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This Article is From Oct 13, 2016

बॉब डिलेन को नोबेल से शास्त्रीयता का चलन टूटा

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 13, 2016 23:24 pm IST
    • Published On अक्टूबर 13, 2016 23:24 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 13, 2016 23:24 pm IST
बॉब डिलेन को साहित्य का नोबेल मिलने से दुनिया के साहित्यकार हैरत में पड़ गए. पुरस्कार देने वाली संस्था स्वीडिश अकादमी ने भी उनके बारे में यह कहा है कि लोक गीतकार के रूप में डिलेन की लोकप्रियता के कारण उन्हें चुना गया. वैसे डिलेन लोक संगीत, पटकथा लेखक और अभिनेता के रूप में भी उतने ही लोकप्रिय रहे हैं.

विश्व साहित्य जगत में हैरत का कारण यह है कि आमतौर पर साहित्य का नोबेल ऐसे साहित्यकारों को मिलता आया है जिन्होंने अपनी कला की अभियक्ति के लिए जीवन की जटिलताओं को अपना विषय बनाया हो. पुरस्कार की घोषणाएं हुए अभी कुछ ही घंटे हुए हैं. साहित्य के क्षेत्र के आलोचक उनकी रचनाओं को नोबेल पुरस्कार के लिहाज से नए सिरे से जानेंगे समझेंगे. उनके बारे में नई नई बातें भी सामने आएंगी. हालांकि इसमें वक्त लगेगा. फिलहाल एक लोक कवि, लोक गीतकार या यों कहें कि लोक कलाकार के रूप में डिलॅन को मिले इस विश्व सम्मान का थोड़ा सा साहित्यिक विश्लेषण फौरन ही होना चहिए.

साहित्यिक रचना के मूल्यांकन की मुश्किल
कला ही ऐसा क्षेत्र बचा है जिसमें नापतोल के उपकरण नहीं बने. कला को परिभाषित करने में भी अपने अपने खयाल जैसी हालत है. फिर भी इस मौके पर साहित्यकार ऑस्कर वाइल्ड याद आते हैं. उन्होंने कला को कई तरह से परिभाषित किया. उन्होंने कला की एक परिभाषा यह दी कि जटिल की सरल अभिव्यक्ति कला है. और एक और जगह उनका कहना है कि कला वह है जो जीने का हौसला बढ़ाए. आइए इसी आधार पर डिलेन को दिए नोबेल पुरस्कार के फैसले के सही होने की वकालत करें.

डिलेन की लोकप्रियता बनी एक पैमाना
डिलेन की प्रतिष्ठा जब एक लोक कवि की ही है तो उनकी लोकप्रियता को क्या जांचना. यहां एक बात यह भी कही जा सकती है कि लोकप्रियता के लिए सबसे पहली शर्त संप्रेषणीयता है. और अगर संप्रेषणीयता सुरुचिपूर्ण हो तो क्या कहने. डिलेन गीत लिखने के भी हुरनमंद हैं. ऊपर से संगीत में दक्ष. यानी किसी साहित्यिक रचना के क्षैतिज विस्तार के सारे गुण डिलेन में स्वयंसिद्ध हैं.

डिलेन के विषयों की विविधता
मानव की दशा और राजनीति डिलेन के मुख्य विषय रहे हैं. दोनों ही जटिल विषय हैं. ऐसे विषयों को जिन्होंने लोक साहित्य का विषय बना दिया हो तो फिर ऑस्कर वाइल्ड के पैमाने से इसमें क्या शक रह जाता है कि उन्होंने जटिल बातों की सरल अभिव्यक्ति का एक कठिन काम किया.

जीने का हौसला बढ़ाने का पैमाना
मानवीय संबंधों के क्षीण होते जाने के इस काल में जीने की मूलभूत इच्छा यानी जिजीविषा के क्षीण होने का भी संकट है. ऐसे में अगर कोई कलाकार लोकप्रियता के शिखर पर रहा हो तो ऑस्कर वाइल्ड के दूसरे पैमाने पर विश्वस्तरीय साहित्यकार का खिताब पाने का वह खुदबखुद सुपात्र हो जाता है.

अब तक के चलन से अलग
दुनिया के मशहूर अखबारों में अब तक जो रिपोर्ट आई हैं उनमें कहा गया है कि इस पुरस्कार की पात्रता के लिए जिस तरह की शास्त्रीयता का अब तक चलन रहा है, इस बार वह चलन टूटा है. इस बारे में क्या यह नहीं कहा जा सकता कि अगर खुद इस पुरस्कार को ही मौलिक रचना की कसौटी पर कस कर देखें तो पहली बार इस पुरस्कार के चयन में एक नवीनता दिखी है जो किसी रचना का पहला गुण है.

भारतीय आलोचकों के लिए चुनौती
साहित्य के क्षेत्र के भारतीय समालोचक ज्यादातर विशिष्ट वर्ग के लिए रचे जाने वाले साहित्य की समालोचना करते हैं. लोक काव्य या लोक गीत या लोक संगीत को ये विशिष्ट आलोचक साधारण आलोचकों के लिए छोड़े हुए हैं. इन कथित साधारण आलोचकों की मुश्किल भाषा को लेकर है. अब जब डिलेन की रचनाओं के अनुवाद भारतीय भाषाओं में होंगे तभी उन्हें समालोचना का मौका मिलेगा. देश का माहौल इस समय ऐसा है नहीं कि जल्द ही ऐसे विश्व साहित्य का अनुवाद हो पाए. हो भी पाए तो उसके प्रकाशन की मुश्किल अलग से है. फिर भी भारतीय साहित्य जगत में जिस तरह का संकोच और सन्नाटा है उसमें हो सकता है कि कोई अनुवादक इस काम पर लग ही जाए. अगर डिलेन का ढंग से अनुवाद हो पाया तो ये ताज़गीभरी बात होगी.

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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