आंदोलन करना मुश्क‍िल बनाती जा रही है मोदी सरकार

जो कभी किसी आंदोलन में नहीं गए हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि मतदान करना एकमात्र काम नहीं है. वो एक दिन का और कुछ घंटों का काम है. उससे कहीं ज़्यादा बड़ा काम है पांच साल तक सरकारों के फैसलों और कार्यों पर नज़र रखना और सवाल करना. अपने अधिकार के लिए भी और दूसरों के अधिकार के लिए.

किसान आंदोलन के भीतर कई तरह के आंदोलन हो रहे हैं. एक आंदोलन गिरफ्तार लोगों की रिहाई को लेकर भी है. किसी आंदोलनजीवी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस के पास सौ दलीलें होती हैं. सभी की रिहाई की बात प्रमुखता से जगह हासिल नहीं कर पाती है और जगह मिलने के बाद भी रिहाई पर फर्क नहीं पड़ता है. ज़ाहिर है किसी आंदोलन में जाकर लोकतांत्रिकता का अभ्यास करते रहना जोखिम भरा काम है. जो कभी किसी आंदोलन में नहीं गए हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि मतदान करना एकमात्र काम नहीं है. वो एक दिन का और कुछ घंटों का काम है. उससे कहीं ज़्यादा बड़ा काम है पांच साल तक सरकारों के फैसलों और कार्यों पर नज़र रखना और सवाल करना. अपने अधिकार के लिए भी और दूसरों के अधिकार के लिए. 

शुरू करते हैं एक ऐसे लोकतंत्रजीवी की कहानी से जिसका नाम है नौदीप कौर. नौदीप कौर 24 साल की हैं और पंजाब के मुक्तसर साहिब की रहने वाली हैं. सोनीपत के कोंडली में मज़दूरों का प्रदर्शन हुआ था. 12 जनवरी को नौदीप कौर गिरफ्तार कर ली गईं. करनाल जेल में बंद हैं. पुलिस ने नौदीप पर कई तरह की धाराएं लगा दी हैं. घातक हथियार रखने, गैरकानूनी असेंबली, दंगाई गतिविधियां वगैरह की धाराएं लगाई गई हैं. हरियाणा पुलिस का कहना है कि नौदीप को जब पुलिस ने हटने के लिए कहा तो उसने पुलिस पर छड़ी और पत्थर से हमला कर दिया. यह साफ नहीं है कि छड़ी ही घातक हथियार है या पुलिस को नौदीप से वाकई घातक हथियार मिले हैं. पुलिस का दावा है कि मज़दूरों के हमले से सात पुलिसकर्मी घायल हो गए जिनमें से एक महिला सिपाही भी हैं. नौदीप कौर की दो दो बार ज़मानत रद्द हो गई है. नौदीप के परिवार वालों का आरोप है कि पुलिस ने कथित तौर पर नौदीप को मारा है. उसे यौन प्रताड़ना दी गई है. पुलिस इससे इंकार करती है. एक वीडियो में नौदीप मारने की बात कर रही हैं. पंजाब के अनुसूचित जाति आयोग ने संज्ञान लिया है. अतिरिक्त मुख्य सचिव से कहा है कि मामले की जांच करे. नौदीप दलित हैं. नौदीप की रिहाई को लेकर अमरीकी उप राष्ट्रपति की भांजी मीना हैरिस, कनाडा की कवयित्री रुपी कौर, पंजाबी गायक जैज़ी बी ने अपील की है. ऑनलाइन अभियान भी चल रहा है. नौदीप की बहन राजवीर का कहना है कि किसान आंदोलन के बीच 1500 मज़दूरों के मार्च में नौदीप ने हिस्सा लिया था. थाने में कथित तौर पर पुलिस ने मारा है और यौन हमला हुआ है.

नौदीप के साथ-साथ शिवकुमार की रिहाई की भी मांग हो रही है. हरियाणा के शिवकुमार मज़दूर अधिकार संगठन के प्रदेश अध्यक्ष हैं. नौदीप की बहन राजवीर का कहना है कि शिवकुमार के परिजनों को सूचना तक नहीं दी गई और उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा है. नौदीप के साथ शिवकुमार की रिहाई की भी बात होनी चाहिए.

मज़दूर संगठन में काम करने वाली नौदीप नवंबर से ही किसान आंदोलन में हिस्सा ले रही हैं. भूमिका सरस्वती ने नौदीप का तभी एक इंटरव्यू किया था. अधिकारों की समझ के बग़ैर किसी आंदोलन में भागीदारी का मतलब नहीं रह जाता. नौदीप अपने अधिकारों की समझ से लैस हैं और भूमिका को लेकर मुस्तैद. आंदोलन में जाने वाले लोग ही समय समय पर सत्ता को जवाबदेह और मानवीय बनाते रहते हैं. संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को प्रधानमंत्री की आंदोलनजीवी परजीवी बात उचित नहीं लगी है. 

आंदोलन करना मुश्किल होता जा रहा है. 26 जनवरी की हिंसा में हुई गिरफ्तारी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. गिरफ्तार लोगों के परिजनों और वकीलों का दावा पुलिस के दावे से अलग है. दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने इन किसानों को कानूनी मदद देने के लिए वकीलो की एक टीम बनाई है. इनका कहना है कि बहुत सारे लोग बिना किसी प्रमाण के गिरफ्तार किए गए हैं.

गुरमुख सिंह 80 साल के हैं. जीत सिंह 70 साल के हैं. दोनों भारतीय सेना के सिख रेजिमेंट में बीस बीस साल काम कर चुके हैं. गुरमुख सिंह 1984 में रिटायर हुए और जीत सिंह 1989 में लेकिन दोनों एक दूसरे के बारे में नहीं जानते थे. दोनों का गांव 120 किमी की दूरी पर है. गुरमुख सिंह 1965 के भारत-पाक युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं. गुरमुख और जीत सिंह 26 जनवरी की हिंसा के मामले में गिरफ्तार किए गए हैं. इन पर UAPA नहीं लगा है. जिन 122 लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनमें से कई 60 साल से ऊपर के भी हैं. क्या 80 साल के गुरमुख सिंह भी हिंसा कर सकते हैं?

दावा किया जा रहा है कि 26 जनवरी के बाद से लगभग 145 से ज़्यादा किसान लापता हुए थे जिसमें अभी तक 24 किसानों का पता नहीं चल पाया है, ये सभी किसान ट्रैक्टर मार्च में दिल्ली आए थे. किसान मोर्चे का कहना है दिल्ली पुलिस जानबूझकर उनका सहयोग नहीं कर रही है, इन लापता लोगों में 70 साल के बुजुर्ग से लेकर 20 साल के जवान तक हैं.

26 जनवरी के दिन भीड़ कैसे लाल किले तक आ गई इसकी जवाबदेही कब तय होगी, इसका जवाब आना बाकी है, उस दिन लाल किले की प्राचीर पर चढ़ कर निशान साहिब फहराने वाले दीप सिद्धू को गिरफ्तार कर लिया गया है. दीप सिद्धू को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम ने पकड़ा और बाद में क्राइम ब्रांच को सौंप दिया. दीप को तीस हज़ारी कोर्ट में पेश किया गया. लाल किले में हुई हिंसा और तोड़फोड़ के मुख्य आरोपी दीप सिद्धू को हरियाणा के करनाल से गिरफ्तार किया गया. हमारे सहयोगी मुकेश सिंह सेंगर ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि दीप सिद्दू का फेसबुक अकाउंट कैलिफोर्निया में रहने वाली उसकी दोस्त अभिनेत्री रीना रॉय हैंडल कर रही थी, दीप सिद्दू उसे यहां से अपने वीडियो भेजता था.

25 साल के नवरीत सिंह की मौत को लेकर उनके परिवार के लोगों ने पुलिस के दावे पर सवाल किया है. नवरीत के दादा जी का कहना है कि उसकी मौत पुलिस की गोली से हुई जबकि पुलिस का कहना है कि ट्रैक्टर पलटने से हुई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी गोली की पुष्टि नहीं होती है. प्रियंका गांधी नवरीत के अरदास में हिस्सा लेने गई थीं. तब भी नवरीत के दादाजी ने कहा था कि पुलिस का दावा सही नहीं है. उनके पोते को गोली लगी है. क्या नवरीत की मौत को लेकर दो अलग-अलग दावों की रिपोर्टिंग करना अपराध है? क्या भारत की जनता ने यह तय कर लिया है कि पुलिस के दावे को ही अंतिम माना जाएगा और जो सवाल करेगा या पुलिस के दावे से अलग रिपोर्टिंग करेगा तो उसके खिलाफ कई धाराएं लगा दी जाएंगी. दिल्ली पुलिस सहित कई राज्यों की पुलिस ने कांग्रेस सांसद डॉ शशि थरूर, पत्रकार राजदीप सरदेसाई, सिद्धार्थ वरदराजन, पत्रकार मृणाल पांडे, जफर आगा, परेश नाथ, अनंत नाथ और विनोद के जोस के खिलाफ असत्यापित ख़बर चलाने के आरोप में FIR कर दी. इन पर राजद्रोह, आपराधिक साज़िश और शत्रुता बढ़ाने के आरोप लगाए गए हैं. क्या असत्यापित खबर देने का जुर्म राजद्रोह है? इसे आज सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. यह मामला CJI एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की बेंच के सामने पेश हुआ. याचिका में कहा गया है कि इन FIR को रद्द किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो हफ्ते तक इनकी गिरफ्तारी नहीं होगी और अदालत नोटिस जारी करेगी. दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी.

हरियाणा और राजस्थान में महापंचायतों का सिलसिला जारी है. राजस्थान के हनुमानगढ़ के तहसील पीलीबंगा में भी महापंचायत हुई जिसमें किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने हिस्सा लिया. महापंचायतों में उमड़ रही भीड़ बता रही है कि किसान आंदोलन दिल्ली की सीमाओं से निकल कर गांव गांव में फैलता जा रहा है. मंगलवार दोपहर कुरुक्षेत्र-पेहवा के गांव गुमथला में किसानों की महापंचायत हुई जिसमें किसान नेता राकेश टिकैत, राजेवाल के साथ संयुक्त किसान मोर्चा के दूसरे नेता भी शामिल हुए. इस महापंचायत में हजारों की संख्या में किसानों ने हिस्सा लिया. महिलाएं बच्चे बुजुर्ग सभी शामिल हैं. यहां रुपिंदर हांडा नाम की पंजाबी गायिका ने अपना हरियाणा सरकार के द्वारा दिये गये लोक गायक पुरस्कार को वापस कर दिया. राकेश टिकैत ने कहा कि उन्हें आंदोलनजीवी होने पर गर्व है. इन महापंचायतों के बारे मे कैथल से सहयोगी सुनील रवीश ने बताया कि हरियाणा में किसानों की महापंचायतों को जाति से नहीं जोड़ा जा सकता. हर महापंचायत में कई जातियों के लोग आ रहे हैं. खेती से जुड़ी जिस जाति की प्रधानता जिस इलाके में अधिक होती है वहां की महापंचायतों में उनका दबदबा दिखने लगता है मगर दूसरी जातियां भी मौजूद होती हैं. सुनील रवीश ने बताया कि पिछले हफ्ते कैथल में भाजपा मंडल के किसान मोर्चा से जुड़े लोगों ने किसान आंदोलन के समर्थन में इस्तीफे दिए हैं. ये सभी लोग अलग-अलग जातिगत समाज से संबंध रखते हैं जैसे सैनी, राठौर, नायक, यादव, पांचाल.

27 नवंबर को हरियाणा के किसानों के लिए दिल्ली चलो का आह्वान दिया गया था. उसके पहले विभिन्न ज़िलों में कई किसान नेताओं को पुलिस ने हिरासत में लिया. किसानों के वकील प्रदीप रापड़िया ने कहा कि सरकार ने कोर्ट में माना कि 24 किसान नेताओं को शांति भंग करने के आरोप में जेल में रखा गया था और उन्हें कुछ समय बाद छोड़ दिया गया.

किसान महापंचायतों से कांग्रेस दूरी बना कर चलती रही लेकिन दौसा की महापंचायत में सचिन पायलट की भागीदारी के बाद अब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी महापंचायत में हिस्सा लेने जा रही हैं. प्रियंका गांधी दस फरवरी को सुल्तानपुर ज़िले के चिल्खाना में होने वाली महापंचायत में हिस्सा लेंगी. मंगलवार को राष्ट्रीय लोकदल ने अलीगढ़ के मुरबार पैंठ में महापंचायत बुलाई. इन महापंचायतों में भाईचारा प्रमुख होता जा रहा है. मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद जो दूरी आई थी उसे किसान आंदोलन को मज़बूत करने के लिए दूर करने का प्रयास किया जा रहा है.

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किसान आंदोलन एक सांस्कृतिक आंदोलन भी है. दिल्ली और आस पास के खेतों में हाउसिंग सोसायटी की इमारतें खड़ी हो गईं. उनके आने के साथ गांवों की बहुत सी संस्कृतियां जो दिल्ली में दिख जाती थीं दिखनी बंद हो गईं या कम हो गई. आज शाहजहांपुर में कन्हैया दंगल का आयोजन हुआ. राजस्थान में खेले जाने वाले कन्हैया दंगल का दृश्य देखकर आप झूम उठेंगे.