परिणाम आने के बाद अब गोगोई की हार के 10 प्रमुख कारण कुछ इस प्रकार समझे जा सकते हैं...
- मुख्यमंत्री रहते हुए गोगोई ने अपने कार्यकाल में किसी भी दूसरी श्रेणी के नेताओं को उभरने नहीं दिया और पार्टी के शीर्ष नेताओं सोनिया व राहुल गांधी से उनकी नजदीकियों के चलते कोई अन्य नेता उनका विरोध करने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया।
- गोगोई की अकेले ही प्रचार की सभी जिम्मेदारियां निभाने की जिद और अति-आत्मविश्वास ही उनके लिए नुकसानदेह सिद्ध हुआ। कांग्रेस के प्रति देशव्यापी असंतोष के कारण कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के प्रचार का लाभ भी उन्हें नहीं मिला।
- गोगोई अपने विश्वासपात्र हेमंत सरमा को अपने साथ बनाए रखने में नाकाम रहे, और वह अंततः बीजेपी के पाले में चले गए, जिससे गोगोई को राजनीतिक तौर पर बहुत नुकसान हुआ। असम के बराक और ब्रह्मपुत्र की घाटियों वाले क्षेत्र में हेमंत लोगों के बीच खासे लोकप्रिय हैं और उनके गोगोई के विरोध में जाने से भी जनमत काफी हद तक गोगोई के खिलाफ हुआ।
- प्रचार के शुरुआती दिनों से ही उनके रवैये में गंभीरता की कमी देखी जा सकती थी और उन्होंने ऐसे संकेत दिए कि वह चौथी पारी भी बड़ी आसानी से जीत जाएंगे। राजधानी गुवाहाटी में जल्दबाजी में मेट्रो सेवा की घोषणा से भी उन्हें अपेक्षाकृत समर्थन नहीं मिला, लेकिन प्रदेश के अस्पतालों और चिकित्सा सेवा के क्षेत्र से लगातार मिल रही शिकायतों का नुकसान उन्हें ज़रूर हुआ।
- उनके कार्यकाल में महिलाओं पर हमलों और हत्या के मामलों की वजह से माहौल उनके विरुद्ध होना शुरू हो गया था, और आमतौर पर राज्य में कानून एवं व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति पर भी उनमें गंभीरता नहीं देखी गई।
- उन्होंने केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध को ही अपने प्रचार का प्रमुख हथियार बनाया और पूरे प्रचार के दौरान चुनाव को मोदी बनाम गोगोई संग्राम की शक्ल देने की कोशिश की। उन्हें उम्मीद थी की मोदी और बीजेपी यहां भी बिहार जैसी कोई गलती करेंगे (वहां बिहार की अस्मिता और नीतीश पर किए गए हमलों से बीजेपी को नुकसान हुआ था), लेकिन असम में बीजेपी और मोदी ऐसा कुछ करने से बचे और गोगोई अपने आप को सही सिद्ध करने में नाकाम रहे।
- गोगोई ने अपने को किसी एक सम्प्रदाय के समर्थन में न दिखाने के लिए मौलाना बदरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) से दूरियां बनाए रखीं, लेकिन अजमल ने उस समय, और नतीजों के बाद भी कहा कि वह कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ना चाहते थे। इससे गोगोई की हिन्दू-विरोधी छवि बनी, जिसका बीजेपी ने प्रचार के दौरान यह आरोप लगाकर लाभ उठाया कि एआईयूडीएफ और कांग्रेस के बीच अघोषित गठबंधन है। अजमल की पार्टी को स्पष्ट तौर पर बांग्लादेश से आए हुए मुस्लिम अप्रवासियों का प्रतिनिधि माना जाता है। असम की जनसंख्या में मुस्लिम वर्ग की लगभग 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है, और यह अनुपात अंतिम नतीजों में साफ़ दिखता है।
- अजमल ने प्रचार के दौरान खुले तौर पर अल्पसंख्यकों, मुख्यतः मुस्लिम समुदाय, से अपील की थी कि वे भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हिन्दुओं को अपनी ओर जुटाने की कोशिश का विरोध करें। उनके इस बयान का बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया और प्रदेश में कई जगह ऐसे पोस्टर लगे, जिनमें जनता से पूछा गया कि वे अजमल और बीजेपी के सोनोवाल में किसको मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहेंगे। अजमल के प्रचार से आप्रवासियों के मुद्दे पर गैर-मुस्लिम वर्ग एकजुट हुए और बीजेपी को सीधा फायदा पहुंचा। गोगोई द्वारा अजमल के इस बयान का कोई प्रतिकार नहीं किया गया।
- गोगोई द्वारा चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में ही अपने जीवन पर आधारित किताब का विमोचन करने से यह संकेत गया था कि वह अपने राजनीतिक जीवन के अंत को महसूस कर चुके थे। इस किताब को उनके रिटायरमेंट की घोषणा के रूप में लिया गया। यह किताब उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के लेखे-जोखे के रूप में लिखी गई थी और उन्होंने यह भी उल्लेख किया था कि चुनावी वादों को पूरा करना हमेशा संभव नहीं होता है।
- असम गण परिषद के सूत्रों ने संकेत दिए कि कांग्रेस ने उनकी पार्टी से चुनाव के बाद गठबंधन करने के लिए संपर्क किया था, और कांग्रेस ने भले ही इसका खंडन किया, लेकिन संकेत यह गया कि कांग्रेस कहीं न कहीं अपने दम पर जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है।
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