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This Article is From Jul 09, 2015

व्यापमं घोटाले पर व्याप्त हंगामा, राज्यपाल भी घिरे

Reported By Ravish Kumar
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  • Updated:
    जुलाई 09, 2015 22:57 pm IST
    • Published On जुलाई 09, 2015 21:08 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 09, 2015 22:57 pm IST
मामला तो व्यापमं का ही है लेकिन एक प्रसंग सुनाना चाहता हूं। पत्रकार आलोक मेहता की किताब है जिसका नाम है राव के बाद कौन। 1993 में लिखी इस किताब में आलोक मेहता ने नरसिंहा राव के बाद संभावतित प्रधानमंत्रियों के बारे में लिखा है। 21 साल से इस किताब को सिर्फ इसी एक प्रसंग के कारण संभाल कर रखा है जो मैं आपको सुनाना चाहता हूं। जैसा लिखा है वैसा ही पढ़ रहा हूं।

1952 के पहले चुनाव में मध्य प्रदेश के रीवा की भीड़ भरी सभा में जवाहर लाल नेहरू ने अपनी ही कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार शिवबहादुर सिंह के विरुद्ध आह्वान किया था कि यह धोखे से पार्टी के उम्मीदवार बन गए हैं और इन्हें वोट मत दीजिए। तत्कालीन विंध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अवधेश प्रताप सिंह के बेटे गोविन्द नारायण सिंह आज भी उस दिन को याद करते हुए कहते हैं कि मंच पर ही पंडित नेहरू के कान में किसी व्यक्ति ने शिव बहादुर सिंह पर धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी के कारण 1951 में न्यायालय से सुनाई गई तीन वर्ष की सज़ा का उल्लेख कर दिया था। मामला ऊंची अदालत में विचाराधीन था लेकिन नेहरू जी यह सब सुनते ही उबल पड़े और उन्होंने तत्काल अपनी गलती स्वीकारते हुए पार्टी प्रत्याशी को हरवा दिया।

मैं अपनी तरफ से इस तथ्य की पुष्टि नहीं कर सकता लेकिन भारतीय राजनीति का शायद यह अकेला उदाहरण होगा कि टिकट मिलने के बाद उसके प्रचार के लिए आया राष्ट्रीय नेता मंच पर जाकर कह दे कि हमसे गलती हुई है, आप हमारे उम्मीदवार को वोट मत दीजिएगा। यह उदाहरण मैंने नेहरू को देवता बनाने के लिए नहीं दिया है बल्कि उन्हें याद दिलाने के लिए दिया है जो राजनीति में इन दिनों ख़ुद को देवता समझते हैं।

शिवबहादुर सिंह के बेटे अर्जुन सिंह बाद में मध्य प्रदेश की कांग्रेस की राजनीति के धुरी बनते हैं लेकिन यह एक अलग और लंबी कहानी है। अब मैं आपको यह तस्वीर दिखाता हूं, इस तस्वीर में जो छोटे कद के दूसरे शख्स हैं वो आनंद राय हैं जो व्यापम मामले में अपने स्तर पर चीज़ों को उजागर कर रहे हैं। आनंद राय की नौजवानी का अच्छा खासा हिस्सा राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सदस्य के रूप में गुज़रा है। इंदौर भाजपा के मेडिकल सेल के भी अध्यक्ष रहे हैं। लेकिन आज यह स्वयंसेवक अपनी सुरक्षा को लेकर डरा हुआ है और जिस संगठन की शाखा से राष्ट्र प्रथम के मंत्र को सीखा उसके प्रमुख ज़ेड प्लस की सुरक्षा में। ज़ेड प्लस लेने में कोई बुराई नहीं है लेकिन क्या आपने आरएसएस के बड़े नेताओं को यह कहते सुना है कि हमें आनंद जैसे स्वयंसेवक पर गर्व है जिसने राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत के आगे जान की भी परवाह नहीं की। बीजेपी के नेताओं ने आनंद राय को कांग्रेस का एजेंट बताया है। उम्मीद है जो मीडिया के बाकी हिस्सों की तरह आनंद राय आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य और ऑर्गेनाइज़र के कवर पर भी नज़र आएंगे। आनंद के साथ दूसरे व्हीसल ब्लोअर भी अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। इतने हंगामे के बाद भी सरकार ने उनकी चिन्ता दूर नहीं की है।

मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव का क्या होगा। वे व्यापमं घोटाले में आरोपी नंबर दस बनाए गए थे लेकिन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह कह कर उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी कि पद पर रहते हुए उनसे पूछताछ नहीं की जा सकती क्योंकि उन्हें संवैधानिक कवच प्राप्त है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्यपाल और केंद्र को नोटिस जारी कर चार हफ्तों में जवाब मांगा है। प्रधानमंत्री देश से बाहर हैं इसलिए यह मसला उठ खड़ा हुआ है कि उनके आने तक राज्यपाल के बारे में निर्णय का इंतज़ार किया जाए या तुरंत कोई कदम उठाया जाए। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात भी की है। कांग्रेस कहती रही है कि बीजेपी राज्यपाल को क्यों नहीं हटा रही है। कांग्रेस अब कह रही है कि राज्यपाल को खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए। मोदी सरकार ने यूपीए के दौर में बने कई राज्यपालों को हटा दिया था।

कुछ पर भ्रष्टाचार के आरोप भी बताये गए थे लेकिन रामनरेश यादव को नेहरू की 125वीं जयंती के लिए बनी समिति का सदस्य भी बनाया है। तब बीजेपी को लगता था कि रामनरेश यादव को हटाया गया तो शिवराज सिंह पर भी इस्तीफे का दबाव बढ़ सकता है। राज्यपाल ने इफ्तार का आयोजन किया था जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आमंत्रित थे मगर नहीं गए। कांग्रेस मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांग रही है जिसके जवाब में मध्य प्रदेश के गृहमंत्री बाबू लाल गौर ने कहा है कि अर्जुन सिंह के समय भोपाल गैस कांड में पांच हज़ार लोग मरे थे तब क्या उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने व्यापमं और इससे जुड़ी संदिग्ध मौत की जांच सीबीआई को सौंप दी है। सीबीआई से दो हफ्ते में पूछा है कि बताये कि मामले की निगरानी कोर्ट करे या सीबीआई ही। इस बीच मध्य प्रदेश में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से जुड़ी एक और परीक्षा डीमेट को लेकर विवाद हो रहा है। आरोप लग रहे हैं कि बड़े अफसरों और जजों के बच्चों को पैसे लेकर डॉक्टरी की सीट दी गई है। 12 जुलाई को डीमेट के इम्तहान होने वाले हैं।

लेकिन 23 जून को रिकॉर्ड किए गया एक ऑडियो सामने आया है जिसमें डीमेट के लिए 40 लाख रुपये तक की सौदेबाज़ी की बातचीत हो रही है। ये टेप जबलपुर हाईकोर्ट को भेजा जा चुका है। अदालत को लगा कि दलाल अभी भी सक्रिय हो सकते हैं इसलिए कई सख्त निर्देश भी दिये हैं। अदालत ने कहा है कि राज्य में उन सभी 9 जगहों पर हाई रिज़ोल्‍यूशन के स्कैनर लगाये जाएं जहां इम्तहान होंगे। इन स्कैनर से कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लेकर जाना मुश्किल होगा। ओएमआर शीट की स्कैन की हुई कॉपी सेफ कस्टडी में रखी जाएगी।

इस बीच गुरुवार को मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने राज्य के सभी अख़बारों में खास विज्ञापन दिया है। व्यापमं ने अपना ऐप लॉन्‍च किया है। इस विज्ञापन में लिखा है कि व्यापमं के ऐप का शुभारंभ माननीय मंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता जी के द्वारा 9 जुलाई 2015 को संपन्न होगा। सुबह का विज्ञापन है तो संपन्न हो भी चुका होगा। हमने भी गूगल के प्ले स्टोर में जाकर व्यापमं ऐप डाउनलोड कर लिया। ऐप को क्लिक किया तो अंदर कई और जानकारियां मिली। जैसे एप्लीकेशन स्टेटस जहां आप अपने एप्लीकेशन के बारे में जानकारी ले सकते हैं। फिर सर्च एप्लीकेशन, टेस्ट एडमिट कार्ड वगैरह, एग्ज़ाम के शेड्यूल की भी जानकारी है। इसपर क्लिक किया तो पता चला कि साल 2007 से इस साल 2015 तक प्रवेश परीक्षाओं और नौकरियों में भर्तियों की जानकारी भी है जिन्हें लेकर विवाद हो रहा है।

मैं कई बार कहता हूं ई गर्वनेंस या ऐप पारदर्शिता के न तो उपकरण हैं न उदाहरण लेकिन कितना दिलचस्प है व्यापमं का ऐप खासकर उसी दिन जब इसके घोटालों की जांच सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौंप दी।

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