कुछ रिश्ते कुदरत ने बड़ी खूबसूरती से बनाए हैं। इन्हीं में से एक है पिता और बेटी का रिश्ता। कहते हैं कि बेटियां पिता के ज्यादा करीब होती हैं, लेकिन मेरे और पापा के बीच नजदीकियां थोड़ी कम थीं। पापा से मैं उतनी खुली नहीं थी, जितनी मां से। जिस बिंदास तरीके से मैं अपनी मां से बात कर पाती हूं, उतना खुलकर कभी अपने पापा से नहीं कर पाई। साथ बैठकर क्रिकेट मैच देखना, कॉमेडी शो देखना, फिल्मों का मजा लेना.. आम था हमारे घर में। आपको बता दूं कि मेरी दो बड़ी बहने भी हैं। लेकिन छोटी होने की वजह से मुझे कुछ ज्यादा छूट मिली हुई थी। मम्मी-पापा मेरी किसी जायज मांग को पूरा करने से इनकार नहीं करते थे।
मेरे लिए ‘पापा’ वह शब्द है जिसमें बहुत कुछ समाया हुआ है। हमारे घर में पापा उस वृक्ष की तरह हैं, जिसके नीचे बैठकर हम अपनी सारी दुख-तकलीफ भुला देते हैं। वहां हमें सुरक्षा का अहसास होता है। सारी चिंताएं मानो कहीं गुम हो जाती हैं। मैं दुखी हूं या निराश, बस पापा को देखकर सब छू-मंतर हो जाता है। खुशी दोगुनी हो जाती है और गम.. वह तो मानों ऐसे दुम दबाकर भागता है, जैसे कुत्ते को देखकर बिल्ली। मेरा परिवार ईश्वर की कृपा से आर्थिक रूप से काफी मजबूत है। घर में कभी किसी चीज की कमी भी नहीं रही। लेकिन इन सबके बावजूद पापा ने कभी पकी-पकाई खीर हमारे सामने नहीं रखी। रिश्तों की कद्र, अपने से बड़ों का आदर, कठिन डगर पर भी मजबूती से खड़े रहना.... सब पापा ने सिखाया। मुझे याद है जब कभी पापा को कोई नुकसान होता, तो उसकी शिकन उनके चेहरे पर कभी दिखाई नहीं देती। मुश्किल समय को आसानी से कैसे पार करना है, यह पापा को बखूबी आता था। आप हैरान होंगे कि मैंने ‘था’ शब्द का प्रयोग क्यों किया। दरअसल, मेरे पिता अब हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन आज भी कहीं ना कहीं से वे हमें हिम्मत और हौसला दे रहे हैं। आज भी जब कभी मैं निराश होती हूं, तो उनकी तस्वीर के आगे जाकर खड़ी हो जाती हूं। मैं फिर परेशानियों से जूझने और उनसे पार पाने के लिए तैयार हो जाती हूं। आज भी मुझे लगता ही नहीं है कि मेरे पापा हमारे साथ नहीं हैं। फिर उनसे हमारा हाथ ही तो छूटा है, रिश्ता तो नहीं…!
हमारे बड़े-बुजुर्ग छोटी-छोटी चीजों से हमें बहुत कुछ सिखा देते हैं। इसका अहसास हमें बढ़ती उम्र के साथ होता है। मुझे याद है, जब मैं छोटी थी तो पापा ने हमें मिट्टी की गुल्लक लाकर दी थी। इस गुल्लक में हम अपनी जेबखर्ची कुछ बचाकर रोज डाल दिया करते थे। इसके अलावा रात को जब पापा का ऑफिस से आना, हमारा अपनी गुल्लक लेकर उनके पास पहुंच जाना। पापा अपनी जेब से सारी चिल्लर निकालकर उसमें डाल दिया करते थे। जब गुल्लक पूरी भर जाती और इसे तोड़ा जाता, तो उसमें से निकले ढेर सारे पैसे देख बहुत खुशी होती थी। एक बार को तो यकीन ही नहीं होता था कि यह सारे पैसे मेरे हैं। दरअसल, गुल्लक तो एक बहाना था, पापा इसके जरिए हमें पैसे बचाने की आदत डाल रहे थे। आज भी मैं पैसे बचाती हूं, बस गुल्लक की जगह बैंक ने ले ली है।
मेरे पापा का देहांत 3 साल पहले हो चुका है। मेरी बड़ी बहन की शादी के महज 18 दिनों बाद होली के दिन मेरे पापा ने अपनी सब जिम्मेदारियों को मेरी मां के कंधे पर डालकर हमें अलविदा कह दिया। उनके जाने के बाद हमने यानी मेरी मां, भाई और मैंने... कैसे समय काटा बता पाना मुश्किल है। पापा के जाने के बाद कई दिनों तक जैसे ही घड़ी की सुइयां 8 बजातीं, लगता अभी दरवाजे की घंटी बजेगी और सामने पापा खड़े दिखाई देंगे। मन यह मानने को तैयार नहीं था कि दरवाजे की जाली में झांकने पर इस बार बाहर कोई नज़र नहीं आएगा। हाथ में गोलगप्पे को पैकेट लिए अब कोई यह नहीं कहेगा, कि आज गोलगप्पे काफी अच्छे हैं।
पापा आमतौर पर खुलकर प्यार जाहिर नहीं कर पाते थे। ऑफिस जाने के बाद शायद ही कोई दिन हुआ होगा जब मेरे पापा ने मां, भाई या बहन को कभी फोन किया हो...। लेकिन मुझे आज भी याद है 12 जुलाई 2012 को मैंने जब एक बड़ा मीडिया संस्थान ज्वाइन किया, तो मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी। सामने पापा कॉलिंग देखकर हैरान हो गई थी मैं...! फोन उठाते ही पापा ने कहा... हो गई ज्वाइनिंग? मैंने कहा हां पापा…! फिर बोले, चलो अब अच्छे से काम करना। पापा ने उस दिन शाम को घर आकर बताया कि उन्होंने मेरी ज्वाइनिंग की खुशी में पूरे ऑफिस में मिठाई बंटवाई थी। उस पल बयां करना बहुत मुश्किल है मेरे लिए। इतनी खुश थी मैं कि मानों पूरा आसमान सिर पर उठाने को जी चाह रहा था।
जब एनडीटीवी ज्वाइन किया, तब मैं बहुत खुश थी। सब लोग बधाई दे रहे थे, लेकिन कुछ कमी खल रही थी। लग रहा था कि पापा फोन करके पूछेंगे, बेटा- ज्वाइन कर लिया? मैं जानती थी कि अब पापा फोन कभी नहीं करेंगे। लेकिन इसके बावजूद फोन की हर रिंग के साथ मुझे लगता कि पापा का फोन होगा…! दिल चाह रहा था कि पापा एक बार फिर अपने वही शब्द दोहराएं। पर....पापा आई मिस यू…!
शिखा शर्मा एनडीटीवी में कार्यरत हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
This Article is From Jun 19, 2016
हाथ छूटा है पर रिश्ता नहीं....जी हां पापा
Shikha Sharma
- ब्लॉग,
-
Updated:जून 19, 2016 02:44 am IST
-
Published On जून 19, 2016 02:44 am IST
-
Last Updated On जून 19, 2016 02:44 am IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं