उन्हें देखकर सूखे खेत और किसान का फर्क करना आंखे भूल गईं। हाथों का जर्जर छाता उतना ही कमजोर दिख रहा था जितना उरद की सूखी पत्तियां। कई पैबंद लगे छाते को हाथ में थामे बुजुर्ग बोले, बेटा हम तो मजदूरी भी करने लायक नहीं हैं। इस साल गाय बछड़ों को लोगों ने छुट्टा छोड़ दिया है और गांव छोड़कर लोग मजूरी करने शहर जा रहे हैं। गांव में विधवाएं, बुजुर्ग और वो औरतें बची हैं जो शहर नहीं जा सकती हैं।
बुंदेलखंड में उरद और तिल के खेत सूख रहे हैं लेकिन किसानों पर बैंकों का कर्जा बढ़ता जा रहा है। हालात ये हैं कि एक बैंक का कर्जा चुकाने के लिए दूसरे बैंकों से कर्जा लेना पड़ रहा है। बुंदेलखंड के करीब 14 लाख किसानों पर सरकारी बैंकों का कर्जा करीब एक हज़ार करोड़ से ज्यादा का है। बुंदेलखंड के किसानों की मौत के पीछे कर्ज एक बड़ी वजह है।
इसका कारण जानने हम झांसी से करीब 80 किमी दूर जलालपुरा गांव की ओर चल पड़े। करीब ढाई सौ घर वाले इस गांव का हर किसान कर्जे में डूबा है। पूरे गांव पर सरकारी बैंक का करीब 11 करोड़ रुपए का बकाया है। नियम के मुताबिक एक बैंक से एक किसान एक बार ही कर्जा ले सकता है लेकिन बिचौलियों की मदद से किसानों ने कई बैंकों से कर्जा ले रखा है।
बैंक का 12 लाख बकाया वाले राघुवेंद्र परिहार कहते हैं कि भय्या सबरै ऊपर कर्जा है, किसी के ऊपर दो लाख किसी के ऊपर चार लाख। मैने पूछा इतना कर्जा कैसे मिल जाता है तो उन्होंने बताया कि दलाल बैंक से अनापत्ति प्रमाण पत्र का जुगाड़ करते हैं और दूसरे बैंक से कर्जा दिला देते हैं। एक लाख के कर्जे पर दलाल का 25 हज़ार बनता है।
इसी तरह गांव का साहूकार कर्जा देने से पहले जमीन गिरवी रखता है। कर्जा भी 100 रुपये पर पांच रुपये रोजाना वसूलता है। जिस खेत की फसल उगाकर किसान अपना कर्जा चुकाते थे बीते छह साल से सूखे की वजह से उनका कर्जा बढ़ रहा है लेकिन वो चुका नहीं पा रहे हैं। इसी गांव में बरबाद खेत को देखकर अप्रैल महीने में अमरपाल की सदमे से मौत हो गई। उसके ऊपर ढाई लाख का कर्जा है। अब उसे चुकता करने के लिए लड़के गुजरात में मजदूरी कर रहे हैं और बच्चों के साथ बहू बीते छह महीने से घर में अकेली रह गई है।
हालांकि झांसी के जिलाधिकारी कहते हैं कि बैंकों को निर्देश दिए गए हैं कि कर्जा वसूलने के लिए किसान पर दबाव नहीं डाला जाए। जलालपुरा गांव से झांसी लौटते वक्त सकरार में हमे द्रौपदी नाम की किसान मिली। 20 दिन पहले तक द्रौपदी जिस खेत की फसल से किसान क्रेडिट कार्ड का कर्जा उतारने की सोच रही थी वहां अब उनके मवेशी चर रहे हैं। बुंदेलखंड के बरबाद खेत अब किसानों की जगह मवेशियों के पेट भर रहे हैं।
द्रौपदी की रस्सी से बंधी चप्पल देखकर समझा जा सकता है कि सूखे से चल रही किसानों की लड़ाई में द्रौपदी जैसे छोटे किसानों के पैर उखड़ रहे हैं। हमें बरबाद फसल दिखाते उसकी आंखें भर आईं। द्रौपदी ने बताया कि बैंक वाले ज्यादा लोन दे रहे थे जिससे पहले वाला कर्जा चुकता कर लो। लेकिन मैंने सोचा जब 70 हज़ार मैं नहीं चुकता कर पा रही हूं तो ज्यादा कर्जा क्यों लूं। मैं सोच में पड़ गया कि बैंक अपना आंकड़ा अच्छा रखने के लिए किसानों को कर्ज के जाल में फंसा रहे हैं।
कमजोर मानसून से खेत फट रहे हैं, नई बनी नहरें सूखी पड़ी हैं। सकरार की नहर के बगल में जगदीश अहिरवार का खेत है। लेकिन उसके खेत सूख गए पानी अब तक नहीं आया। पेट पालने के लिए अब वो शहर जाने का मन बना रहे हैं।
बुंदेलखंड के 80 फीसदी किसान कर्जे में डूबे हैं। लिहाजा कर्जे से छुटकारा पाने के लिए किसान अन्नदाता से शहरी मजदूर बन रहा है। जो मजदूरी नहीं कर सकता है वो बैंक या साहूकार के कर्जे में साल दर साल जकड़ता जा रहा है। किसानों की उम्मीदें मौसम की तरह सूखती और सूखती जा रही हैं। ये वो किसान हैं जिनकी लाशों पर राजनीति करके सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। जिन्हें अन्नदाता जैसे चुनावी जुमलों और जय जवान जय किसान जैसे राजनीतिक नारों से महिमा मंडित किया जाता है। हमारे देश में किसान एक ऐसे प्रोडक्ट की तरह बनता जा रहा है जिसका इस्तेमाल हम खुद को महान बनाने के लिए करते हैं और किसान को पुराने समान की तरह फेंकते जा रहे हैं।
अगले अंक में बताएंगे कि कैसे किसानों को मदद के नाम पर बुंदेलखंड पैकेज का 7 हजार करोड़ रुपये नेता और अधिकारियों की जेब में जा रहा है... क्रमश:...