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This Article is From Feb 17, 2015

स्वाइन फ्लू, इलाज और सरकारी तंत्र

Ravish Kumar, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    फ़रवरी 17, 2015 21:46 pm IST
    • Published On फ़रवरी 17, 2015 21:44 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 17, 2015 21:46 pm IST

नमस्कार मैं रवीश कुमार, 624 लोगों की मौत हो गई है और 9311 मामले दर्ज हो चुके हैं। स्वाइन फ्लू गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र के कस्बों से लेकर ज़िलों तक से रिपोर्ट होने लगा है। मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने एक उच्च स्तरीय बैठक भी बुलाई, लेकिन इससे पहले कि सरकारी सिस्टम हरकत में आए इतने लोगों की मौत लोगों के बेखबर रहने से हुई या सिस्टम ने उन्हें समय पर राहत नहीं दी। इसका हिसाब कब होगा और कौन करेगा। 2009 में स्वाइन फ्लू से 3000 लोगों की मौत हो गई थी।

15 फरवरी को राजस्तान में 11 लोगों की मौत हो गई। यहां तीन हज़ार के करीब लोगों को स्वाइन फ्लू हो चुका है। जोधपुर के नेशनल लॉ युनिवर्सिटी को 2 मार्च तक के लिए बंद कर दिया गया है क्योंकि एक छात्र को स्वाइन फ्लू हो गया। पिछले 24 घंटे में मध्यप्रदेश और गुजरात में आठ-आठ लोग इस बीमारी से मरे हैं। भोपाल के जेपी हास्पिटल और प्राइवेट अस्तपाल के चार डॉक्टरों को स्वाइन फ्लू हो गया है।
दिल्ली में भी डॉक्टर इसकी चपेट में आए हैं, मगर दिल्ली और तमिलनाडु में भी स्वाइन फ्लू फैलता जा रहा है। हालांकि इन दो राज्यों में मरने वाले लोगों की संख्या कम है। शायद इसलिए कि लोग इस बीमारी के लक्षण और उपचार को लेकर जागरुक हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अगर हम सामान्य से सामान्य जन को इसके प्रति जागरूक कर दें तो काफी लोगों की जान बचाई जा सकती है। दिल्ली में 1500 लोगों को स्वाइन फ्लू हुआ है लेकिन सिर्फ सात लोगों की मौत हुई है। हम किसी की मौत की त्रासदी को गिनती से कम नहीं कर सकते हैं पर समय पर इलाज से जान बच सकती है। इस बीमारी से यह भी पता चल रहा है कि हमारे अस्पतालों की हालत कैसी है। डॉक्टर और दवाओं की उपलब्धता और खासकर आईसीयू की संख्या को लेकर भी सच्चाई सामने आ रही है। राजस्थान और गुजरात में केंद्र से टीम भेजी गई है। यानी पांच सालों में भी हम राज्य स्तर पर स्वाइन फ्लू से निपटने की मुकम्मल व्यवस्था नहीं कर पाए हैं।
आपको यहीं बता दें कि इसके लिए एक दवा आती है जिसका नाम है Oseltamivir, टैमी फ्लू। सरकार दावा करती है कि यह दवा हर जगह उपलब्ध है और इसकी कोई कमी नहीं है। इसी के साथ आपने टीवी स्क्रीन पर स्वाइन फ्लू मरीज़ों के साथ आजा रहे लोगों को नकाब लगाए देख रहे हैं। कुछ लोगों ने सामान्य नकाब लगाए हैं, जो चार रुपये का आता है। इससे कुछ खास लाभ नहीं होता है। आपको यह पता होना चाहिए कि इसके लिए एक खास मास्क होता है जिसे N-95 कहते हैं। हमारी सहयोगी हर्षा कुमारी सिंह ने आज यह मास्क लगाकर बताया कि एन 95 मास्क विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्रमाणित है। इसमें तीन परतें होती हैं। दूसरे मास्क में इस तरह की परतें नहीं होती हैं जिससे आपका सही तरीके से बचाव नहीं हो सकता है। तो आपको इस मास्क के बारे में विशेष रूप से ध्यान रखना है। 90 रुपया बहुत होता है पर फिर भी। एनडीटीवी की राजस्थान की संवाददाता हर्षा को लोगों ने बताया कि यह मास्क पर्याप्त संख्या में मिल भी नहीं रहा है। यहां तक कि सरकारी दुकान में भी मास्क नहीं मिल रहा था।

राजस्थान में जितने लोगों को स्वाइन फ्लू हुआ है उनमें से 6 प्रतिशत लोग मौत के शिकार हो गए हैं। डॉक्टरों ने बताया कि गांवों में लोग देर से इस बीमारी को लेकर सतर्क हो रहे हैं और जयपुर आते-आते बहुत देर हो जा रही है।

जैसे 70 साल के राम प्रसाद सैनी को चार दिनों से बुख़ार और ज़ुकाम था लेकिन जयपुर तब आये जब सांस की तकलीफ शुरू हो गई। जयपुर में डॉक्टरों ने हर्षा कुमारी सिंह को बताया कि पिछले 2 महीने में जितनी भी मौत हुई हैं उनमें से दो तिहाई भरती होने के 48 घंटे के भीतर हुई है यानी स्थिति खराब होने पर वे अस्तपाल आए हैं। गांवों में अस्पतालों की स्थिति कितनी खराब है आप अंदाज़ा कर सकते हैं क्योंकि बुनियादी जांच न होने के कारण ही मरने की स्थिति में लोगों को जयपुर लेकर भागना पड़ता होगा। सवाई मानसिंह राजस्थान का एक बड़ा अस्तपाल है लेकिन यहां स्वाइन फ्लू से निपटने में मदद के लिए सफदरजंग अस्पताल से तीन सदस्यों की टीम भेजी गई है।

बीमारी के लक्षण और बचाव के तरीकों पर भी हम प्राइम टाइम में बात करेंगे लेकिन स्वाइन फ्लू है या नहीं इसी की जांच में कई लोगों की जान जा सकती है। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त जांच की सुविधा है तो प्राइवेट लैब में आपको पांच हज़ार से नौ हजार तक लग सकता है। अभी तक यह साफ नहीं है कि सरकारी लैब में लोग ज्यादा जांच करवा रहे हैं या प्राइवेट लैब में।

आज के टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट छपी है कि सामान्य बुखार, गले में ख़राश और खांसी में लोग स्वाइल फ्लू के टेस्ट करवा रहे हैं। जबकि तेज़ बुखार, बदन दर्द, नाक बहने पर ही स्वाइन फ्लू का टेस्ट होता था। डॉक्टरों का कहना है कि हो सकता है कि कइयों को तेज़ बुख़ार न हो मगर स्वाइन फ्लू हो। दस्त भी अब स्वाइन फ्लू के लक्षणों में जुड़ गया है। इस बार लोग पहले ही टेस्ट करा लेना चाहते हैं क्योंकि वे जोखिम नहीं उठाना चाहते। सरकारी अस्पतालों में टेस्ट फ्री है। लेकिन सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्राइवेट लैब काफी महंगे हैं। हालत ये है कि दिल्ली के प्राइवेट लैब में देशभर से सैंपल आ रहे हैं। लाल पैथ लैब और क्वेस्ट में 5000 रुपये में टेस्ट हो रहा है तो डैंग और लाइफलाइन लैब में 9000 रुपये में। एसआरएल रेलीगेर में 7230 रुपये में टेस्ट हो रहा है। ये इतना महंगा क्यों है और रेट में अंतर क्यों है इस पर भी बात करेंगे प्राइम टाइम में।

आज हम इस बीमारी के बारे में तो बात करेंगे ही साथ ही यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि इस तरह की महामारी जैसी स्थिति में हमारा सरकारी तंत्र जिस तरह से कदम उठाता है पब्किल हेल्थ को लेकर, क्या वो काफी है, क्या वो उन पैमानों पर खरा उतरता है जिससे एक सामान्य आदमी की जान बच सके। तमाम दिशानिर्देशों के बावजूद ऐसी स्थिति में किसी को अस्पताल में दाखिला मिलना आसान होता है क्या। प्राइम टाइम
 

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रवीश कुमार, स्वाइन फ्लू, प्राइम टाइम, Swine Flu, Prime Time