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This Article is From Jan 24, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : फर्जीवाड़े का ये खेल कैसे चलता रहता है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 24, 2017 21:24 pm IST
    • Published On जनवरी 24, 2017 21:20 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 24, 2017 21:24 pm IST
नक्कालों से सावधान- अगर किसी सामान या दुकान पर न लिखा हो तो लगता नहीं कि वो असली है. साबुन, सर्फ के नकली ब्रांड तो छोड़ दीजिए, नकली आईएएस और नकली आईपीएस तक पकड़े जाते हैं. फिल्म वालों से पूछिये जितनी सिनेमा हॉल में नहीं चलती है उससे अधिक नकली सीडी के ज़रिये चल जाती है. हमारे मुल्क में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो नहीं होते हुए भी वही होते हैं जो नहीं होते हैं. यहां तक कि लोग इम्तिहानों में भी दूसरे के बदले पर्चा लिख आते हैं. मेडिकल प्रवेश परीक्षा का व्यापम घोटाले में ऐसी बात सामने आई थी.

आपको अगर बुरा न लगे तो हर कलाकार का डुप्लिकेट होता है. अमिताभ बच्चन, अनिल कपूर और संजय दत्त के भी डुप्लिकेट होते हैं. सचिन तेंदुलकर का भी एक डुप्लिकेट होता था. प्रधानमंत्री मोदी के भी एक डुप्लिकेट निकल आए थे जो आज कल कहां और किन हालात में हैं कम से कम मुझे ज्ञात नहीं है. 2014 के चुनावों में डुप्लिकेट मोदी ख़ूब दिखते थे और उनका ख़ूब इंटरव्यू होता था. 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' भी ऐसी ही एक फिल्म थी जहां फर्ज़ी डॉक्टर झप्पियों से इलाज करता था और असली दर्शक वाकई उसे देखकर खुश होते थे.

2015 में बिहार में 1400 शिक्षकों को फ़र्ज़ी डिग्री के कारण इस्तीफा देना पड़ा था. यानी टीचर भी फ़र्ज़ी मिल सकते हैं. मुंबई यूनिवर्सिटी ने एक बार बताया था कि जब कंपनियां डिग्री की वेरिफिकेशन के लिए भेजती हैं तो हर साल 300 फेक डिग्री निकलती है. तीन साल में यूनिवर्सिटी ने 904 फेक डिग्री पकड़ी थीं.

आज ही एम्स और सफदरजंग अस्पताल में फ़र्ज़ी डॉक्टरों का एक गिरोह पकड़ा गया. पुलिस के मुताबिक ये गिरोह छह साल से फ़र्ज़ी आई कार्ड और लेटरहेड के सहारे काम कर रहा था. पैसे लेकर मरीज़ों को भर्ती करा देता था. मगर कोई डॉक्टर कैसे फ़र्ज़ी हो सकता है. ये फ़र्ज़ी डॉक्टर क्या होता है. क्या इसे भी दवा लिखने आती है, इंजेक्शन देने से लेकर ऑपरेशन तक आता होगा. हमारे सहयोगी मुकेश सिंह सेंगर ने रिपोर्ट फाइल की है कि एक डॉक्टर गिरफ्तार हुआ है जो पैसे लेकर मरीज़ों की भर्ती कराता था.

फेसबुक और ट्विटर पर इसने अपनी प्रोफाइल में भी डॉक्टर लिखा है. मां का इलाज कराने एम्स आया था तभी डॉक्टरों से मिलकर डॉक्टर बनने की चाहत जगी. दसवीं पास होने के कारण अविनाश आनंद ने आसान रास्ता खोजा और खुद का नाम डॉक्टर बलविंदर रख लिया. एम्स के डॉक्टर भी हैरान हैं कि उनके बीच नकली डॉक्टर घूम रहा है. हलक से पानी नहीं उतरा जब असली डॉक्टरों ने इनसे सवाल जवाब किया. यही अच्छी बात रही कि इन्होंने तुरंत मान लिया कि फ़र्ज़ी डॉक्टर हैं.

बार काउंसिल का दावा है कि देश में 45 प्रतिशत फ़र्ज़ी वकील हैं. चीफ जस्टिस जेएस केहर भी सुनकर हैरान रह गए. फ़र्ज़ी वकील अदालत में कैसे आ जाते होंगे. कहीं वे असली वकीलों के सहारे तो अपना धंधा नहीं चलाते. क्या अदालतें वकालतनामा दायर करते वक्त वकील का लाइसेंस नंबर नहीं देखती होंगी.

पता चला है कि हाईकोर्ट तक में नकली वकील प्रैक्टिस करते हुए पाए गए हैं. नकली में भी दो प्रकार के नकली वकील हैं. एक की डिग्री फ़र्ज़ी है, तो दूसरा बिना डिग्री लिए ही वकालत कर रहा है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चीफ मनन मिश्रा का कहना है कि वेरिफिकेशन के दौरान 55-60 प्रतिशत वकील ही असली मिले हैं. 2012 में जब बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चुनाव हुए तो 14 लाख वकील मतदाता थे, लेकिन जांच के बाद साढ़े छह लाख ही असली पाए गए. आठ लाख के करीब वकील नकली पाए गए. वो इस वक्त क्या कर रहे होंगे. असली काम कर रहे होंगे या फिर कहीं और नकली काम करने लग गए होंगे. सुनकर डर लग रहा है.

दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की घटना तो आपको याद ही होगी. उनकी वकालत की डिग्री फ़र्ज़ी पाई गई. एक वकील ने उनके ख़िलाफ़ केस कर दिया. जांच हुई तो पता चला कि असली वकील नहीं है, जबकि तोमर साहब दिल्ली के कानून मंत्री भी बन गए थे. गनीमत है जज नहीं बने.

तोमर साहब कितनी आहें भरते होंगे कि डिग्री फ़र्ज़ी न होती तो आज दिल्ली के कानून मंत्री होते. फ़र्ज़ी डिग्री के साथ यही ख़तरा होता है कि जब पकड़ी जाती हैं तो असलियत बाहर आ जाती है. बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने जब इसकी जांच शुरू की तो वही हुआ जिसका अंदेशा था. मगर जब जांच शुरू हुई तो दिल्ली बार काउंसिल में ही वकीलों के बीच विरोध हो गया. कई वकील जांच का विरोध करने लगे. नतीजा तोमर साहब को इस्तीफा देना पड़ा, जेल जाना पड़ा. अब वे कानून मंत्री नहीं हैं. तोमर मामले की जांच में जितनी तेज़ी दिखाई गई उतनी तेज़ी अन्य मामलों में नज़र नहीं आ रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट सहयोगी स्मृति ईरानी की डिग्री को लेकर अभी तक विवाद चल ही रहा है. हाल ही में सूचना आयोग के जिस आयुक्त ने दिल्ली विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री की डिग्री दिखाने के लिए कहा तो उस अफसर से अधिकार ही ले लिया गया. उधर दिल्ली विश्वविद्यालय ने उनके फ़ैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी. फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय की तरफ से अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता ने दलील दी है कि विश्वविद्यालय तीसरे पक्ष की डिग्री का ब्योरा किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं दे सकता है क्योंकि तीसरे पक्ष को लेकर विश्वविद्यालय की ज़िम्मेदारी बनती है. हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल की सुनवाई तक केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश पर रोक लगा दी है जिसने प्रधानमंत्री की डिग्री सार्वजनिक करने को सही माना था. स्मृति ईरानी ने भी दिल्ली विश्वविद्यालय से कहा था कि हमारी डिग्री न दिखायें. कुल मिलाकर असली है या नकली है, है भी या नहीं है, इसे लेकर विवाद चलता चला जा रहा है. एक डिग्री को सत्यापित करने में कितना वक्त लग सकता है. वो भी प्रधानमंत्री और कैबिनेट मंत्री की डिग्री. चंद घंटों में विश्वविद्यालय इस विवाद को समाप्त कर सकता है.

फेक वकील कहां बनते हैं. विश्वविद्यालयों में या अदालतों के कैंपस में. बार काउंसिल ऑफ इंडिया की राज्य इकाइयां क्या इस तरह से डिग्री की जांच कर रही हैं. क्या जो वकील पकड़े जा रहे हैं उन्हें भी तोमर की तरह जेल जाना पड़ रहा है, क्या उनके खिलाफ भी कोई कार्रवाई होती है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया की क्या ज़िम्मेदारी बनती है. वैसे जुलाई, 2016 में बीसीआई के तीन सदस्यों को जेल की सज़ा हुई जिन पर आरोप था कि ये रिश्वत लेकर लॉ कॉलेज को मान्यता दिलाने का वादा कर रहे थे. ये सदस्य छोटे मोटे अधिकारी नहीं थे बल्कि इनमें से एक एसोसिएट मैनेजिंग ट्रस्टी थे और एक बार काउंसिल के पूर्व चेयरमैन थे.

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