नोटबंदी जनता पर कितनी भारी गुज़री? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

नोटबंदी को लेकर बहस थक गई है. टीवी में सत्ता और विपक्ष के नेता आमने सामने होकर बहस करते रहे, राज्यों की राजधानियों में मंत्रियों के धुआंधार प्रेस कांफ्रेंस होने लगे. कई मंत्रियों के लेख अखबारों में आ गए हैं.

नोटबंदी जनता पर कितनी भारी गुज़री? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

नई दिल्ली:

नोटबंदी पर पिछले एक साल से जो कहा जा रहा था, पक्ष में और विपक्ष में करीब-करीब वही बातें नवंबर के पहले सप्ताह से फिर से कही जा रही हैं. ठीक उसी तरह से जैसे इम्तहान के एक हफ्ता पहले से छात्र रिवाइज़ करने लगते हैं. दावों और सवालों में कोई अंतर नहीं है मगर उन्हीं बातों को कहने के लिए जिस ऊर्जा का प्रदर्शन किया गया वो अदभुत है. हर बार वही दावे किए गए और हर बार उन्हीं कहानियों से दावों पर सवाल उठाया गया.

नोटबंदी को लेकर बहस थक गई है. टीवी में सत्ता और विपक्ष के नेता आमने सामने होकर बहस करते रहे, राज्यों की राजधानियों में मंत्रियों के धुआंधार प्रेस कांफ्रेंस होने लगे. कई मंत्रियों के लेख अखबारों में आ गए हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इकोनोमिक टाइम्स में लेख लिखा है. सरकार नोटबंदी को काला धन पर विजय के रूप में मना रही है, विज्ञापनों में काला धन के खिलाफ जीत का एलान हो चुका है, विपक्ष इसे काला दिवस के रूप में मना रहा है. सरकार की तरफ से जो दावे किए गए हैं वो प्रेस कांफ्रेंस से लेकर तमाम अखबारों में विस्तार से छपे विज्ञापनों के ज़रिए आपके पास हैं. 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का एलान हुआ था. 28 नवंबर यानी 20 दिन बाद भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी एक प्रोविज़नल यानी अस्थाई रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा था कि 8 लाख 45 हज़ार करोड़ वापस आ गए. 

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मात्र 20 दिनों में रिज़र्व बैंक ने 8 लाख 45 हज़ार करोड़ रुपये गिन लिया. उसके बाद रिज़र्व बैंक ने नोट वापसी की संख्या पर चुप्पी साध ली. 242 दिनों बाद रिज़र्व बैंक ने बताया कि 12 लाख 44 हज़ार करोड़ वापस आ गए हैं. तीन लाख करोड़ गिनने में रिज़र्व बैंक को 242 दिन लग गए, जबकि 20 दिनों में उसी रिज़र्व बैंक ने 8 लाख 45 हज़ार करोड़ गिन लिया. 

संसदीय समिति भी पूछती रही, सुप्रीम कोर्ट भी पूछता रहा कि कितने नोट वापस आए हैं. आखिर कितने नोट वापस आए इस पर रिज़र्व बैंक ने बताने में देरी क्यों की, अभी तक अंतिम जवाब नहीं आया है. सुप्रीम कोर्ट में भारत के अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार को उम्मीद है कि 10-11 लाख करोड़ वापस आ जाएंगे और 4 से 5 लाख करोड़ नोट वापस नहीं आएंगे. नोटबंदी के समय कई लोगों ने यही दलील दी कि ये जो पैसा नहीं आएगा वही सरकार का मुनाफा होगा. जिससे सरकार के पास अतिरिक्त पैसा आ जाएगा और यह मास्टर स्ट्रोक है. बाद में इस सवाल और इस तर्क को बहस से गायब कर दिया गया. भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा था 15.28 लाख करोड़ 500 और हज़ार के पुराने नोट 30 जून 2017 को वापस आ गए. यानी 99 प्रतिशत राशि जो उस वक्त चलन में थी, वापस आ गई है. मात्र 16,000 करोड़ की करेंसी सिस्टम में वापस नहीं आई. 

एक सवाल है. कोई भी बैंक अपने यहां से गिन कर ही रिज़र्व बैंक से लेगा, तभी रिज़र्व बैंक उस बैंक को नए नोट देगा. रिज़र्व बैंक यह तो कह ही सकता था कि हमारे पास बैंकों ने इतने लाख करोड़ लौटा दिए हैं जिन्हें हम दोबारा गिन रहे हैं. मगर इस पर चुप्पी रही और आज तक हम अंतिम रूप से इसके बारे में नहीं जानते हैं. दूसरा अगर 99 प्रतिशत वापस आ गया तो क्या काला धन सिस्टम में आ गया, बाहर नष्ट नहीं हुआ है. अगर भीतर भी आ गया है तो कितना काला धन है हम अंतिम रूप से नहीं जानते हैं. इन राशि को संदिग्ध के तौर पर बताया जा रहा है, सबूत के तौर पर नहीं. हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने आरटीआई के जवाब में कहा है कि नोटबंदी के बाद कितना काला धन आया है इसका डेटा उपलब्ध नहीं है. रिजर्व बैंक की जब यह रिपोर्ट पेश हुई थी तो इस खबर को हिन्दी के तमाम अखबारों ने भीतर के पन्नों पर कम प्रमुखता से छापा था. इस दौरान खूब बहस हुई कि बहुत से जाली नोट मार्केट में घूम रहे हैं. ये जाली नोट कितने हैं. 

18 जुलाई को राज्य सभा में वित्त मंत्री ने लिखित बयान में कहा कि नोटबंदी से लेकर 14 जुलाई तक 11 करोड़ 23 लाख के जाली नोट पकड़े गए. 43 दिनों बाद रिज़र्व बैंक अपनी रिपोर्ट में कहता है कि 40 करोड़ के जाली नोट पकड़े गए. करीब 29 करोड़ का अंतर वित्त मंत्री और रिज़र्व बैंक के बयान में आ जाता है. 7 नवंबर के टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर है कि 2017 में जाली करेंसी पिछले साल की तुलना में कम पकड़ी गई है. 2016 में 51 करोड़ 30 लाख जाली नोट ज़ब्त हुए थे, 2017 में यह घटकर 16 करोड़ हो गया. 

नोटबंदी सफल थी तो लाभांश क्यों घटा
नोटबंदी सफल थी तो भारतीय रिज़र्व बैंक का लाभांश तीस हज़ार करोड़ क्यों घटा. 2015-16 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत सरकार को 65, 875 करोड़ का लाभांश दिया मगर 2016-17 में यह घटकर 30.695 करोड़ पर आ गया. सरकार को भी पिछले साल की तुलना में कम ही उम्मीद थी, उसे उम्मीद थी कि 8 हज़ार करोड़ कम आएंगे यानी 58000 करोड़ आएंगे मगर रिज़र्व बैंक ने दिया 30,695 करोड़. यह लाभांश कम क्यों हुआ, इसका ठोस जवाब आज तक नहीं आया है. क्या इसका संबंध नोटबंदी से है, आप गेस कर सकते हैं. अब आपको याद नहीं है कि नोटबंदी के कारण बैंकों के सिस्टम में नकद राशि आई उस पर उन्हें ब्याज़ देना पड़ा, उसकी भरपाई भी आपकी जेब से की गई. फिक्स डिपोज़िट की ब्याज़ दर कम कर दी गई. तरह तरह के सुविधा शुल्क लगा दिए गए जो आज तक जारी हैं. कुल मिलाकर नोटबंदी को लेकर रिज़र्व बैंक की तरफ से अभी अंतिम जवाब नहीं आया है. राजनीति में नोटबंदी को लेकर अंतिम जवाब आ गया है. 

अरुण जेटली ने कांग्रेस के जवाबों के आरोप में कहा है कि हैरानी की बात है कि एक नैतिक आर्थिक कदम को लूट बताया जा रहा है. काला धन को मिटाने का यह कदम एथिकल भी था और मोरल भी. नीम कोटेड यूरिया की तरह नोटबंदी पर भी नैतिकता को कोट चढ़ा हुआ है. इस पर प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है. जिसमें वे नैतिकता वाली बात पर लिखते हैं कि नोटबंदी के कदम के पीछे व्यावहारिक वास्तविकता से भी ज़्यादा नैतिकता पर अति की हद तक ज़ोर दिया गया. इस नैतिकता को याद नहीं रहा कि ब्लैक पैसे का अपना कोई प्राकृतिक स्वभाव नहीं है. इस बात को लेकर संदेह होता है कि नोटबंदी ने पैसे छिपाने जटिल तंत्रों पर कोई चोट पहुंचाई हो. बल्कि अब इस बात के कुछ प्रमाण भी मिलते हैं कि नोटबंदी के कारण पैसे की लौंड्रिंग के नए तरीके भी आ गए हैं.

प्रताभ भानु मेहता ने यह भी लिखा है कि पारदर्शिता के नाम पर नोटबंदी लाई गई, लेकिन राजनीतिक दल अपने चंदे का सोर्स नहीं बताना चाहते हैं. नागरिक तो इस पारदर्शिता के साथ है मगर राजनीतिक दल क्यों नहीं चंदे का सोर्स बताते हैं. सरकार नोटबंदी के फायदे को लेकर आक्रामक है. उसके कई मंत्री और बड़े नेता देश के अलग अलग हिस्सों में दौरा कर रहे हैं, प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं. 

अब हम इस पर कुछ नहीं कहेंगे. समय बर्बाद होगा. वित्त मंत्री जेटली ने बताया है कि डेढ़ से पौने दो लाख करोड़ के लेनदेन को संदिग्ध के दायरे में रखा जाता है. वे इसे संदिग्ध कहते समय काफी सावधानी बरतते हैं. यह सावधानी अखबार वाले छापते वक्त नहीं बरतते हैं सीधे लिख डालते हैं कि डेढ़ लाख करोड़ की राशि संदिग्ध. जबकि एक साल बाद वित्त मंत्री कह रहे हैं कि आयकर विभाग और अन्य जांच एजेंसियों पर निर्भर करता है कि वे डेटा का मूल्यांकन करें और कदम उठाएं. कुछ कदम उठाए भी जा चुके हैं.

जेटली ने यह भी बताया कि 22 लाख नए करदाता पिछले साल जुड़े थे, इस साल 6 लाख नए करदाता जुड़े हैं. सेल्फ असेसमेंट से टैक्स जमा राशि में 34.25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. कॉरपोरेट के द्वारा जमा अग्रिम कर में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. सूरत के कपड़ा व्यापारी नोटबंदी से लेकर जीएसटी से परेशान हैं. उन्हें कोई नहीं सुन रहा था. हालत ये हो गई हज़ारों की संख्या में जमा होकर वे प्रदर्शन करते और खुद ही तस्वीर खींच कर आपस में वायरल करते रहे ताकि मीडिया को कोस सकें कि दिल्ली के चैनल उनकी परेशानी को नहीं दिखाते हैं. जीएसटी काउंसिल की बैठकों में कुछ संशोधन भी हुए मगर उससे उन्हें लाभ नहीं हुआ. सूरत का कपड़ा व्यापार संकट से नहीं उबर सका. चुनाव आ गया है कि बीजेपी के सभी बड़े नेता सूरत के व्यापारियों का हाल पूछ रहे हैं. अमित शाह भी सूरत गए और राहुल गांधी भी.

राहुल गांधी बुनकरों के कारखाने पहुंचकर यार्न पर जीएसटी लगाए जाने की समस्या को समझने का प्रयास किया. सूरत में 3 करोड़ मीटर कपड़ा रोज़ बनता है, जबकि पहले साढ़े चार करोड़ कपड़ा बनता था. हीरा व्यापारी भी यहां संकट में हैं. उनका भी काम 30-40 प्रतिशत कम हो गया है. यहां 5 से 6 लाख मज़दूरों से काम छिन गया है. राहुल गांधी ने बाद में कपड़ा व्यापारियों से उनकी समस्याएं सुनी. 

इस वक्त बाज़ार में जो संकट है वो किस हद तक नोटबंदी के कारण है और किस हद तक जीएसटी के कारण कहना मुश्किल है. सीएमआईई, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी ने रोज़गार पर एक नया डेटा प्रकाशित किया है. इस साल जनवरी से अप्रैल के बीच 15 लाख नौकरियां चली गईं हैं. शेयर बाज़ार की कंपनियों में भी नौकरियों की संख्या कम हुई है. 107 कंपनियों में 14,668 नौकरियां कम हुई हैं.

सीएमआईई का कहना है कि लेबर ब्यूरो के अनुसार पिछले साल अक्तूबर से दिसंबर के बीच 1 लाख 52 हज़ार कैजुअल और 46,000 पार्ट टाइम नौकरियां समाप्त हो गईं. वो समय नोटबंदी का था. तमिनलाडु का एक शहर है त्रिशुर. टेक्सटाइल सेक्टर का गढ़ है, बल्कि सूरत से भी बड़ा गढ़ है. हमारी यहां पहुंच तो नहीं है मगर एक व्यापारी भाई की मदद से मैंने कुछ तस्वीरें मंगाई. उनसे यह कहा कि आज की तस्वीर भेजें. तिरुपुर के बारे में अंग्रेज़ी अखबार इंडियन एक्सप्रेस, बिजनेस स्टैंडर्ड में काफी कुछ छप रहा है. मैं भी देखना चाहता था कि तिरुपुर कैसा दिखता है मगर शुक्र है कि हिन्दी भाषी व्यापारी महोदय ने मदद के लिए हां कह दी. अपना नाम नहीं बताना चाहते हैं, आप जानते ही हैं कि इसके क्या कारण हो सकते हैं.

यह तस्वीर तिरुपुर के कादर पेट बाज़ार की है. तमिल में गली को पेट बोलते हैं. यह मार्केट स्टेशन से सटा हुआ है. आम दिनों में यहां तिल धरने की जगह नहीं होती मगर 8 नवंबर की यह तस्वीर आप खुद देख सकते हैं. सड़कें ख़ाली दिख रही हैं. दुकान के भीतर टीशर्ट टंगे हैं मगर ख़रीदार नहीं हैं. तिरुपुर में पांच लाख लोगों को काम मिलता है मगर नोटबंदी और जीएसटी के कारण एक लाख लोगों से काम छिन गया है. डॉलर सिटी के निर्यातक भी संकट में हैं. अंडर गारमेंट के सारे बड़े ब्रांड की मैन्युफैक्चरिंग यहीं होती हैं. नोटबंदी और जीएसटी का लाभ होता तो यहां भी जश्न का माहौल होता मगर इस दिवाली यहां 50 फीसदी माल नहीं बिका है.

नोटबंदी के कारण जो अडवांस पर माल दिया था वो अभी तक पूरा नहीं लौटा है. पहले एक महीने में खरीदार से पेमेंट आ जाता था, अब यहां के मैन्यफैक्चरर को चार चार महीने इंतज़ार करने पड़ते हैं. तस्वीर भेजने वाले व्यापारी दर्शक ने बताया कि ऐसा सन्नाटा तो छुट्टियों में होता है, मगर छुट्टी नहीं होने पर भी बाज़ार बंद जैसा लग रहा है. दिवाली की छुट्टी पर गए मज़दूरों को वापस कम ही लोग बुला रहे हैं. यह तस्वीर जिसमें फैक्ट्री की शटर डाउन है, घास उगी है, फिलहाल बंद है. तिरुपुर में 50 प्रतिशत यूनिट बंद हैं या कम क्षमता पर चल रही हैं, बाकी संकट से जूझ रही हैं. इस यूनिट में आप देख सकते हैं कि कई मशीनों पर कामगार नहीं है. अब आप जो तस्वीर देख रहे हैं वो यार्न फैक्ट्री की है जो चल रही है और पूरी तरह से ऑटोमेटिक है, इसके कारण भी रोज़गार कम हुआ है. हमें एक व्यापारी ने बताया कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण उसने डेढ़ सौ कामगारों को निकाल दिया है. बाकी जो ढाई सौ हैं उनके लिए पूरा काम नहीं है. तिरुपुर में कारोबार 40 फीसदी कम हो गया है. एक व्यापारी ने बताया कि इस दिवाली के लिए दस लाख पीस तैयार कर रखा था मगर चार लाख पीस ही बिक सका. छह लाख पीस गोदाम में पड़े हैं, जिसके कारण नए पीस का प्रोडक्शन बंद है. जो कपनियों में मैनेजर अकाउंटेंट बन गए थे वो वापस मज़दूरी की तरफ लौट गए हैं. हज़ारों की संख्या में मजदूर बिहार, उड़ीसा चले गए हैं. दिवाली के बाद अभी तक लेबर को बुलाने का सिलसिला शुरू नहीं हुआ है. यहां के होटल भी खाली हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की स्टोरी पढ़िएगा. के एस रामदास ने बीस साल लगाकर सिलाई की एक यूनिट बनाई, 15 महिलाएं यहां काम करती थीं और हफ्ते में के एस रामदास 20-25 हज़ार कमा लेते थे. आज अपनी यूनिट में रामदास और उनकी पत्नी ही काम कर रहे हैं और हफ्ते में 25 की जगह दो हज़ार ही कमा पा रहे हैं. क्या इनकी व्यथा किसी प्रेस कांफ्रेंस में दिखी आपको. कई लोग कहते हैं कि किसी चीज़ को ठीक होने में टाइम चाहिए तो क्या उस चीज़ के करने में सबसे नहीं पूछा जाना चाहिए था. यहां के व्यापारियों और कामगारों का क्या कसूर था. क्या जब सब ठीक हो जाएगा तो इनके लाखों से लेकर करोड़ों के घाटे की भरपाई होगी, कामगारों से जो काम छिना उसकी क्या भरपाई होगी? मुरादाबाद से एक व्यापारी ने बताया कि नोटबंदी के बाद कई कामगार ई रिक्शा चलाने लगे और काम के लिए नेपाल की तरफ पलायन कर गए. किनती कहानियां हैं, जो सामने आने से रह जाती हैं जिनके बारे में किसी प्रेस कांफ्रेंस में एक शब्द नहीं है. काम के अवरस कहां गए अगर नोटबंदी और जीएसटी ने कमाल ही कर दिया तो. ऐसा तो नहीं था कि लोगों के पास कौशल नहीं थी.

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत जुलाई 2017 तक 30 लाख 67 हज़ार उम्मीदवारों को ट्रेनिंग दी गई. इनमें से तीन लाख लोगों को भी काम नहीं मिला, आखिर 27 लाख लोग ट्रेनिंग लेकर कहां गए, क्या कर रहे हैं. यह आंकड़ा भी कौशल मंत्रालय का है जो 8 नवंबर के इंडियन एक्सप्रेस में छपा है और पहले भी छप चुका है. 

क्या किसी प्रेस कांफ्रेंस में यह बताया जाता है कि हमने 30 लाख लोगों को ट्रेनिंग दी मगर तीन लाख लोगों को ही रोज़गार मिले. नहीं न. इसलिए काफी हाथ पांव मारने के बाद इतना सा पता चलता है. हमारे सहयोगी अनुराद द्वारी और रिज़वान मध्यप्रदेश के बड़झिरी गांव गए. यह गांव भोपाल से मात्र 25 किमी की दूरी पर है. साल भर पहले इस गांव को लेकर अखबारों में खूब चर्चा हुई. टीवी में हेडलाइन बनाकर स्टोरी चली कि यह गांव कैशलेस हो गया है. आज उस गांव की क्या हालत है. नेटवर्क की परेशानी के कारण लोग जीएसटी के फॉर्म नहीं भर पा रहे हैं, कैशलेस कैसे हो जाएंगे हम यह सवाल क्यों भूल जाते हैं. इस गांव को लेकर काफी तामझाम हुआ था. बैंक ऑफ बड़ौदा आ गया गोद लेने के लिए. सबको डेबिट कार्ड दिया गया मगर ज्यादातर ने इस्तमाल नहीं किया. 


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