भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खत्म हुई टेस्ट सीरीज़ में भारत का प्रदर्शन उम्मीद से कहीं बेहतर रहा। पहले दो टेस्ट गंवाने के बाद टीम आखिरी के दो टेस्ट मैच ड्रॉ कराने में कामयाब हुई। इस टेस्ट सीरीज़ के दौरान भारत को विराट कोहली के तौर पर एक आक्रामक कप्तान भी मिला जो महेंद्र सिंह धोनी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार है। लेकिन, इन सबके बीच टीम इंडिया की पुरानी मुश्किलें अपनी जगह बनी हुई हैं। एक नज़र टीम इंडिया की पांच मुश्किलों पर-
1. सलामी जोड़ी पर सवाल-
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार टेस्ट मैचों की सीरीज़ में भारतीय बल्लेबाज़ों का प्रदर्शन शानदार जरूर रहा, लेकिन आठ पारियों में एक बार भी भारतीय टीम की सलामी जोड़ी शतकीय भागीदारी नहीं निभा पाई। मुरली विजय ने पूरी सीरीज़ के दौरान बल्ले से जोरदार खेल दिखाया। चार टेस्ट मैच की आठ पारियों में वह पांच बार 50 के पार पहुंचे और इसमें से एक बार तो उन्होंने शतक भी ठोका।
लेकिन, दूसरे छोर पर शिखर धवन तीन टेस्ट मैच की छह पारियों में महज 167 रन बना पाए। इसमें एक पारी के अगर 81 रनों को घटा दें तो पांच पारियों में उनके बल्ले से महज 86 रन निकले। चौथे टेस्ट में धवन की जगह लोकेश राहुल को मौका जरूर मिला, और उन्होंने शतक बनाया लेकिन लोकेश राहुल और मुरली विजय सलामी जोड़ी नाकाम रही क्योंकि मुरली खाता भी नहीं खोल पाए।
2. मिडिल ऑर्डर में झोल-
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मौजूदा सीरीज़ में विराट कोहली ने मिडिल ऑर्डर की कमान पूरी तरह से अपने कंधे पर उठाए रखा। चार टेस्ट मैच की आठ पारियों में चार शतक की मदद से 692 रन उन्होंने बनाए। ऑस्ट्रेलिया में किसी भारतीय बल्लेबाज़ का एक सीरीज़ में सर्वाधिक स्कोर है।
उनके अलावा अजिंक्य रहाणे ने भी चार टेस्ट मैचों की सीरीज़ में 399 रन बनाए। इन दोनों के अलावा टीम इंडिया को मिडिल ऑर्डर के बल्लेबाज़ों ने मायूस किया। चेतेश्वर पुजारा और रोहित शर्मा मिले मौके का पूरा फायदा नहीं उठा पाए, जबकि सुरेश रैना सिडनी टेस्ट की दोनों पारियों में बिना खाता खोले ही आउट हुए। महेंद्र सिंह धोनी के संन्यास लेने के बाद टेस्ट मैचों में मिडिल ऑर्डर के बल्लेबाज़ों पर दबाव बढ़ेगा।
3. औसत तेज गेंदबाज़ी
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ सीरीज़ के लिए टीम इंडिया में इस बार ईशांत शर्मा, उमेश यादव, मोहम्मद शमी, वरुण एरॉन और भुवनेश्वर कुमार के रूप में पांच गेंदबाज़ शामिल थे। लेकिन, इन गेंदबाज़ों में से कोई भी ऑस्ट्रेलिया में अपनी तेजी और लाइन लेंथ से प्रभावित नहीं कर सका। शमी ने सिडनी टेस्ट की पहली पारी में जरूर पांच विकेट लिए, लेकिन भारत के तेज गेंदबाज़ों का प्रदर्शन औसत से बेहतर नहीं हो पाया।
भुवनेश्वर कुमार न तो फिट दिखे और न ही तेज गेंदबाज़, जबकि उमेश यादव और वरुण एरॉन तो बिना लाइनलेंथ की गेंदबाज़ी के चलते बार-बार पिटते नजर आए। ईशांत शर्मा कहने को टीम के सबसे अनुभवी गेंदबाज़ हैं, लेकिन अनुभव उन्हें कुछ सिखा नहीं पा रहा है। यही वजह है कि सीरीज़ में टीम इंडिया महज दो बार ऑस्ट्रेलियाई पारी को ऑल आउट कर सकी। सीरीज़ के बाद कप्तान विराट कोहली ने भी कहा कि ऐसी गेंदबाज़ी से सीरीज़ नहीं जीते जा सकते।
4. स्पिनरों का अकाल
स्पिनर हमेशा से भारतीय गेंदबाज़ी की जान माने जाते थे, लेकिन लग रहा है कि वो दौर अनिल कुंबले के साथ ही बीत चुका है।
हरभजन सिंह ने उस परंपरा को थोड़े समय के लिए जरूर जारी रखा, लेकिन टीम इंडिया को अब तक प्रभावी स्पिनर नहीं मिल पाया है। आर अश्विन की गेंदबाज़ी में स्थिरता का अभाव है और समय के साथ वे भी अपनी मारक क्षमता नहीं बढ़ा पाए हैं।
कर्ण शर्मा को जरूर सीरीज़ में मौका मिला, लेकिन वो अपनी लेग ब्रेक से प्रभावित नहीं कर पाए। एक ओर जहां नेथन लॉयन सीरीज़ में ऑस्ट्रेलिया के लिए मैच विनर गेंदबाज़ के तौर पर उभरे वहीं भारतीय स्पिन गेंदबाज़ औसत ही नजर आए।
5. नंबर-7 की टेस्ट रैंकिंग
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ गंवाने के बाद भारत की टेस्ट रैंकिंग सात हो गई है। यानि भारत टेस्ट खेलने वाले देशों में केवल वेस्टइंडीज़, बांग्लादेश और जिंबाब्वे से बेहतर स्थिति में है।
वेस्टइंडीज़ क्रिकेट एक तरह से अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है, बांग्लादेश के पास पैसे और सुविधाओं का अभाव है जबकि जिंबाब्वे की टीम टेस्ट की सबसे कमजोर टीम में है। भारत इन्हीं तीनों टीम से आगे है।
अगले कई महीनों तक टीम इंडिया को कोई टेस्ट सीरीज़ भी नहीं खेलनी है, ऐसे में भारत के सामने रैंकिंग बेहतर करने का मौका भी जल्दी नहीं है। वैसे 20 विकेट झटकने वाले गेंदबाज़ों के अभाव में टीम इंडिया अपनी रैंकिंग को बेहतर भी नहीं कर पाएगी।