जीत जाते? क्या आपने चुनावों के दौरान कृष्णा राज, महेंद्र पांडे का नाम सुना था? दो तीन दिन से सुन रहे हैं या वर्षों से? सभी नए मंत्रियों को शुभकामनाएं।


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