2014 के चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश में सड़कों पर घूमने का मौका खूब मिला। लखनऊ हमारा बेस रहा, लेकिन फैजाबाद अयोध्या, गोरखपुर, कानपुर, बनारस, जौनपुर की सड़कों पर हमारा दिन निकल जाता था। एक घंटे के कार्यक्रम 'बड़ी खबर' के लिए उम्मीदवारों से बात करना, इलाके की जनता की सोच को समझना शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने में समय कब बीत जाता पता नहीं लगता था। उत्तर प्रदेश में हमने अपने कार्यक्रम में खास महिलाएं इन इलाकों में किस तरह से कमाई करती हैं उस पर केंद्रित रखा। अपने देश को जानने समझने का इससे बेहतर मौका शायद मेरे लिए कोई और नहीं रहा।
कल जब राहुल गांधी ने संसद में अमेठी का जिक्र किया तो यादें फिर ताजा हो गईं। सुबह लखनऊ से चलकर जब दोपहर हम अमेठी पहुंचे तो पहले आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कुमार विश्वास के यहां पहुंचे। उन्होंने आसानी से समय दिया था, फिर स्मृति ईरानी, जिन्होंने काफी इंतजार के बाद थोड़ा समय दिया और राहुल गांधी से इंटरव्यू के लिए सोचना भी व्यर्थ था...वे उस दिन वहां थे भी नहीं.......
कुमार विश्वास ने हमारी टीम को अपने यहां जोर देकर खाना खिलाया कि अमेठी में खाने की जगह नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि ठीक-ठाक ढाबा भी नहीं मिलने वाला, वाकई में कुछ ऐसा ही था, चाय के साथ पकौड़े या चाट पापड़ी के कुछ ठेले ही हमें उन सड़कों पर नजर आए जहां से हम गुजरे, यहां महिलाओं के सेल्फ हेल्प ग्रुप की खूब सराहना होती है। हम एक मसाला फैक्ट्री में कई महिलाओं से मिले, जो मोदी लहर से तब काफी प्रभावित थीं। राहुल के लिए खतरे की घंटी बज रही थी, वे जीत ज़रूर गए, लेकिन जीत का मार्जन घट गया।
अमेठी ही एक जगह थी, जहां शौचालय नहीं मिला और खेतों में जाना पड़ा। शाम को रायबरेली पहुंचकर ही कुछ खाने की दुकानें नजर आईं। ग्रामीण इलाके के बाद विकास का आभास हुआ। बहरहाल, राहुल ने गुरुवार को फिर अमेठी की सड़क की याद दिला दी।
ये सवाल भी उठा कि 1966 से अमेठी कांग्रेस पार्टी की फर्स्ट फैमिली की राजनीति गढ़ रही है। पंडित जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी, संजय गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल.....सब संसद में इसकी वजह से पहुंचते रहे हैं। पीढ़ियों से एक परिवार की राजनीति को ये सीट सींचती आई है, लेकिन विकास के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं। अब प्रधानमंत्री मोदी की नजर इस पर पड़ चुकी है।
2022 तक 100 स्मार्ट सिटी के वादे की फेहरिस्त में अमेठी भी आ गई है। फूड पार्क बन जाता तो इस इलाके के लोगों का जीवन सुधर जाता, जिनमें सुल्तानपुर,फैजाबाद ,रायबरेली ,बाराबंकी,लखनऊ,प्रतापगढ़,अंबेडकरनगर और जौनपुर आता है।
200 करोड़ के प्रोजेक्ट में उत्तर प्रदेश को आलू ,गेहूं, चीनी, दूध के सबसे बड़े उत्पादक की श्रेणी में ला खड़ा करता। अब किस को इल्जाम दें, जिन्होंने बरसों यहां ज्यादा कुछ नहीं किया या फिर उन्हें जो सियासी फायदे के कारण एक प्रोजेक्ट को रोक रहे हैं.....
This Article is From May 08, 2015
निधि का नोट : अमेठी की चुनावी यादें...
Nidhi Kulpati
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Updated:मई 08, 2015 16:13 pm IST
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Published On मई 08, 2015 16:01 pm IST
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Last Updated On मई 08, 2015 16:13 pm IST
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