सबमर्सिबल पंप का हम जिस तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे हमारा आज तो निकल जा रहा है मगर कल नहीं निकल पाएगा. सबमर्सिबल पंप पानी का ऐसा संकट लेकर आ रहा है जिसका अंदाज़ा हम सभी को है मगर नज़र हम सभी फेर ले रहे हैं. इस पंप के कारण ज़मीन के नीचे का पानी ग़ायब हो जाने वाला है. अगर ऐसा नहीं होता तो दिसंबर 2010 में पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने गुड़गांव ज़िले में बोरवेल लगाने पर रोक नहीं लगाया होता. तब पीडब्ल्यूडी ने रिपोर्ट दी थी कि जिस दर से भूमिगत जल का उपभोग हो रहा है, उस हिसाब से 2040 तक इस ज़िले से भूमिगत जल समाप्त हो जाएगा. 2013 में केंदीय भू जल बोर्ड ने पूरे गुरुग्राम ज़िले को डार्क ज़ोन घोषित कर दिया था. क्योंकि यहां भूमिगत जल तय सीमा से भी नीचे चला गया था. यह उस जगह का हाल है जहां के अपार्टमेंट में समृद्ध लोग रहते हैं. जब यहां पानी बचाने को लेकर कोई आंदोलन नहीं है, कोई ठोस पहल नहीं है तो किस जगह से आप उम्मीद कर सकते हैं. इस तरह की रिपोर्ट कई साल से हमारे सामने आ रही है. मीडिया में आती है और हम भूल जाते हैं. पानी संकट को लेकर अब ऐसी कोई बात नहीं है जिसे हमें फिर से जानने की ज़रूरत है. इस पर भले तीन तलाक से कम बहस हुई है लेकिन कम बहस नहीं हुई है. इसलिए कोई धोखे में न रहे कि इस मामले में जागरूकता की कमी है.
दिल्ली वाले भी प्लास्टिक की गगरी खरीद कर रख लें. दिल्ली की हालत भले ही चेन्नई की तरह खराब नहीं है मगर कई इलाकों में अवैध बोरवेल के कारण भूमिगत जल कम होता जा रहा है. अगले साल तक कुछ इलाके में इसका बेहद खराब असर होने वाला है. पानी की कमी के कारण दिल्ली को जितना पानी चाहिए उतना नहीं मिल पा रहा है. 1140 मिलियन गैलन्स प्रति दिन पानी चाहिए मगर मिल रहा है 936 मिलियन गैलन्स प्रति दिन. हम भले ही भूमिगत जल से दिल्ली में पानी का संकट दूर कर रहे हैं मगर यह बड़ा संकट लेकर आने वाला है. पिछले साल दिल्ली जल बोर्ड ने माना था कि यहां 5000 से अधिक प्वाइंट हैं जहां अवैध तरीके से पानी निकाला जाता है. इनमें से कुछ को बैन भी किया गया है. दिल्ली के पास अभी भी पानी बचाने के कई मौके हैं अगर इसी तरह राम भरोसे चला तो संकट गहरा हो जाएगा. दिल्ली सरकार ने 201 जलाशयों को पुनजीवित करने की नीति बनाई है. कभी राजधानी दिल्ली में 300 से अधिक तालाब हुआ करते थे. वैसे जिन इलाकों में दिल्ली की बड़ी आबादी रहती है वहां अप्रैल के महीने में लोग इस तरह से पानी निकाल कर पी रहे थे. पानी के पाइप का प्रेशर कम होता है तो लोगों ने नाली से नीचे एक गड्ढा जैसा बना रखा है जिसमें पानी भरता है और फिर वहां से पानी निकाल कर बर्तन में रखते हैं. बारिश के दिनों में इस गड्ढे में नाली का पानी भर जाता है. पानी का यह संकट टीवी पर नहीं दिखता तो हम मान लेते हैं कि दिल्ली में पानी का संकट नहीं है.
इस वक्त भारत में कितने सबमर्सिबल पंप लग रहे हैं इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया में सबसे अधिक भूमिगत जल निकालने वाला देश है. दुनिया में जितना भी भूमिगत जल है उसका 25 प्रतिशत हर साल भारत निकालता है. यानी ढाई लाख करोड़ लीटर पानी निकाल लेता है ज़मीन से. सरकार के निगम तो ज़मीन से पानी निकाल ही रहे हैं, अवैध रूप से भी पानी निकाल कर जगह जगह बेचा जा रहा है. गांवों में यह धंधा तेज़ी से फैला है. 2018 की ही एक खबर मिली टाइम्स ऑफ इंडिया की. लुधियाना नगर निगम सर्वे कर रहा था कि कितने सबमर्सिबल बगैर लाइसेंस और फीस के चल रहे हैं तो पता चला कि 4000 से अधिक सबमर्सिबल बिना किसी लाइसेंस के चल रहे हैं. इस शहर में 2010 से सबमर्सिबल पर बैन लगा है. अदालत के आदेश से यह बैन लगा था. अगर आप इसे लगाएंगे तो निगम की 23 सदस्यों की कमिटी विचार करती है और अनुमति देती है. ज़ाहिर है यह प्रक्रिया इसलिए सख्त की गई है ताकि पानी बर्बाद न हो. मगर इसके बाद भी 4000 से अधिक सबमर्सिबल अवैध रूप से चल रहे थे. इससे पता चलता है कि हमारा शहरी समाज मौका मिले तो न तो नियम की परवाह करता है और न ही पानी का.
अब आते हैं बिहार. हमारे सहयोगी प्रमोद गुप्ता ने आज सबमर्सिबल पंप की इन तस्वीरों को आप तक पहुंचाने के लिए बहुत मेहनत की है. प्रमोद आज दरभंगा के लक्ष्मी सागर, कटहलवारी मोहल्ला और छपकी गए. उन्होंने देखा कि आठ जगहों पर सबमर्सिबल पंप लगाने का काम चल रहा है. कहीं मशीन से सबमर्सिबल लगाया जा रहा है तो कहीं हाथ की मशीन से यानी पुराने तरीके से. अगर यह एक दिन का औसत है तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि दरभंगा शहर और उसके आस-पास ही पिछले तीन महीनों में 2 से 3 हज़ार सबमर्सिबल पंप लगाए जा चुके होंगे. लोग अपनी तरफ से धड़ाधड़ सबमर्सिबल पंप लगाए जा रहे हैं. इसके लिए वे 75000 से एक लाख तक खर्च भी कर रहे हैं. यही नहीं सरकार भी यहां के वार्डों में करीब 150 सबमर्सिबल पंप लगवा रही है ताकि लोगों के घरों तक पानी पहुंचाया जा सके. इन मशीनों को देखकर आप संतोष कर सकते हैं कि कुछ साल के लिए पानी का इंतज़ाम तो हो गया मगर भूमिगत जल का दोहन करेंगे तो यह घटता है. कई राज्यों में यह देखा गया है कि बाढ़ या बारिश के कारण जितना भूमिगत जल रिचार्ज होता है उससे कहीं ज्यादा लोग ज़मीन से पानी निकाल कर इस्तमाल कर लेते हैं. राजनीतिक रूप से यह फैसला भले सही हो मगर सबमर्सिबल बिहार के लिए या पूरे भारत के लिए नया संकट खड़ा कर रहा है. आपको एक और बात बताना चाहते हैं एक सबमर्सिबल पंप लगाने के लिए पहले 30 से 40 हज़ार लीटर पानी लगता है. सबमर्सिबल पंप को लगातार पानी चाहिए होता है. यह पानी कहां से आता है. ज़ाहिर है अवैध रूप से आता होगा. जहां पानी बचा खुचा होगा वहां से आता होगा. दरभंगा में तो 250 फीट पर पानी आ जा रहा है लेकिन बिहार के कई जगहों पर पानी तीन सौ फीट के नीचे चला गया है. मुज़फ्फरपुर, पटना, वैशाली में पानी 300 फीट नीचे जा चुका है. बिहार भर के निगमों का हिसाब तो नहीं है लेकिन ग्रामीण वार्डों की संख्या सवा लाख के करीब है. सभी सवा लाख पंचायती वार्ड में सबमर्सिबल लगाया जाएगा. अगले साल तक बिहार की ज़मीन में लाखों सबमर्सिबल लग चुके होंगे.
जिस मोहल्ले में सबमर्सिबल लग रहा था, उसी के पास का है यह पलटू तालाब. यह तालाब जलकुंभी से भरा है मगर नीचे पानी बचा है. यह जो पाइप देख रहे हैं इसके ज़रिए पानी खींचकर सबमर्सिबल पंप की मशीन में डाला जाता है ताकि वह पानी निकाल सके. अगर आप यही हिसाब लगा लें कि बिहार में कितने हज़ार पंप लग रहे हैं और हर पंप के लिए चालीस हज़ार लीटर पानी कहां से आ रहा है तो डर जाएंगे. मगर चिन्ता मत कीजिए. जब तक व्हाट्सएप में गुडमॉर्निंग भेजने की सुविधा है तब तक आपको कुछ नहीं होगा. रिपोर्ट देखकर परेशान न हो बल्कि धन्यवाद दें कि इस भयावह संकट के बीच आप मौज कर रहे हैं.
तालाब पाइन और चौर को बचाना ही होगा. लोगों को बताना होगा कि सबमर्सिबल पंप लगा लिए हैं तो आप पानी के मालिक नहीं हो जाते हैं. पानी का इस्तमाल हिसाब से ही करना होगा. वरना आज तो काम चल रहा है, कल का नहीं चलेगा. बिहार की जनता का ही हिस्सा है जिसने तालाबों पर कब्ज़ा कर घर बना रहे हैं. सरकार से तो सब उम्मीद करते हैं क्या लोगों से उम्मीद की जा सकती है वे खुद बता दें कि तालाब पर कब्ज़ा कर उन्होंने घर बनाया है. नहीं. तब यह संकट कभी दूर नहीं होगा.
यह दरंभगा का हराही तालाब है. अभी बचा हुआ है मगर इसके बड़े हिस्से पर कब्ज़ा हो गया है. सोचिए 1000 फीट चौड़ाई इसकी. मगर पूरब और दक्षिण के हिस्से में काफी दूर तक कब्ज़ा कर लिया है. यही हाल अन्य तालाबों का भी है. अतिक्रमण करने वालों को आप पानी के संकट पर 500 प्रोग्राम दिखा दें वो हंस कर चल देंगे. उन्हें पता है कि प्रोग्राम करने से कब्ज़ा नहीं हटता है. उन्हें ही नहीं, हमें भी यह पता है.
बारिश या बाढ़ के बाद भूमिगत जल री चार्ज हो जाता है लेकिन जिस रफ्तार से हम भूमिगत जल का इस्तेमाल कर रहे हैं उस रफ्तार से पानी रीचार्ज नहीं होता है. जितना रिचार्ज होता है उससे कहीं ज़्यादा पानी हम इस्तेमाल कर रहे हैं. पॉलिसी रिसर्च स्टडीज पीआरएस ने 2016 में एक रिपोर्ट तैयार की थी जो सेंट्रल ग्राउंड बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर है. इसके अनुसार 10 राज्यों में भूमिगत जल में आर्सेनिक पाया जाता है जिससे कैंसर, डायबिटीज, दिल की बीमारी वगैरह होती है. 20-100 मीटर के लेवल पर पानी में मिलता है. क्या इस पानी को हम साफ कर लोगों तक दे रहे हैं. जब नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि 70 प्रतिशत पानी प्रदूषित है. अब तो सरकार भी मानती है कि हर साल प्रदूषित पानी से भारत में दो लाख लोग मर जाते हैं. हर दिन 500 से अधिक मौत होती है. मोदी सरकार ने इस बार जल शक्ति मंत्रालय बनाया है. इसके मंत्री हैं गजेंद्र सिंह शेखावत. 9 जून को इन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा है कि कई राज्य ऐसे हैं जहां साफ पानी यानी पीने का पानी 5 प्रतिशत से भी कम है. बिहार इसमें एक है. बिहार में पीने का पानी मात्र 5 प्रतिशत है.
मध्य प्रदेश का आगर मालवा. आप जहां कालोनी बनते हुए देख रहे हैं दरअसल उसके नीचे एक तालाब है. कुछ ही साल पहले लोगों ने यहां तालाब देखा था. जिला मुख्यालय से बहुत दूर नहीं था यह तालाब. अतिक्रमण करने वाले वैज्ञानिकों ने इस तालाब को गायब ही कर दिया. बारिश के दिनों में जब यह भरता था तब आस पास के इलाकों का जल स्तर बढ़ जाता था. अब तालाब के नाम पर छोटा सा गड्ढा बचा है जिसमें नालियों का गंदा पानी जमा होता है. जब हमारे सहयोगी जफर मुल्तानी ने सरकारी दस्तावेज़ों को टटोला तो पता चला कि रिकार्ड में यह तालाब एक हेक्टेयर इलाके में है. प्रशासन को कहां तो अतिक्रमण हटाना था, उल्टा उसने यहां रास्ते बनवाए, पानी की पाइप लाइन लगाई, बिजली के पोल लगाए. यहां पर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कई सारे मकान भी बनवाए. लेकिन किसी ने रिकॉर्ड रूम जाकर नहीं देखा कि यहां जो तालाब था वह कहां गया.
कई बार लोग कहते हैं कि पानी की समस्या पर लोगों को जागरूक कीजिए तो हमने जागरूक कर दिया अब आप बताइये क्या कलेक्टर इस तालाब का अतिक्रमण हटवा सकता है. लंबी गहरी सांस लेते रहिए. आज योग दिवस भी है. उमराव बाई इस तालाब की कहानी बता रही हैं.
तालाब खत्म हो चुका है. उसे भरकर लोगों ने घर बना लिए हैं. अब वही लोग प्राइवेट टैंकरों से पानी मंगवा रहे हैं. 300 रुपये एक टैंकर के दे रहे हैं. नगरपालिका यहां तीन दिन में एक बार पानी की सप्लाई करता है. अब आप बताएं. किसे समझाएंगे. सरकार को, प्रशासन को या लोगों को. तालाब भर कर लोग पानी खरीद रहे हैं.
मैं यह सब इसलिए बता रहा हूं कि अब चाहेंगे तो भी कुछ नहीं होगा. नीति आयोग भी कहेगा, प्रधानमंत्री भी कहेंगे, पानी के विशेषज्ञ भी कहेंगे लेकिन लोगों से लेकर सरकारों तक ने जो तालाब भरे हैं क्या वो अब वापस आ सकते हैं. पानी संकट का यही समाधान है कि उसका टीवी कवरेज हो सकता है. एक दिन टीवी कवरेज से भी आप ऊब जाएंगे. राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए टैंकर फ्री कर देंगे लेकिन टैंकर भी एक दिन सूख जाएंगे.
अब देखिए इस जगह का नाम है बस स्टैंड की तलाई. तलाई का मतलब तालाब ही तो होता है. 6 साल पहले तक लोग यहां तालाब देखा करते थे. अब यहां अतिक्रमण हो चुका है. शापिंग काम्पलेक्स बन चुका है. किसी ने नहीं सोचा कि बारिश का पानी ऐसी ही जगहों पर तो जमा होता है. जमीन के भीतर जाता है जो शहर के ही काम आता है. लेकिन पानी की जगह पर शहर बसेगा तो पानी कहां से आएगा. मीडिया के कवरेज से पानी नहीं आएगा. सरकार ने नियम बनाए हैं कि जलाशयों को नष्ट नहीं किया जा सकता है अब सरकार ही क्या अपने नियम उठाकर इन निर्माण को तोड़ सकती है. अगर वह पानी बचाने को लेकर गंभीर है तो एक इस तरह के सरकारी और प्राइवेट अतिक्रमण हटा कर दिखा दे. सरकार के दस्तावेज में यह जगह तालाब है. तो सरकार अपनी जगह वापस ले ले. तब आप यकीन कीजिए कि कोई सरकार पानी के संकट को दूर करने के लिए गंभीर है.
जिन लोगों को लगता है कि पानी को लेकर जागरूकता की कमी है वह बस इंटरनेट पर जल संकट लिखें. हज़ारों लेख मिलेंगे. उसे पढ़ें और जागरूक हो जाएं. फिर बताएं कि जागरूक होने के बाद वे क्या करना चाहते हैं. क्या उनकी जागरूकता अतिक्रमण के नीचे दबे तालाबों को वापस ला सकती है. नहीं ला सकती है. याद रखिएगा प्रदूषित पानी पीने से भारत में हर दिन 550 लोग मर जाते हैं और साल में दो लाख लोग मर जाते हैं.
जफर मुल्तानी की रिपोर्ट का यह हिस्सा देखिए. यह रातड़िया तालाब है. इसके किनारे पर मजार भी है, मंदिर भी है. 48 बीघे में यह तालाब फैला था. एक हज़ार साल पहले बना था. तब आबादी कम थी मगर तालाब कितना बड़ा बनाया गया. अब आबादी ने तालाब ही खा लिया है. 48 बीघे का यह तालाब सिकुड़ गया है. यहां से अतिक्रमण तो हटाया गया है लेकिन सालों तक इसके पानी में नाले का पानी मिलता रहा. इस कारण इसका पानी अनुपयोगी हो चुका है. लोग पानी से निकलने वाली बदबू ही बर्दाश्त नहीं कर पाते. इसलिए यह झूठ है कि जागरूकता की कमी से यह संकट है. दरअसल जिन लोगों ने तालाबों पर कब्ज़ा किया वो काफी जागरूक लोग ही थे. उन्हें पता था कि आने वाले समय में इंसान व्हाट्सएप से जी जाएगा, पानी की ज़रूरत नहीं होगी इसलिए उसने बेकार तालाबों को भर कर घर बना लिए. इन पंक्तियों को समझने के लिए दो बार प्रोग्राम देखिएगा.
This Article is From Jun 22, 2019
जल संकट की अनदेखी क्यों?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जून 22, 2019 00:17 am IST
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Published On जून 22, 2019 00:17 am IST
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Last Updated On जून 22, 2019 00:17 am IST
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