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This Article is From Mar 25, 2014

चुनाव डायरी : 'धुंधले' पड़ जाते हैं 'तारे ज़मीं पर'...

Akhilesh Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:09 pm IST
    • Published On मार्च 25, 2014 11:58 am IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:09 pm IST

हर चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव 2014 में भी राजनीतिक पार्टियों ने फिल्मी सितारों और बड़े क्रिकेट खिलाड़ियों को मैदान में उतारा है... कुछ खुलकर प्रचार कर रहे हैं तो कुछ अलग-अलग पार्टियों के लिए खुद ही चुनाव भी लड़ रहे हैं... इससे पहले भी कई फिल्मी सितारे चुनकर लोकसभा में पहुंचते रहे हैं, मगर हम अगर संसद में उनके प्रदर्शन के बारे में बात करें, तो कुछ को छोड़कर बाकी सभी ने निराश किया है...

संसद में उपस्थिति हो, क्षेत्र की समस्याओं को उठाना हो, सांसद निधि का ठीक से इस्तेमाल करना हो या क्षेत्र के दौरे कर लोगों से संपर्क रखना हो, अधिकांश फिल्मी सितारे इसमें नाकाम रहते हैं... वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरे फिल्म अभिनेता गोविंदा और धर्मेंद्र इसके ज्वलंत उदाहरण हैं... गोविंदा ने कांग्रेस के टिकट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज राम नाइक को मुंबई उत्तर सीट से हराया था, और दूसरी ओर धर्मेंद्र ने भाजपा के टिकट पर बीकानेर में चुनाव जीता था, लेकिन कुछ ही समय बाद हालात ऐसे बने कि मुंबई उत्तर और बीकानेर, दोनों जगहों के लोगों को अपने प्रतिनिधियों की तलाश के लिए पोस्टर लगाने पड़े...

वैसे, यह समस्या उत्तर भारत के फिल्मी सितारों के साथ ज़्यादा बड़ी है, क्योंकि दक्षिण भारत में फिल्मी सितारे राजनीति में घुल-मिल जाते हैं। एनटी रामाराव, एमजी रामचंद्रन, जयललिता और हाल ही में राजनीति में आए चिरंजीवी... ये तमाम फिल्मी सितारे जनता के बीच जाकर जनता के ही हो गए, जबकि बॉलीवुड के सभी सितारों के साथ ऐसा नहीं है... उत्तर भारत में जनता का दिल जीतने वाला एक ही बड़ा सितारा लोगों को याद है, वह थे, सुनील दत्त और वह इसलिए, क्योंकि राजनीति में आने के बाद वह लोगों के ही होकर रह गए थे...

लोकसभा चुनाव 2014 में भी भाजपा ने हेमा मालिनी, किरन खेर, बप्पी लाहिरी, बाबुल सुप्रियो, परेश रावल, मनोज तिवारी, शत्रुघ्न सिन्हा और जॉय बनर्जी को उतारा है... कांग्रेस ने राज बब्बर, नगमा, और रवि किशन को टिकट दिया है... आम आदमी पार्टी ने गुल पनाग को मैदान में उतारा है तो तृणमूल कांग्रेस ने फिल्मी सितारों की लाइन लगा दी है। कांग्रेस ने क्रिकेटर मोहम्मद अज़हरुद्दीन और मोहम्मद कैफ को भी टिकट दिया है...

अब मैदानी स्थिति यह है कि चंडीगढ़ में किरण खेर पर बाहरी होने का आरोप लग रहा है, और भाजपा के कार्यकर्ता ही उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं... वहीं हेमा मालिनी को अभी तक अपने चुनाव क्षेत्र मथुरा जाने की फुर्सत नहीं मिली है... इधर, गाजियाबाद में राज बब्बर को भी बाहरी उम्मीदवार होने की वजह से दिक्कतें आ रही हैं, और वहीं मेरठ से उतरीं नगमा को कांग्रेसी कार्यकर्ता और विधायक ही परेशान कर रहे हैं...

वैसे, फिल्म अभिनेत्री रेखा भी एक बड़ा उदाहरण है, जिन्हें क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के साथ राज्यसभा में मनोनीत किया गया था। रेखा और सचिन दोनों ही कुल एक या दो बार संसद आए हैं, और दोनों की सांसद निधि का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ है...

रुपहले पर्दे पर दिखने वाले सितारे जब लोगों को अपने बीच दिखते हैं तो उनके प्रति एक स्वाभाविक आकर्षण पैदा होता है... गाहे-बगाहे ये सितारे प्रचार करते हुए भी दिख जाते हैं और लोग इन्हें देखने के लिए जमा हो जाते हैं... मुंबई में बाकायदा ऐसी कई एजेंसियां हैं, जो राजनीतिक दलों से पैसे लेकर प्रचार के लिए फिल्मी सितारों का इंतज़ाम करती हैं... वर्ष 2004 में 'इंडिया शाइनिंग' के वक्त भाजपा ने ऐसे ही ढेरों फिल्मी सितारों का इस्तेमाल प्रचार में किया था और कांग्रेस ने वर्ष 2009 में...

राजनीतिक दलों की दिक्कत यह है कि उन्हें हर हाल में चुनाव जीतना है... उन्हें लगता है कि फिल्मी सितारों की चकाचौंध से प्रभावित होकर लोग उन्हें वोट देंगे... इसके चक्कर में राजनीतिक दल वर्षों से अपने लिए काम करते आ रहे समर्पित कार्यकर्ताओं की भी उपेक्षा कर देते हैं... लेकिन हकीकत यही है कि राजनीतिक दलों की विचारधारा और मुद्दों से दूर, जनता की समस्याओं से कटे ये सितारे प्रवासी पक्षियों की तरह होते हैं, जो पांच साल में एक बार नजर आते हैं... जोश में आकर लोग इन्हें वोट तो दे देते हैं और फिर पांच साल तक पछताते रहते हैं... इसीलिए राजनीतिक विश्लेषक पिछले अनुभवों को ध्यान में रखकर यह भी कहते हैं कि उस क्षेत्र की जनता के लिए फिल्मी सितारों को चुनने से बेहतर यही होगा कि वो खांटी नेताओं को ही चुनें...

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