तमिलों के दिल जीतने चली BJP के लिए सेंगोल का अर्थ कुछ अलग ही है...

जब प्रधानमंत्री नई संसद का उद्घाटन करते हुए ऐतिहासिक सेंगोल (राजदंड) ग्रहण करेंगे, तो यह न केवल इतिहास को फिर देखने का प्रयास होगा, बल्कि तमिलों के बीच पहुंच बनाने के लिए उनकी पार्टी और सरकार के प्रयास को भी बढ़ावा देगा. माना जा रहा है कि सत्ता के ऐतिहासिक प्रतीक सेंगोल को नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास रखा जा सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिल गौरव का गाहे-बगाहे आह्वान करने और तमिल भाषा की महिमा का बखान करने का कोई मौका कभी नहीं छोड़ते. वह अक्सर वेष्टि पहनकर तमिल तिरुक्कुरल की सराहना करते हैं, तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती के 'एकजुट और मज़बूत भारत' के सपने को अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा बताते हैं, और उन्होंने 3,000 साल पुराने तमिल वाक्यों को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र में अपने संबोधन का अहम हिस्सा भी बनाया.

लेकिन जब वह रविवार को राजधानी दिल्ली में नई संसद का उद्घाटन करते हुए 24 अधीनम् (मठ) प्रमुखों की ओर से ऐतिहासिक सेंगोल (राजदंड), जिसे 1947 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेज़ों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया था, प्राप्त करेंगे, तो यह न केवल इतिहास को फिर से देखने का प्रयास होगा, बल्कि तमिलनाडु के लोगों के बीच पहुंच बनाने के लिए उनकी पार्टी और सरकार के प्रयास को भी बढ़ावा देगा. माना जा रहा है कि सत्ता के ऐतिहासिक प्रतीक सेंगोल को नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास रखा जा सकता है.

यह पहला अवसर नहीं है, जब BJP ने अधीनम् तक पहुंच बनाई है. अधीनम् मूल रूप से शैव संप्रदाय के हैं, जो पारम्परिक रूप से पूजा के तमिल स्वरूप के लिए समर्पित हैं और जिनकी उपासना में तमिल अनुष्ठान और तमिल भजन शामिल रहते हैं. पिछले दो सालों में BJP की तमिलनाडु इकाई ने मदुरै और धर्मपुरम में अधीनम् की मांगों का समर्थन किया है, जो द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) सरकार पर उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने या उनकी पारम्परिक प्रथाओं में अड़ंगा लगाने का आरोप लगाते रहे हैं. एक ओर, BJP-नीत केंद्र सरकार तमिलनाडु में अपनी पहुंच को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से काशी-तमिल संगमम् जैसे आयोजन करती रही है, ताकि उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंध स्थापित किए जा सकें, वहीं संघ परिवार का लक्ष्य भी राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता पर ज़ोर देना रहा है, जिसके केंद्र में तमिल संत और अध्यात्मवाद रहें. चुनावी पहलू से भी BJP के लिए 2024 के आम चुनाव में प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए दक्षिणी राज्यों तक पहुंच बनाना काफी अहम है.

एक ओर जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), विशेष रूप से तमिलनाडु में, शैव और वैष्णव मठों को 'हिन्दू' के नाम पर एक साथ लाने का प्रयास कर रहा है, और मंदिर प्रशासनों की वित्तीय तथा मंदिरों के उत्सव आयोजित करने में अधिक स्वायत्तता की मांग का समर्थन कर रहा है, वहीं वह उस भाषाई विवाद का समाधान ढूंढने की भी कोशिश कर रहा है, जिसमें हिन्दी को थोपे जाने की बहस अक्सर होती रहती है.

सेंगोल ने वर्ष 1947 में सत्ता हस्तांतरण को परिभाषित किया था.

देश के सबसे पुराने, लगभग 500 वर्ष पुराने, शैव मठों में से एक तिरुववदुतुरई अधीनम्, जिसके मंदिर और संपत्तियां तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों में मौजूद हैं, ने सेंगोल को लाकर दिया था, जब स्वतंत्रता सेनानी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इस परम्परा को अपनाने का सुझाव पंडित जवाहरलाल नेहरू को दिया था. इस राजदंड का इतिहास संगम युग से जुड़ा है, और लेखकों ने इसे चोल काल में नए राजा को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में उल्लिखित किया है. सोने से बने इस राजदंड का निर्माण चेन्नई के आभूषण-निर्माता तथा हीरा व्यवसायी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी एंड संस ने किया था. उस वक्त राजदंड को सौंपने के लिए मठ के तीन वरिष्ठ संतों और एक संगीतकार का प्रतिनिधिमंडल विशेष रूप से दिल्ली गया था.

अब इलाहाबाद से लाया यह राजदंड दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा है. तिरुववदुतुरई अधीनम् के वर्तमान महंत श्री ला श्री अम्बालवण देशिका परमाचार्य स्वामिगल ने इस कदम का पहले ही स्वागत करते हुए कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री को सेंगोल भेंट करना सम्मान की बात होगी. यह अहम है, क्योंकि तमिलनाडु में अधीनमों, विशेष रूप से तन्जावुर और मदुरै में और उसके आसपास, के अनुयायी काफी बड़ी संख्या में हैं, जिनमें विशेष रूप से गैर-सवर्ण पृष्ठभूमि के लोग शामिल हैं. लेखक और शिक्षाविद तथा केरल लोक सेवा आयोग (PSC) के पूर्व अध्यक्ष डॉ के.एस. राधाकृष्णन ने NDTV से बातचीत में कहा, "यह दोहराने जैसा है कि तमिलनाडु हमेशा से पवित्र भूमि रही है, जो अपनी परम्पराओं के प्रति कटिबद्ध रही है... यहां बने मंदिर इस भूमि के लोगों की भक्ति को दर्शाते हैं... और PM इसे समझते हैं..."

इसे लेकर सवाल भी उठते रहे हैं.

द्रविड़ विद्वान और लेखक के. तिरुनावुक्करासु ने कहा है कि प्राचीन समय में जब एक नए राजा का राज्याभिषेक किया जाता था, तो उसे प्रमुख महंत द्वारा 'सेंगोल' भेंट किया जाता था, जिसे उन दिनों सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में देखा जाता था. "प्रमुख महंत समारोह का संचालन करेगा... लेकिन लोकतंत्र में इसके लिए कोई जगह नहीं हो सकती है... इस तरह की प्रथाएं केवल वर्णाश्रम प्रथाओं (जाति विभाजन) को बढ़ावा देती हैं, जिनसे हमें दूरी बनानी चाहिए..."

द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) के नेता टी.के.एस. एलन्गोवन ने कहा है कि सेंगोल प्राप्तकर्ता या राजा को याद दिलाता है कि उसके पास न्यायपूर्ण तरीके से शासन करने का 'आनई' (आदेश) है. NDTV से बातचीत में उन्होंने कहा, "लेकिन लोकतंत्र में लोगों के पास अपनी इच्छा से सवाल करने की शक्ति होती है... वही शासक होते हैं... क्या हमारे पास कोई सम्राट है, जिसे सेंगोल दिया जाए...?"

बहरहाल, राधाकृष्णन ने यह भी कहा कि संसद में राजदंड का होना उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सांस्कृतिक एकता की घोषणा करना है. उन्होंने कहा, "...और भारत हमेशा से ऐसा ही रहा है... उत्तर से दक्षिण तक यहां एक ही संस्कृति है और हम युगों से एक ही रहे हैं, भले ही कुछ लोगों द्वारा विपरीत प्रचार किया जाता रहा हो... विविधता का मतलब मतभेद नहीं होता है..."

उन्होंने कहा, "...और एक शासक को सेंगोल उसके कर्तव्य याद दिलाने के लिए, विशेषकर अपने लोगों की बात सुनने के लिए, दिया जाता है... लोकतंत्र कई सदियों से हमारे राज्य शिल्प का अभिन्न अंग रहा है, जहां शासक हमेशा जनता की बात सुना करते थे... प्रधानमंत्री भी ऐसा करते रहे हैं... विपक्ष उनके खिलाफ घटिया शब्दों का इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन वह समझते हैं कि लोकतंत्र में ऐसा होता ही है..."

संस्कृति सचिव गोविंद मोहन ने बताया कि भारत की आज़ादी के बाद सेंगोल को सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू के पैतृक आवास 'आनंद भवन' में रखा गया था, और फिर उसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में भेज दिया गया था. उन्होंने बताया, "हमें यह पता लगाने के लिए तीन महीने तक शोध करनी पड़ी कि वास्तव में सेंगोल कहां है... इलाहाबाद में एक संग्रहालय के क्यूरेटर ने अंततः उसकी पहचान की, और फिर हमने उसके निर्माताओं वुम्मिदी बंगारू चेट्टी परिवार से ही यह पुष्टि करवाई कि वह वास्तव में वही है..."

आधिकारिक सूत्रों ने ज़िक्र किया कि कलाकार पद्मा सुब्रह्मण्यम ने सबसे पहले सेंगोल से जुड़ी ख़बरों की ओर ध्यान दिलाया था, जिसके बाद संस्कृति मंत्रालय काम पर लग गया. इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फ़ॉर आर्ट्स (IGNCA) के अध्यक्ष सच्चिदानंद जोशी ने बताया कि IGNCA के विशेषज्ञों ने इस पर गहन शोध किया. उन्होंने यह भी बताया कि बहुत-सी अहम, ऐतिहासिक घटनाएं उस वक्त दर्ज नहीं हो सकी थीं, उन्हें अब आर्काइव और आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज किया जा रहा है.

उन्होंने बताया, "हमने वर्ष 2017 से तमिल मीडिया रिपोर्टों को देखा कि कैसे स्वतंत्रता से कुछ ही पल पहले भारत सरकार ने अंग्रेज़ों से भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के लिए तमिलनाडु के चोल राजाओं के पवित्र सेंगोल-निहित मॉडल का पालन किया था... उस समय पावन तमिल पाठ तेवरम भी गाया गया था, जिसमें नेता को राष्ट्र पर भली प्रकार शासन करने का सुझाव दिया गया था..."

सेंगोल का अब सम्मान करना BJP द्वारा तमिलों तक पहुंच बनाने के इरादे के अनुरूप क्यों है...

वर्ष 2014 और 2019, दोनों बार तमिलनाडु ने अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (AIADMK) तथा द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) के पक्ष में भारी मतदान किया, और इसी कारण BJP तमिलनाडु में कई मोर्चों पर काम कर रही है, ताकि मुख्य रूप से अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित कर सके और साथ ही साथ DMK शासन की समस्याओं को उजागर कर सके, और 'गैर-पेरियावादी, गैर-ब्राह्मण, राष्ट्रवादी, पवित्र, मज़बूत, हिन्दू धार्मिकता' में विश्वास रखने वालों में BJP के प्रति बढ़ती रुचि या द्रविड़ पार्टियों से मोहभंग को तलाशा जा सके.

राधाकृष्णन का कहना था, "यहां के लोगों के लिए स्थानीय देवता और स्थानीय रीति-रिवाज़ बहुत अहम हैं... और यह हर तमिल को गौरवान्वित करने के लिए भी है कि उनकी विरासत का एक हिस्सा संसद को समृद्ध करेगा..."

वसुधा वेणुगोपाल NDTV से राजनीतिक पत्रकार के रूप में जुड़ी हैं... वह राजनैतिक गतिविधियों, प्रशासन, लिंग और पहचान पर ज़्यादा लिखती हैं...

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