तो आखिर देवेंद्र फडणवीस को अपनी मंजिल मिल ही गई है. पिछली बार वो महज 80 घंटे के लिए ही बतौर मुख्यमंत्री सत्ता पर काबिज रह पाए. लेकिन इस अपमान के तीन साल बाद उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी उद्धव ठाकरे को बाहर का रास्ता दिखा दिया. 51-वर्षीय उद्धव ठाकरे ने फेसबुक पर अपने इस्तीफे का ऐलान किया और इसके बाद व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को अपना त्याग-पत्र सौंप दिया.
ठीक उसी वक्त बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ लड्डू खाते हुए देवेंद्र फडणवीस फोटो खिंचवा रहे थे. बदला हमेशा ही मीठा होता है.
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अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चलती रही तो वह एकनाथ शिंदे के साथ मुख्यमंत्री के रूप में लौटेंगे. एकनाथ शिंदे ने अपनी पार्टी शिवसेना के अंदर उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत का नेतृत्व किया था. एकनाथ शिंदे की कवायद इतनी तेज थी कि महज आठ दिनों में शिवसेना के बागी विधायकों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई...यानी ये आंकड़ा 20 से 39 तक पहुंच गया. इस मजबूत संख्या के बदौलत ही उद्धव ठाकरे से मुख्यमंत्री पद छीन लिया गया औऱ शायद अब उन्हें अपनी पार्टी में भी इस बगावत की कीमत चुकानी पड़ेगी. राजनीति में एक हफ्ता काफी लंबा समय होता है.
एकनाथ शिंदे को कामयाब बनाने में देवेंद्र फडणवीस का बड़ा हाथ था. देवेंद्र फडणवीस ने यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास किए कि बगावत कहीं थकने न लग जाए. भाजपा नेता ने शिवसेना के बागी विधायकों की यात्रा योजनाओं को अन्तिम रूप दिया, पार्टी के बॉस अमित शाह के साथ परामर्श करने के लिए मुंबई से दिल्ली के लिए उड़ान भरी, शीर्ष वकील हरीश साल्वे के साथ ब्रीफिंग में लगे रहे और राज्यपाल के लिए लगातार ही एक लाइन खुली रखी. गौरतलब है कि राज्यपाल ने आज फ्लोर टेस्ट का आह्वान किया था. उद्धव ठाकरे के 15 विधायकों के समूह ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. बीती रात नौ बजे के कुछ देर बाद जजों ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया. 9:30 बजे तक उद्धव ठाकरे अपने पद से इस्तीफा देने के लिए फेसबुक पर लाइव थे.
![bu91uvfo](https://c.ndtvimg.com/2022-06/bu91uvfo_uddhav-thackeray-maharashtra-governor-650-_650x400_30_June_22.jpg)
एकनाथ शिंदे और उनका समूह गोवा के एक पांच सितारा होटल में हैं. गोवा भाजपा के पसंदीदा गंतव्यों में से तीसरा है जिसे उन्होंने मुंबई छोड़ने के बाद चुना है (कल रात चार्टर्ड फ्लाइट से गोवा पहुंचने से पहले उन्होंने सूरत और गुवाहाटी मे कैम्प किया था). एकनाथ शिंदे आज राज्यपास से मुलाकात करेंगे ताकि वे देवेंद्र फडणवीस को समर्थन करने के अपने गुट की योजनाओं को साझा कर सकें. शिंदे गुट और भाजपा विधायकों के साथ देवेंद्र फडणवीस के पास अपने गृह राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल शुरू करने के लिए पर्याप्त संख्या होगी.
जाहिर है कि जिस दरवाजे से वो बाहर निकले थे उसी दरवाजे से वे फिर एक बार अंदर आ गए हैं. 2019 में चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा था कि शिवसेना का भाजपा के साथ गठबंधन समाप्त हो जाएगा. उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री का पद प्रत्येक पार्टी को बराबर-बराबर समय के लिए आवंटित नहीं किया जा रहा था जैसा कि चुनाव से पहले दोनों दलों के बीच सहमति हुई थी. लेकिन उस समय शिवसेना की तुलना में भाजपा कहीं ज्यादा मजबूत थी और उसके पास नई शर्तों की मांग करने की ताकत थी. शरद पवार ने शिवसेना और कांग्रेस के साथ एक नया गठबंधन बनाने के प्रयास शुरू किए. लेकिन देवेंद्र फडणवीस ने शरद पवार के भतीजे अजीत को “परिवार वाली पार्टी” के एक वर्ग से नाता तोड़ने के लिए मना लिया. राज्यपाल भाजपा को सत्ता में लाने में मदद करने के लिए दौड़ पड़े औऱ उन्होंने सुनिश्चित किया कि देवेंद्र फडणवीस सबेरे सबेरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लें. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शरद पवार को राजनीति में सबसे अच्छे निगोशियेटरों में से एक माना जाता है. उनके भतीजे ने उनसे सुलह कर ली और फडणवीस सरकार इतिहास बन गई. और वो भी महज 48 घंटे के अंदर ही.
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उद्धव ठाकरे का इस्तीफा भाषण काफी नपातुला था. उन्होंने एकनाथ शिंदे का उपहास "शिवसेना की मदद से उठने वाले एक ऑटोवाला" के रूप में की तो एक परिपक्व राजनेता की तरह उन्होंने कहा "मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं," औऱ फिर ये भी कहा कि, "लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण होता है." राज्यपाल के लिए भी एक व्यंग्य था. उन्होंने राज्यपाल को धन्यवाद देते हुए कहा,"लोकतंत्र का इतना सम्मान किया कि उन्होंने केवल 24 घंटों में ही फ्लोर टेस्ट का आह्वान किया."
उन्होंने शिव सैनिकों के अपने समर्थकों से कहा कि वे हिंसक प्रदर्शनों में शामिल न हों जब शिंदे गुट 'मंत्रालय' (सचिवालय) में महत्वपूर्ण कार्य शुरू करने के लिए मुंबई लौटती है. शिंदे के साथ विभागों पर काम किया गया है.
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बागी शिव सैनिक भाजपा को भारत के सबसे अमीर राज्य में सत्ता दिलाएंगे. उत्तरप्रदेश के बाद सबसे ज्यादा सांसद लोकसभा में महाराष्ट्र ही भेजता है. महाराष्ट्र लोकसभा में 48 सांसद भेजता है. इस सियासी उथल-पुथल के मद्देनज़र फिलहाल उद्धव ठाकरे का पूरा ध्यान पार्टी कैडर और मतदाताओं की प्रतिक्रिया का आकलन करने पर होगा. हकीकत तो यह है कि उनकी पार्टी उनसे दूर हो गई है और इसका अहम कारण यह है कि वह पिछले कुछ महीनों से दूर के नेता थे. मंत्रियों या विधायकों से मिलने के लिए वो या तो अनिच्छुक थे या फिर असमर्थ...लेकिन ये भी इस बात पर निर्भर हुआ करती थी कि आप किससे बात करते हैं. उन्होंने और उनके बेटे आदित्य, जो एक युवा मंत्री थे, दोनों ने कहा है कि वह गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के बावजूद सरकार और पार्टी के लिए उनसे जो कुछ भी संभव था वो उन्होंने किया. हालाँकि, विद्रोहियों का कहना है कि मुलाकात के लिए उनका अनुरोध महीनों तक लटका रहता है और आमतौर पर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आती थी. हाल के महीनों में शरद पवार ने अपनी सरकार की निजी समीक्षा में इस तीखी नाराजगी की ओर इशारा किया था.
खास तौर से, उद्धव ठाकरे के पास मुंबई की शाखाओं में सेना की सेकेंडरी शक्ति संरचनाएं ही बची हुई है. तीन भावनात्मक सार्वजनिक अपीलों के बावजूद उद्धव ठाकरे अपने विद्रोहियों को वापस न ला सके. सियासत की ये तस्वीर ऐसी है कि एक बड़े नेता को उसके अपने ही लोगों ने धोखा दिया और ये सारी घटना बॉलीवुड के ट्रैजेडी फिल्म के लिए निस्संदेह एक चुनौती है. ठाकरे ने खुद को एक परिवार का मुखिया भी कहा है जिसे उनके बिगड़ैल बच्चों ने ही निराश किया है.
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यह सारे मुद्दे सितंबर में बॉम्बे नगर निगम (बीएमसी) चुनाव के दौरान छाए रहेंगे. बीएमसी देश में अपनी तरह की सबसे अमीर निकाय है. यह वर्तमान में शिवसेना द्वारा नियंत्रित है और उद्धव ठाकरे को यह सुनिश्चित करना होगा कि कम से कम बीएमसी में किसी तरह का बदलाव न हो तभी वे महाराष्ट्र की राजनीति में प्रासंगिक बने रह सकते हैं. उद्धव ठाकरे के एक करीबी सूत्र, जिनसे मैंने संकट के दौरान कई बार बात की, ने कहा कि वह बीएमसी को छोड़ने के मूड में नहीं हैं. उन्होंने दावा किया, "यह अब बालासाहेब की विरासत की लड़ाई है और उद्धव साहब हार नहीं मानेंगे. वह भाजपा के साथ अंत तक लड़ने के लिए तैयार हैं जो महाराष्ट्र में ठाकरे के नाम और शिवसेना को नष्ट करने की कोशिश कर रही है."
उद्धव ठाकरे ने शरद पवार से कहा है कि उनकी टीम एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में रहेगी. अपने भाषण में उन्होंने शरद पवार और सोनिया गांधी दोनों का नाम लिया और उनके समर्थन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया.
टीम ठाकरे का कहना है कि एकनाथ शिंदे का ये आरोप कि शिवसेना ने "हिंदुत्व के साथ विश्वासघात" किया है वो महज सत्ता पाने के लिए एक बेशर्म भूख के बहाने हैं.
देवेंद्र फडणवीस के जल्द ही शपथ ग्रहण करने की संभावना है. और बीएमसी के लिए एक जबरदस्त योजना का खुलासा जल्द ही होगा क्योंकि भाजपा ठाकरे परिवार को राजनीतिक गुमनामी में भेजना चाहती है. यह सितंबर का चुनाव है जो दिखाएगा कि अब मुंबई का असली “टाइगर” कौन है.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.