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This Article is From May 25, 2015

बचाओ-बचाओ : दर्शकों-पाठकों के नाम रवीश कुमार की खुली चिट्ठी

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 26, 2015 11:17 am IST
    • Published On मई 25, 2015 17:33 pm IST
    • Last Updated On मई 26, 2015 11:17 am IST
मेरे प्यारे दर्शकों और पाठकों,

आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप सब कुशल होंगे। पत्र लिखने का तरीका ज़रा पुराना है पर बात नई है। मुझे इस बात की खुशी है कि आप शिद्दत से अख़बार पढ़ते हैं और न्यूज़ चैनल देखते हैं। लोकतंत्र में सटीक जानकारी ही हम सबको बेहतर नागरिक बनाती है और चुनाव के वक्त मतदाता। नागरिक और मतदाता में फर्क होता है। मतदाता आप मतदान के दौरान ही होते हैं लेकिन नागरिक आप हर समय होते हैं। पत्र लिखने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि क्या आपके साथ भी वैसा ही हो रहा है, जैसा मेरे साथ हो रहा है। मेरा मतलब है कि क्या हम और आप सेम टू सेम फील कर रहे हैं।

क्या आप भी मेरी तरह अख़बारों और चैनलों से घबराए हुए हैं। सरकार के एक साल पूरे हुए हैं, लेकिन हमारे तो नहीं हुए हैं। इस एक साल पर इतना कुछ छप रहा है और टीवी पर दिखाया जा रहा है, उन सबको देखने-पढ़ने में ही दस साल निकल जाएंगे। पिछले दस दिनों से सरकार का एक साल चल रहा है और यही रवैया रहा तो मैं आपको सतर्क कर देता हूं कि दो दिन बाद यानी बुधवार से सरकार का दूसरा साल शुरू हो रहा है। दूसरे साल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की क्या-क्या चुनौतियां होंगी, इन चुनौतियों में दस बड़ी चुनौतियां क्या होंगी, दस-दस के हिसाब से विदेश नीति से लेकर अर्थ नीति को लेकर उनकी चुनौतियां क्या होंगी। उन सभी चुनौतियों की पहले साल की चुनौतियों से तुलना भी की जाएगी। तैयार रहिए हमारी आपकी भी चुनौतियां कम नहीं हैं।

ख़ैर जब दूसरा साल आएगा तब आएगा, लेकिन यह पहला साल पूरा हुआ है उसके चक्कर में हम पूरे हुए जा रहे हैं। लगता है सरकार और मीडिया हर नागरिक को पकड़ कर उपलब्धियां-नाकामियां बताने की ज़िद पर आ गए हैं। विपक्ष लगता है कि हर उपलब्धियों को खारिज करने पर आमादा है। जैसे सोसायटी कल्चर में बर्थ-डे पर होता है कि आपने गिफ्ट दिया नहीं कि उधर से रिटर्न गिफ्ट थमा दिया गया। जैसे ही सरकार प्रेस कॉन्फ्रेंस करती है, विपक्ष का भी होने लगता है। हम एक हाथ में केक और एक हाथ में गिफ्ट लिए हिलते-डुलते रह जाते हैं।

आज सुबह दही लेने गया तो लगा कि दुकानदार भी प्रेस काॉन्फ्रेंस के अंदाज़ पर महंगाई पर बोल रहा है, बगल की दुकान से टिंडे वाला खंडन किए जा रहा है। हर आदमी में मुझे दो आदमी नज़र आ रहे हैं। एक दावा करने वाला और एक खंडन करने वाला। अभी तो प्रेस कॉन्फ्रेंस और रैलियों का स्टॉक शुरू ही हुआ है। सुना है सरकार और बीजेपी 200 प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाली है। 200 रैलियां की जाएंगी और इससे भी बच गए तो आप उन 5,000 सभाओं से तो बच ही नहीं सकते, जो सरकार के एक साल पूरे होने पर की जाने वाली हैं। इससे अच्छा था कि एक अध्यादेश लाकर हर नागरिक को कम से कम एक प्रेस कॉन्फ्रेंस, एक सभा या एक बड़ी रैली में शामिल होना अनिवार्य कर देती। न्यूज़ चैनलों में तो प्रवक्ता और जानकार डेरा डालकर बैठ गए हैं। आप चैनल भले बदल लीजिए, लेकिन इन प्रवक्ताओं और जानकारों को नहीं बदल सकते। ये सर्वव्यापी हो गए हैं।

विपक्ष भी डाल-डाल तो पात-पात टाइप करने लगा है। विपक्ष वालों को कहीं जाना भी नहीं पड़ रहा है। सरकार घूम घूम कर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही है, रैली कर रही है और ये हैं कि एक ही जगह से रोज़ उन दावों का खंडन कर देते हैं। जितना सरकार बोल रही है, उतना ये भी बोल रहे हैं। दोनों के बयान से सारे दावे और खंडन आपस में लड़-मर कर ढेर हो जा रहे हैं। और हम हैं कि वहीं गब्बू की तरह खड़े रोने लगते हैं कि अभी-अभी तो इस पर यकीन किया था और अभी-अभी फलाने ने यकीन तोड़ दिया। प्लीज़ यहां यकीन को खिलौना न समझें।

हम बहुत परेशान हैं। परेशान न होते तो आपको ख़त न लिखते। हमको बुझाता ही नहीं है कि कौन सा दावा जीता और कौन सा खंडन हारा। कोई ट्राइब्यूनल तो होना चाहिए, जहां सही गलत का फैसला हो। मंत्री को सुनकर लगता है कि वाह सरकार ने क्या-क्या कमाल कर दिया है। विपक्ष को सुनकर लगता है कि अरे वाह, जो बोला झूठ ही बोला है। ऐसे कैसे होगा। कुछ तो सही होगा और कुछ तो गलत होगा, लेकिन जो भी सही होगा वह गलत ही होगा या जो भी गलत है, वही सही है इससे तो मेरी आंतों में चक्कर आने लगे हैं।

मेरे प्यारे दर्शकों और पाठकों, आप कैसे झेल रहे हैं। अपना घर छोड़कर पड़ोसी के घर जाता हूं तो वहां भी वही अख़बार मिलता है। वही चैनल चल रहा होता है। इन लोगों ने तो हमें इम्तहान के दिनों की याद दिला दी है। दोनों हमें पकड़-पकड़ कर रटा रहे हैं। कितना याद रखें भाई। डर लगता है कि कहीं सरकार बहादुर ने टेस्ट ले लिया तो क्या होगा। भाई लोगों ने हम पाठकों और दर्शकों के लिए इतना मैटिरियल ठेल दिया है कि शिंकारा टॉनिक पीकर और च्यवनप्राश खाकर भी स्मरण शक्ति का बंटाधारा होने से कोई नहीं बचा सकता है।

सालगिरह सरकार की है और लाउडस्पीकर पड़ोसी झेल रहा है। हम किसी के जश्न में खलल क्यों डालें। सोचते हैं कि मना लेने दो भाई बस हमारी एक अर्ज़ी स्वीकार कर लें। हम इतना लेख नहीं पढ़ सकते हैं। इतना भाषण नहीं सुन सकते हैं। इतना प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं झेल सकते हैं। इतना मंत्रियों का इंटरव्यू नहीं झेल सकते। हमारी तरफ से आप भी प्रधानमंत्री मोदी से कहिये। हमने उनका हमेशा भला चाहा है, वह भी हमारा भला चाहें। वह टीवी वाले और अख़बार वालों को मना करें। अपनी पार्टी से भी कहें कि बस भाई बस। 5,000 सभाएं और 200 प्रेस कॉन्फ्रेंस। लोगों को रटवा-रटवा कर मार दोगे क्या।

हम दुआ करते हैं कि प्रधानमंत्री जी पांच साल पूरे करें और झमाझाम काम करें, लेकिन पहले साल पर ये हाल है तो मुझे डर है कि कहीं किसी ने यह सुझा दिया कि दूसरे साल पर सब दुगना होगा तो क्या होगा। यानी 400 प्रेस कॉन्फ्रेंस, 10,000 सभाएं। तीसरे साल पर 600 प्रेस कॉन्फ्रेंस और 15,000 सभाएं। हमारी उम्र भी तो हर साल बढ़ेगी। सोचिए हम पर क्या बीतेगी। हम कहां भाग कर जाएंगे।

मेरे प्यारे दर्शकों और पाठकों, एक ही बात को बार-बार सुनकर, अलग-अलग श्रीमुख से एक ही बात सुनकर मेरे दिमाग के हार्ड-डिस्क की कैपेसिटी कम हो गई है। ऐसा लगता है कि भारत में सालगिरह सेना तैयार हो गई है। एक सेना पक्ष में लिखती है और दूसरी विपक्ष में। कुछ संतुलन के लिए भी लिखते हैं। अच्छा है कि सरकार का सख्त इम्तहान हो रहा है, लेकिन उस इम्तहान का बोझ हम जैसे ग़रीब पाठकों और दर्शकों पर क्यों डाला जा रहा है।

अगर आपको भी ऐसा लगता है तो प्रधानमंत्री जी से गुज़ारिश कीजिए, लेकिन बधाई ज़रूर दीजिएगा। हमारी सरकार है ख़ूब काम करे। ख़ूब हिसाब हो लेकिन इतना भी बेहिसाब न हो कि हमारा ही हिसाब हो जाए। सोचा अपनी इस व्यथा को आपसे बांटू। भूल-चूक लेनी-देनी माफ़।

आपका
रवीश कुमार

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