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This Article is From Jun 14, 2014

उत्तराखंड त्रासदी का एक साल : 'तुम चुप क्यों रहे केदार'

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  • Updated:
    नवंबर 19, 2014 16:33 pm IST
    • Published On जून 14, 2014 16:21 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2014 16:33 pm IST

केदारनाथ त्रासदी के एक साल बाद हिमालय के इतिहास की इस सबसे भयावह आपदा को लेकर एक पूरा दस्तावेज़ प्रकाशित हुआ है। इस घटना को पूरे डेढ़ महीने तक लगातार कवर करने वाले एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी की नई किताब 'तुम चुप क्यों रहे केदार' में उत्तराखंड में आई इस आपदा के कई पहलुओं का जिक्र है और हालात से निबटने में सरकार की ओर से बरती गई ढिलाई को लेकर कई खुलासे भी किए गए हैं।

पिछले साल 16 और 17 जून को हुई भारी तबाही के बाद हृदयेश जोशी केदारनाथ पहुंचने वाले पहले पत्रकार थे। इस किताब में हृदयेश जोशी ने आपदा में कई दिन तक फंसे रहे लोगों और सबसे पहले बचाव कार्य में जुटने वाले राहत कर्मियों की आंखोंदेखी बयान की है। किताब में उस वक्त पहाड़ पर हो रहे मौत के तांडव और बरबादी का रोंगटे खड़े करना वाला वर्णन है।

मिसाल के तौर पर इस किताब से यह पता चलता है कि गौरीकुंड में किस तरह एक मैनेजर ने सभी तीर्थयात्रियों को कमरे में बंद कर होटल में बाहर से ताला लगा दिया। मौत के चंगुल में फंसे तीर्थयात्री होटल में कैद होकर रहे गए और मंदाकिनी पूरे सात-मंजिला होटल को बहा ले गई।

पिछले साल आपदा के वक्त राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा भले शानदार राहत कार्य के लिए अपनी पीठ ठोकते रहे हों, लेकिन हृदयेश की इस किताब में राहत कार्य का मुआयना कर रहे अधिकारी सरकार की नाकामी और निकम्मेपन को कबूल करते हैं। आपदा में राहत कार्य से जुड़े एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने इस किताब में हृदयेश से कहा है, "हमने इतने खराब माहौल में बहुत धीरे काम किया... नहीं, सच तो यह है कि कई जगह हम सुस्त ही नहीं, बहुत बेकार काम भी कर रहे थे। किसी को यह पता नहीं था कि आखिर इस हालात में हमें करना क्या है। विनाशलीला 15 जून को शुरू हो गई थी और हम 19 जून तक हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे।"

आपदा प्रबंधन को लेकर हुई खामियों को लेकर भी हृदयेश की इस किताब में जबरदस्त खुलासे हैं। राहत कार्य से जुड़े एक पायलट ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के लड़कों को यह तक पता नहीं था कि गैस कटर क्या होता है।

इस आपदा के दौरान कई लोगों की जान बचाने वाले पायलट कैप्टन पुनीत बक्शी कहते हैं, "मुझे बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि देश की कई दूसरी नाकारा संस्थाओं की तरह एनडीएमए और एनडीआरएफ की मौजूदगी भी इस आपदा में नाममात्र के लिए ही रही। उनका क्या उद्देश्य है, ये उनके बहुत सारे लोगों को भी पता नहीं था। कई जगह को 3-4 दिन देरी से आए और जब पहुंचे, तो उनके पास रस्सी और लाठियों के अलावा कुछ नहीं था। उनमें से ज़्यादातर कमजोर और कुपोषण का शिकार लग रहे थे और उन्हें अपने काम की कोई ट्रेनिंग नहीं थी।"

इस आपदा में सरकारी आंकड़े के हिसाब से ही करीब 4,000 लोग मरे, लेकिन हृदयेश ने पिछले साल ही अपनी रिपोर्ट्स में कहा था कि सैकड़ों शव अब भी ऊंची पहाड़ियों पर हैं। ऐसी कई तस्वीरें और खुलासे इस किताब में हैं। यह सवाल भी उठाया गया है कि सरकार ने बीमार पड़ रहे लोगों की जान बचाने के लिए एम आई–17 और एएलएच जैसे बड़े हेलीकॉप्टरों को तुरंत और बड़ी संख्या में क्यों नहीं लगाया। सवाल यह भी है कि जानकार मेडिकल टीम और डॉक्टर 9,000 से 12,000 फीट की ऊंचाई पर क्यों नहीं भेजे गए।

हृदयेश की किताब का शीर्षक 'तुम चुप क्यों रहे केदार' उत्तराखंड की लोगों की उस भावना से प्रेरित है, जो उन्होंने गढ़वाल के हर इंसान के दिल में महसूस की। हर किसी को लगता था कि उन्हें रोजी-रोटी और जीवन देने वाला उनका भगवान केदार इतनी बड़ी आपदा के वक्त क्यों चुप रहा। अपनी किताब में हृदयेश उत्तराखंड में हो रहे पर्यावरण के विनाश और रियल स्टेट लॉबी की ओर से की जा रही तोड़फोड़ का भी जिक्र करते हैं। इस किताब में पर्यावरण को लेकर उत्तराखंड के लोगों में हमेशा से रही चेतना का जिक्र है और संघर्ष के एक लंबे इतिहास का वर्णन भी है।

यह किताब पत्रकारिता को लेकर भी एक बहस छेड़ती है कि राजनीतिक और बाजार की खबरों के बीच हमारे पानी और जीवन के स्रोत कहे जाने वाले हिमालय को बचाने की खबरें मीडिया में उपयुक्त स्थान क्यों नहीं बना पातीं।

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