समस्याओं के अनगिनत टापू होते हैं, लेकिन जब करीब जाकर देखिये तो टापू में समंदर नज़र आने लगता है, जहां आम जनता जाने कितनी तरह की चुनौतियों का सामना कर रही होती है. सैंकड़ों ईमेल पढ़ना और मेसेज देखना संभव नहीं होता है, मगर एक मैसेज पर रूक गया और फिर उसके कारण जहां पहुंचा वहां आपको भी ले जाना चाहता हूं. 11 फरवरी 2016 को यूपी में जूनियर असिस्टेंट और लेखाकार की वेकैंसी का फार्म निकलता है. जूनियर असिस्टेंट के लिए 5,306 पद भरे जाने थे और लेखाकार के लिए 2800...
-जूनियर असिस्टेंट का पहली परीक्षा होती है 24 अप्रैल 2016 को.
-उसके बाद 16 मई 2016 को नतीजा आता है और टाइपिंग टेस्ट के लिए तारीख निकलती है.
-21 जुलाई से 31 अगस्त के बीच टाइपिंग टेस्ट होता है, जिसका नतीजा आता है 21 अक्तूबर 2016 को.
-टाइपिंग टेस्ट में 12,000 छात्र सफल घोषित किए जाते हैं.
-19 दिसंबर 2016 से लेकर 17 अप्रैल के बीच इंटरव्यू का कार्यक्रम निकलता है.
-तीन महीने तक इंटरव्यू चलना था, मगर 28 मार्च 2017 को नई सरकार इंटरव्यू स्थगित कर देती है.
फॉर्म निकला फरवरी 2016 में, लेकिन अंतिम रिज़ल्ट जून 2017 के समाप्त होने तक नहीं निकला है. एक साल से ज़्यादा समय लग जाता है चयन आयोग को जूनियर असिस्टेंट की भर्ती प्रक्रिया पूरी करने में. आप सोचिये कि इतने पदों के ख़ाली रहने से जनता के काम में कितनी रूकावट आती होगी. सिर्फ इन्हीं तीन परीक्षाओं में 38,000 छात्र इंटरव्यू का इंतज़ार कर रहे हैं. तीन महीने बीत गए मगर प्रक्रिया दोबारा शुरू नहीं हुई है.
लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान में अभ्यर्थी 28 जून से 3 जुलाई तक के लिए धरने पर बैठे हैं. 29 जून को अर्धनग्नावस्था में प्रदर्शन किया है. इन छात्रों का दावा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पांच बार ज्ञापन दिया है.. मुख्य सचिव से भी मुलाकात की है. 19 मार्च को योगी सरकार ने शपथ ली, हफ्ते भर के भीतर 28 मार्च को इंटरव्यू पर रोक लगाने का फैसला हो गया. 6 अप्रैल को आयोग के चेयरमैन ने इस्तीफा दे दिया. 6 अप्रैल से लेकर 29 जून तक यूपी अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के लिए न तो नया चेयरमैन नियुक्त हुआ है न ही इंटरव्यू की प्रक्रिया दोबारा शुरू हो पाई है. लेखाकार के लिए 10,000 अभ्यर्थी, ग्राम विकास पदाधिकारी के लिए 16,000 परीक्षार्थी नतीजों का इंतज़ार कर रहे हैं.
हो सकता है कि किसी के लिए उन छात्रों की उम्मीदों की कोई वैल्यू न हो जो इम्तिहान के नतीजे का इंतज़ार कर रहे हों कि नौकरी मिले और जीवन बढ़े. हमारे देश में बेरोज़गारी को लेकर भले कोई आंदोलन न होता हो मगर इम्तिहान देने के बाद इंटरव्यू के लिए धरना-प्रदर्शन के उदाहरण कई मिलते हैं. अब आते हैं एक और धरना-प्रदर्शन पर. ये धरना प्रदर्शन नौकरी ने के लिए नहीं, नौकरी के लिए ट्रेनिंग देने वाले सेंटर मालिकों का है.
दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम के पास कौशल मंत्रालय है, स्किल इंडिया वाला, जब जंतर-मंतर पर नागरिक भीड़तंत्र के खिलाफ़ नारे लगा रहे थे, वहीं सौ डेढ़ सौ की संख्या में लोग कौशल मंत्रालय में घुसकर नारे लगा रहे थे कि इन्हें काम सिखाने के लिए काम नहीं दिया जा रहा है. ये स्किल इंडिया कार्यक्रम के तहत फ्रेंचाइजी सेंटर है, जहां कौशल सीखने वाले छात्रों को स्टाइपेंड और सर्टिफिकेट दिया जाता है. जयपुर, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात से आए फ्रेंचाइज़ी सेंटर के मालिकों का कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा है, ट्वीट किया है. 6 जून को भी कुतुब एंक्लेव स्थित नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल, एनएसडीसी के मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया है. इनका कहना है एनएसडीसी के मानक के हिसाब से इन्होंने लाखों रुपये लगाकर फ्रेंचाइज़ी सेंटर तो खोल लिया, मगर अब इन्हें काम नहीं देने का फैसला कर लिया गया है. एनएसडीसी के तहत सेंटर का एरिया, लैब, कंप्यूटर ये सब मानक के बाद ही मान्यता दी जाती है. इन केंद्रों की चार या पांच स्टार रेटिंग होती है, मगर मान्यता मिलने के छह महीने तक ये इंतज़ार ही करते रह गए, लेकिन कुछ मिला नहीं. इनके पास छात्र तो हैं, मगर इनकी ट्रेनिंग का खर्चा सरकार को देना होता है वो ही नहीं मिल रहा है. लिहाज़ा फ्री में पढ़ाना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि ट्रेनर से लेकर कमरे का किराया सबका भार कैसे उठाएं.
29 अप्रैल को एनएसडीसी कुछ फ्रेंचाइज़ी सेंटर को ईमेल करती है कि दो दिन के अंदर काम दे दिया जाएगा. मतलब छात्रों की ट्रेनिंग का पैसा और सर्टिफिकेट. 29 अप्रैल के बाद 29 जून आ गया. इन मालिकों का कहना है कि अब ये फैसला हो गया है कि फ्रेंचाइज़ी सेंटर को काम ही नहीं दिया जाएगा. क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया एक संस्था है जो इन सेंटरों की जांच कर प्रमाणित करती है.
बिहार के नवादा के मोतिबिगहा गोनावां का आइकौनिक सेंटर 2015 में स्किल इंडिया के तहत ट्रेनिंग देने के लिए खुला था. इस सेंटर का उदघाटन खुद प्रधानमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये किया था. पिछले साल जब हम इस स्टोरी के लिए रिसर्च कर रहे थे तब हमारे सहयोगी अशोक प्रियदर्शी यहां गए थे. तब यह सेंटर चलता-फिरता लगा. 360 छात्र पांच प्रकार के कोर्स में पंजीकृत थे. छात्रों को सर्टिफिकेट मिलना था और 8 से 15 हज़ार तक का स्टाइपेंड मिलना था. जब नहीं मिला तो छात्रों ने सेंटर में तोड़फोड़ कर दी. 29 जून 2017 को जब अशोक इस सेंटर पर गए तो देखा कि बोर्ड तो लगा है, मगर सेंटर बंद हो चुका है. किराये के इस मकान में गैस एजेंसी खुल गई है. हमने इसके मालिक ललन कुमार का बयान व्हाट्सएप के ज़रिये भी मंगवाया.
फ्रेंचाइज़ी सेंटर मालिकों से जुड़ी रिपोर्ट को लेकर एनएसडीसी को मेल किया गया, मंत्रालय जाकर अधिकारियों से मुलाकात की गई, मगर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली. जब मिलेगी तो हम बाद में भी शामिल करेंगे. स्किल इंडिया के तहत कई कार्यक्रम चल रहे हैं. इसी के तहत प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना एक और दो है. हमारी स्टोरी इसी से संबंधित है. 2 अक्टूबर 2016 को लॉन्च हुई प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना दो के तहत 2016 से लेकर 2020 तक यानी चार साल में 20 लाख लोगों को ट्रेनिंग दी जानी है. हम प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की वेबसाइट पर गए तो वहां इस बात से प्रभावित हुए कि हर दिन का डाटा अपलोड किया जाता है कि कितने लोगों को ट्रेनिंग दी गई.
इसके अनुसार 29 जून 2017 तक प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना दो के तहत एक लाख 70,000 लोगों को ट्रेनिंग दी गई है. जबकि इस योजना के तहत हर साल पांच लाख लोगों को ट्रेनिंग दी जानी थी यानी इस साल यह योजना काफी पीछे चल रही है. छह जून की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने कहा था कि जुलाई 2015 में लॉन्च हुई प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना एक के तहत साढ़े छब्बीस लाख लोगों को ट्रेनिंग दी चुकी है, जबकि कौशल विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर लिखा है कि इस योजना के तहत करीब-करीब 20 लाख लोगों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है. मंत्री और मंत्रालय के बयान में साढ़े छह लाख का अंतर आ जाता है.
This Article is From Jun 29, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : युवा बेरोज़गार या सरकार बेरोज़गार?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जून 29, 2017 22:43 pm IST
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Published On जून 29, 2017 21:45 pm IST
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Last Updated On जून 29, 2017 22:43 pm IST
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