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This Article is From Dec 31, 2014

राजीव रंजन की कलम से : सैन्य मामलों में भारत इजरायली मॉडल अपनाएगा?

Rajeev Ranjan, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    जनवरी 01, 2015 19:24 pm IST
    • Published On दिसंबर 31, 2014 23:39 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 01, 2015 19:24 pm IST

इसे हम ईंट का जवाब पत्थर से कह सकते हैं या सेर को सवा सेर भी कह सकते हैं। शायद ये पहली बार है कि जब सरहद पर पाकिस्तानी रेंजर्स ने एक बीएसएफ के जवान को मार गिराया तो उसका मुंहतोड़ जवाब महज कुछ घंटों के भीतर बीएसएफ ने दे दिया हो। इसको लेकर जब मैंने सीमा पर तैनात बीएसएफ के एक सीनियर अधिकारी से बात की तो उनका जवाब साफ था। हमारे जवान जब पेट्रोलिंग पर थे, तो अचानक पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन पर फायरिंग शुरू दी, एक जवान पर तो एक नहीं पांच से ज्यादा गोलियां दाग दीं और तो और जवानों पर ग्रेनेड से भी फायर किए, हमारा जवान तो उसी जगह मारा गया। फिर हम क्या करते, आधे घंटे के अंदर हमने भी दो पाकिस्तानियों को मार गिराया और कुछ घंटों के भीतर दो और। घायलों की तो बात ही छोड़िए। इतना ही नहीं मरे हुए पाकिस्तानी जवानों का शव वो 5 बजे के बाद तब उठा पाए जब दिल्ली से हुक्म पहुंचा और वो सफेद झंडे के साथ आगे आए।

अब वो दिन भी याद कीजिए जब पुंछ के पास एक साल पहले मेंढर एलओसी पर पाकिस्तानी सैनिक हमारे एक जवान का सिर काटकर पाकिस्तान लेकर चले गए थे और दूसरे जवान का शव क्षत विक्षत हालत में छोड़ दिया था। हालांकि सेना ने उसका बदला तो जरूर लिया, लेकिन यह बदला लेने में छह महीने से ज्यादा लग गए। ऐसा भी नहीं था कि उस वक्त हमारी सेना और बीएसएफ के जवान माकूल जवाब लेने में सक्षम नहीं थे और न ही उनके जोश और हौसले में कोई कमी थी। कमी थी तो सरकार की ओर से मिले स्पष्ट निर्देश की।

आज सरकार का साफ हुक्म है कि अगर सरहद पर कोई भी नापाक हरकत होती है तो उसका जवाब देने में किसी भी तरह की हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। तो क्या यह अंतर राजनीतिक इच्छा शक्ति का है? यानी अगर सीमा पार से एक गोली फायर होती है तो उसका जवाब दस गोलियों से दिया जाए। पर इसका नतीजा क्या होगा ये पूछे जाने पर एलओसी पर तैनात एक सेना के अफसर कहते हैं कि हमने बहुत भाईचारा दिखा लिया हमको क्या मिला। अब सख्ती दिखाएंगे तो वो भी कुछ उल्टी हरकत करने से पहले दस बार सोचेंगे तो।         

वैसे जबसे 2003 में पाकिस्तान के साथ सरहद पर अमन कायम करने के लिए युद्ध-विराम समझौता हुआ तब से ऐसे तुरंत जवाब नहीं दिए जाते हैं। ऐसी कार्रवाई इजरायली सैनिक ही आनन-फानन में करते हैं, जब भी उनके सैनिक को दुश्मन मार गिराता है। पहले जब हमारी सीमा पर फायरिंग होती थी, जवान जवाब देने से पहले सोचता था कि पता नहीं, बॉस क्या कहेंगे। किसी जांच में फंस न जाऊं, पर अब तो स्थिति उलट है, इंतजार मत कीजिए, किसी भी हालत में पीछे मत हटिए और ऐसा मुंहतोड़ जवाब दीजिए जो दुश्मन को नानी याद करा दे।

यहां यह बताना जरूरी है कि 24 घंटे पहले ही रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि मैं सेना से यही कहूंगा कि उकसाओ मत, समुचित जवाब दो। पीछे हटने की जरूरत नहीं है और अगर कुछ होता है, डबल एनर्जी से जवाब दो। तो क्या भारत सैन्य मामलों में इजरायली मॉडल अपनाने जा रहा है?

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